हादसा
हादसा
कुछ वर्गमित्रों के प्रयासो से, पुराने वर्गमित्रों का पुनरमिलन होना निश्चित हो गया था। उस में श्रीकांत, गुनवंता,अरुण तथा उनके जन्मगांव के कुछ स्कूली स्थानीय मित्रों ने पुनरमिलन कार्यक्रम सफल बनाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाया था। वे सभी कई महिनों से अपनी एडियाँ रगड रहे थे।लेकिन वे आखिर में अपने प्रयासो में यशस्वी हो चुके थे। सभी वर्गमित्र और आयोजन कर्ता अब इस बात के लिए खुश थे कि आखिर जो सपना उन्होने सेवानिवृति के बाद देखा था। वह निकट भविष्य में पुरा होने जा रहा था। जीसके लिए कुछ सक्रिय मित्रोंने अपना ओखली में सिर दिया था। सभी मित्रों को अपने स्कूली जीवन के वो सुनहरे पल याद आ रहे थे। वे सब पुराने किस्से याद करने लगे थे। वे सिर्फ उस मिलन के क्षण का इंतजार कर रहे थे। जब वे अपने पुराने मित्रों को अपने आँखो के सामने खडा देखे, और उन्हे छुकर ये तसल्ली कर ले कि ये हकिकत हैं, कोई अनहोनी नहीं है। लेकिन यह क्षण आने से पहिले एक अनहोनी घटना घटती है। जीसके कारण सभी भययुक्त माहोल में अपने-आप ढकेले जाते है। ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्यों डरना? ।सभी सकिय कार्यकर्ता हर किंमत पर इस कार्यक्रम को करनाही चाहते थे।
गुनवंता : हैलो अरुण, अरे, तुझे कुछ पता चला क्या ?। मैंने कहाँ नहीं। अरे कल अपने श्रीकांत को दिल का दौरा पडा। अरे तु अभी मुझे बता रहा है। अरे आज ही कांता भाभी का फोन आया था। मैं उससे मिलने गया था। वो अभी आय।सी यु।में भर्ती है। किसी को मिलने नहीं दे रहे है। मैं उसे बडे मुशकील से दवाईयां पहुंचाना है करके मिल आया हूँ। तु अभी मत जा। कल आना। मैं भी आउंगा। फिर मिलेंगे। सुन कई मित्रों के फोन आ चुके है। कांता भाभी ने उसका मोबाईल बंद कर रखा है। उसने मुझे कहा है कि ये जो अभी भाग-दौड कर रहे है, ये बस उसीका नतीजा है। भाभी के आरोपो के कारण हमे अपना सा मुँह लेकर रह जाना पडा था।
अरुण: मैंने कहा, तु एक काम कर, तु किसी को भी इस बात का पता मत चलने दे। किसी को अगर पता चला होगा तो उसे बता दे कि ये बात किसी को मत बता। नहीं तो सब मित्र ये समझेगें कि कार्यक्रम स्थगित होगा। हमे ये कार्यक्रम किसी भी हालत में करना ही है। सभी तैयारीयां हो चुकी है। बाहर से आनेवाले मित्रों और सहेलीयों का आरकक्षण भी हुआ है। कल हम भाभी से बात करेंगे।
गुनवंता: हो सकता है, कल उसे सामान्य वार्ड में भी भेजा जा सकता है। अच्छा ठिक है। कल मिलते है।
दुसरे दिन हम दोनों उसे अस्पताल मिलने गयें। जैसे मैंने सोचा था, श्रीकांत को जनरल वार्ड में भेज दिया गया था। यह देखकर मैंने राहत की सांस ली। चलो खतरा टल चुका है। मैं उसके पास जाकर बैठा।
अरुण: हैलो श्रीकांत, मुझे देखकर वह बहुंत खुश हुआं। मैंने कहा, मैं कल ही मिलने आनेवाला था । लेकिन गुनवंताने मुझे मना किया क्योंकि आय। सी। यु। में किसी को मिलने नहीं दे रहे थे। मैंने उससे तेरा हाल-चाल पूछा था।
