हाँ तुम वही हो

हाँ तुम वही हो

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कुछ दूर चलकर तुम्हारा रुकना फिर पलट कर मुस्कुरा देना। यही आदत पसन्द थी मुझे। कुछ ज्यादा बोलता तो नही मगर उसके प्यार पर यकीन था मुझे। चलिए चलते हैं अपनी लवस्टोरी पर।

दिल्ली आये मुझे 2 महीने हो गये थे।सब कुछ छोड़कर घर, परिवार वो मोहल्ला,वो सब कुछ जो तुमसे अलग ही नही होने दे रहा था। मैं चाह कर भी कुछ नही भूल पा रही थी। पीएचडी करते करते कब मैं अर्जुन को चाहने लगी कुछ पता ही नहीं चला। हम दोनों साथ ही यूनिवर्सिटी जाते। मैं अपने घर वालो को बहुत प्यार करती थी। पूरे घर की लाड़ली थी।दादाजी दादी,चाची चाचा, ताऊ ताई सब चाहते मुझे। सयुंक्त परिवार से थी तो भाई बहन सब बहुत प्यार करते थे। घर मे सबसे बड़ी थी। ताई रोज विक्की को डांट लगाती यही बोलती की सुभ्रा से सीखो कुछ। कसम से बहुत अच्छा लगता।

मगर आज मैं प्यार में हूँ सुनकर चरित्रहीन हो गयी। क्यों सबने मुँह मोड़ लिया।

तुमने बस स्टॉप पर मेरा हाथ थामा और फिर निकल पड़े एक नए सफर पर। मेरे आँसुओ को पोछते हुए तुमने मुझे संभाला। उस वक़्त मुझे यकीन हो गया कि तुम्हारा मेरी ज़िंदगी मे आने की क्या वजह नहीं पता। मगर एक अच्छा हमसफ़र बनकर मेरी ज़िंदगी को अनमोल बना दिया तुमने।


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