Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

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Lokanath Rath

Action Classics Inspirational

हात की लकीर ................

हात की लकीर ................

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मनोज प्रसाद आज के दिन में एक जाने माने प्रतिष्ठित उद्योगपति है। आज वो ४५ साल की उम्र में भी अपने काम में ब्यस्त रहते है। उनके साथ काम करनेवाले सब उनको अपने आदर्श मानते है। मनोज ने अपने लगन और ईमानदारी के वजेसे एक मध्यबित्त परिबार से होते हुए भी अपने आप को प्रतिष्ठित कर पाएं। बिहार के एक छोटे से सहर आरा से है, पर अब मुंबई में वो पुरे बस गए। उनकी पिता राम प्रसाद एक स्कुल टीचर और माता गृहिणी। उनकी एक भाई और एक बहन भी है. उनकी भाई महेश कुमार आज एक प्रतिष्ठित डाक्टर है और वो उनकी परिबार के साथ दिल्ही में रहते है। बहन सुनंदा एक अध्यापिका है और वो पटना में अपनी पति के साथ रहती है।

मनोज उनकी पिता माता की सबसे बड़ा संतान है। बचपन में वो पढाई लिखे में उतना अच्छे नहीं थे। उनकी माता ममता देबि उनके लिए बहुत पूजा पथ करती थी। पिता राम प्रसाद जी भी बहुत चिंतित रहते थे। मनोज को याद है एक दिन उनकी माता के साथ मंदिर से अनेका वक़्त एक बड़ा पंडित जी से उनकी माता मनोज के भबिस्य के बारे में पूछे थे।

पंडित जी को सब बहुत मानते थे,इसीलिए उनके पास भीड़ भी था। पंडित जी ने उस दिन मनोज के हात के लकीर को देखने लगे और बहुत चिंतित हो के बोले, ''ये बच्चा बहुत चंचल प्रबृति का है। ये जिंदगी में कभी कोई भी काम सफलता पुर्बक नहीं कर पायेगा।

यदि शिब जी के कृपा होगा तो सायद कुछ कर पायेगा। '' ये सुनके ममता देबि बहुत दुखी हुए थे और उस दिन से वो मनोज को रोज शिब जी के पूजा करने बोली और खुद भी बहुत सरे ब्रैट मनोज के लिए रखी. ये बात सुनके उनकी पिता भी थोड़ा घबरा गए थे पर वो मनोज को बोलते थे, ''अगर ईमानदारी से पुरे लगन के साथ तुम कुछ करना चाहोगे तो वो जरूर हासिल होगा। शिब जी भी कृपा करेंगे.'' तब मनोज आठवीं कख्या में थे। मनोज को उनकी पिता राम प्रसाद जी के बात पूरा भा गया था। मनोज जैसे भी करके पढाई किये और दशवी पास कर लिए. उतना अच्छा नतीजे नहीं था की कोई बड़े कालेज में दाखिला होपाता। उनको १२ के लिए आरा के एक कालेज में पढ़ना पढ़ा। तबसे सुरु हुआ उनकी जिंदगी का असली सफर।

मनोज १२ में बाणिज्य में पढ़ने लगे। धीरे धीरे अपनी मेहनत और लगन के साथ वो १२ परिख्या में अच्छे नतीजे के साथ पास करलिए। उसके बाद बाणिज्य में ग्रेजुएशन के लिए वो पटना में एक अछि कालेज में पढ़ना सुरु किये. अब उनकी मनमे एक सपना बस गया था की उनको अपनी जिंदगी में कामियाब होना है। उनकी सपना था की ग्रेजुएशन के बाद वो एम् बी ए करेंगे. उनकी तैयारी सुरु हो गया। उनका छोटा भाई महेश अच्छा पढ़ता था। वो भी उस साल पटना में उसी कालेज में बिज्ञान में दाखल हुआ।

मनोज ग्रेजुएशन में अच्छे नतीजा लाये और एम् बी ए का पढ़ाई की आबेदन भी किये। पर उस साल उनकी छोटा भाई को एम् बी बी एस के लिए मौका मिल गया. वह छोटी बहन सुनंदा भी दशवी पास करके कालेज में भर्ती हुई थी। उनकी पिता राम प्रसाद का कमाई इतना नहीं था की सबके लिए इतना पैसे के जुगाड़ करे। वो बहुत चिंतित थे। ये देख के मनोज ने बोले, ''पिताजी महेश को एम् बी बी एस का पढाई करने दीजिये। में अब कुछ एक नौकरी के लिए देखूंगा और आगे की पढाई के बारे में बाद में सोचूंगा। '

' ये सुनके उसदिन राम प्रसाद जी के आँखों में आंसू आगया था। अपनी गरीबी और नाचारी को वो कोस रहे थे। जैसे भी हो महेश का डाक्टरी पढाई सुरु हो गया। सुनंदा भी १२ में पढ़ रही थी। यहाँ मनोज पटना में एक निजी कंपनी में नौकरी करने लगे। पुरे लगन के साथ वो काम करते थे। उस कंपनी के परफ्यूम की उत्पाद था। सारे अकाउंट्स के काम मनोज देखते थे। कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी, पर जो सैलरी मिलता था उसमे मनोज अपनी खर्चे करने के बाद पिताजी को कुछ भेजते थे और हर मैनहे कुछ अपने लिए बचते थे। मनोज के ईमानदारी को देखते हुए मुंबई से सामान की खरीददारी के लिए कंपनी उनको भेजने लगा। उनकी तन्खा भी बढ़ गया था। ऐसे में तीन साल बिट गया। मुंबई हर माह उनको दो तीन बार जाना पड़ता था। वहां रहने के समाया मनोज की दोस्ती कुछ अच्छे खुसबू बनानेवाले जानकारों के साथ हो गया था। उनको उसके बारे में कुछ कुछ अब समझ में आने लगा था। वो कुछ दिनों के बाद अपने लैपटोप में अलग अलग खूब के बारे में जानकारियां लिख के रहने लगे।

अचानक एक दिन उनकी कंपनी के मालिक का निधन हो गया और कंपनी को आगे चलने के लिए उनकी परिबार का किसीका भी इरादा नहीं रहा। तब मनोज बहुत सोच में पद गए। अब पिताजी को ये सब बोल नहीं सकते थे। वो थीं मैनहे घर नहीं गए और वहां अलग अलग छोटे छोटे साबुन और अगरबत्ती बनानेवाले कंपनी से संपर्क किये और अपनी खुसबू के बारे में जानकारी दिए. तब मनोज अपने कमरे में उस सारे खुसबू के छोटे छोटे सैंपल बनके रखे और उस कम्पैनियन के देने लगे। उनकी मुंबई दोस्तों की सहायता से उनको सैंपल बनाने की सामान भी मिलने लगा था। देखते देखते उनकी आमदनी भी बढ़ने लगा। तब मनोज उनकी पिता माता को इसके बारे में जानकारी दिए। उनकी पिता उस दिन बहुत खुस हुए थे और बोले थे, ''तुम ऐसे ईमानदारी और लगन के साथ काम करेगा तो बहुत आगे जायेगा बेटा. में बहुत खुस हूँ.'' इस बिच मुंबई के दो दोस्त उन्हें सलहा दिए की वो आके मुंबई में अगर ये काम करेंगे तो और अच्छा होगा और वो लोग उनकी मदत भी करेंगे। मनोज उनकी माता पिता के आशीर्वाद ले के मुंबई चले गए। तब उनके पास अच्छे पैसे भी आगये थे। वहां एक किराये का घर में रहने लगे और ज्यादा से जयदा सैंपल बनाने लगे। उनकी दोस्तों ने भी उनके साथ मिले। तीनो मिलके रात को सैंपल बनाते थे और दिन में अलग अलग छोटे छोटे कंपनी जाके संपर्क करते थे। कुछ ही दिन में उनकी काम बढ़ने लगा। फिर वहां एक बड़ा माकन किराये में लिए। ऊपर वो रहते थे और निचे उनकी ऑफिस और लैब था। उनकी बढ़ती हुई ब्यबसाया को देखते हुए बैंक भी उनकी मदत करने को तैयार हो गया। देखते देखते दो साल बिट गया। छोटा भाई महेश दिल्ली में नुरो में पि जी कर रहा था और सुनंदा भी पटना में इतिहास में पि जी कर रही थी।

एक दिन दोस्तों के साथ मिलके मनोज ने ये काम के साथ साथ एक परफ्यूम की ब्रांड बनाने की बात रखी। सब बहुत चर्चा करने के बाद उसका सुरुवात के लिए तैयार हो गए। मनोज उसके लिए कुछ अलग कम्पनिओं से बात करना सुरु किया। तीन मैनहे में अपनी खुद की ब्रांड ''लकीर'' के पांच प्रोडक्ट की सारे पैकिंग,खुसबो और मार्केटिंग के तैयारी हो गया। फिर बैंक से बात करके उसका मदत से उत्पादन सुरु हुआ। उसकी लांचिंग के लिए अब बाकि था। मुंबई में रहने समय मनोज की मुलाकात उनकी कालेज की दोस्त माया के साथ हुआ था और दोनों अक्सर मिला करते थे। माया मुंबई में मॉडलिंग कर रही थी। उसकी भी अछि नाम थी मॉडलिंग की दुनिया में। अब मनोज लांचिंग के लिए माया से बात किये। माया मनोज को बहुत पसंद करती थी उनकी ईमानदारी और काम करने की तरीके के लिए। वो उसके लिए खुसी खुसी राजी हो गयी। मनोज भी माया को पसंद करते थे। अब मनोज उनकी पहेली ब्रांड ''लकीर '' की लांचिंग कर दिए। मार्किट में उसका अच्छा मांग रहा और उनकी ब्रांड सारे भारत में बिकने लगा। देखते दखते मनोज ३५ साल के हो गए थे। अब वो मुंबई में अपनी खुद की रहने के लिए एक फ्लैट भी ले लिए थे.उनकी कारखाना के लिए भी खुद की एक जगह मुंबई के बहार ले रखे है। अब वो उनकी पिता माता को अपने पास बुला लिए है। उनकी बहन सुनंदा पटना में एक कालेज में अध्यापिका है और उसकी शादी भी एक डाक्टर के साथ हो गया है। वो खुसी से अपनी परिबार के साथ पटना में रहती है। मनोज के शादी के लिए उनकी माता ने जिद की और उन्होंने माया के बारे में पूछे। तब मनोज कुछ दिन के समय मांगे। एक दिन वो माया से खुलके बात किये और माया भी उस पल की इंतज़ार में थी। फिर कुछ दिनों में उन दोनों की शादी हो गया। शादी के दिन मनोज और के ब्रांड ''माया ''की लांचिंग किये, जो की माया की लिए एक अनोखा तोफहा था। देखते देखते उनकी दोनों ब्रांड में १५ उत्पाद सारे भारत में बिकने लगे। उनकी ब्रांड आज मार्किट में सबसे अच्छे पांच ब्रांड में से एक है। उधर छोटा भाई महेश का भी शादी अगले साल एक डाक्टर के साथ हो गया। वो लोग दिल्ली में रहते है। ये सब शादी के खर्चे मनोज खुद किये।

आज ४५ साल के उम्र में वो अपनी माता के पास बैठ के सूबे का चाय पिटे पिटे अपनी हात को देख के थोड़ी सी मुस्कुराके बोल रहे थे,'' माँ आपको याद है बचपन में वो पंडित जी ने आपको मेरे हात की लकीर को देख के क्या बोले थे ? सच में माँ में उस दिन बहुत उदास हो गया था। पर पिताजी के बात सुनके मुझमे हिम्मत बढ़ गया था और में उनकी बात मानके ईमानदारी से पुरे लगन के साथ मेहनत करते गया और आज भी करता हूँ। सायद ये देख के शिब जी ने मेरे पे कृपा की और आप दोनों का आशीर्वाद से में यहाँ तक आ पहुंचा हूँ। '' ममता जी ने कहा, ''हाँ ठीक है बेटा ऐसे ही काम करते रहो सारे सफलता तुम्हे मिलेगा। एक बात याद रखना शिबजी मेहनत करनेवालों को उनकी ईमानदारी देखते हुए कृपा करते है। ये हात की लकीर जो है वो भी सच है पर उसके लिए कर्मा करना पड़ता। ''

ये सुनके मनोज तोडा खुसी से ममता जी की गोद में सर रख के बोले, ''आप सही बोलती हो माँ। '' उस वक्त उनकी बचे, बेटा श्याम और बेटी काया दोनों आके ममता जी से लिपट गए। दूर बैठ के राम प्रसाद जी ये देख रहे थे और उनकी आँखों से खुसी की आंसू बह रहा था। उधर किचेन में माया नास्ता बनाते बनाते भी मुस्कुरा रही थी।


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