श्रीकांत : अरे वो पदमा का फोन आया था। तुम्हारी भाभी ने फोन काट दिया। उसके बहुंत मिस कॉल दिखे । में उससे बात करना चाहता हुं। लेकिन तुम्हारी भाभी बात करने नहीं दे रही।
अरुण: मैंने कहा वो ठिक कर रही है। तुझे किसी से बात नहीं करनी है। तु अब कार्यक्र्म की चिंता छोड दे। हम सब संभाल लेग़ें। उतने में कांता भाभी वहां पहुंची थी। भाभी की हालत अपने में न होना जैसी थी।
कांता : उसने कहां, अपने मित्र को समझाव।अभी भी वो कार्यक्रम के बारे में सोचते रहते है। कई मित्रों के फोन आ चुके है। लेकिन मैंने अभी फोन बंद कर रखा है।
अरुण: मैंने कहा भाभी, यहा हमारे बातचित करने से श्रीकांत और अन्य मरिजों को तपलिक हो सकती है। चलो उधर चलके बात करते है। हम दोनो बगल के कमरे में गये।
कांता: आँख में आये आसूओं को ठिक करते हुयें बोली। देखो तुम्हारा दोस्त मेरी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। वो अभी भी अपना राग अलाप रहा है। मेरी कोई भी बात मानते नहीं है । इसके पहिले भी उन्हे दिल का दौरा पड चुका है। बी। पी, शुगर भी है। आप जैसे जानते है, हमेशा तंबाकु वाला गुटका खाते रहते है। डॉकटरों ने इन्हे पूर्ण विश्रांती की सलह दी है। लेकिन ये अभी भी कार्यक्रम की रट लगायें हुयें है। उनकी कोई सहेली है। वो रोजही इन से बात करती रहती है। उनकी सभी बातें मैं बहुंत गंभीरता से सुन रहा था। और समझने की कोशिष कर रहा था। मैंने समझा की वो अपने जगह इस हालात में एकदम सही है। उसके भावनाओं की कद्र करनी होगी।
अरुण: देखो भाभी ,आप पहेले अपने आसुओं को रोको। आप को कोई भी दिकत हो तो हमे बताव। आप को अभी चिंता करने की जरुरत नहीं है। आप एकदम निश्चिंत हो जाव। अपने दोस्त को कैसे समझाना इस पर मेरी गुनवंता से बात हो चुकी है। मुझे पता चल ने पर, मैं कल ही आनेवाला था।लेकिन गुनवंता ने मुझे मना किया था। वो भी अभी आनेवाला है। हम अभी उसको समझाते है। आप चिंतामुक्त हो जाव।हम सब संभाल लेगें। किसी का फोन आता है तो उन्हे मुझसे या गुनवंता बात करने कहो। उतने में ही फिर से पदमा का फोन आया। फोन को मुझे देते हुयें भाभी ने कहा लो कौन है ये पदमा इससे बात करो। मैंने फोन उठाया।
पदमा: अरे श्रीकांत, मैं पदमा बोल रही हुँ, मैं कबसे तुझे फोन लगा रही हुँ,तु मोबाईल उठाता नहीं है। मुझे पता चला है कि तेरी तबियत खराब हुई हैं। तुझे दिल का दौरा पडा है।
अरुण: अरे पदमा में अरुण बोल्र रहा हुं। अरे थोडी सांस लिया करो। कितनी बोलती हो बिना रुके। किसी को कुछ बोलने ही नहीं देती। शायद आप हमारे भाईसाहब की भी बोलती बंद कर चुकी होगी !। मेरे इस मजाक से वो थोडी शांत हुई थी। मैंने कहाँ, आप कोई मौका देगी तो मैं कुछ अर्ज करु। देखव पदमा, श्रीकांत को परसो अस्तपाल में तबियत खरब होने से भर्ती किया गया था। कांता भाभी परेशान होने से उसने फोन बंद कर रखा था। आप मुझे से भी बात कर सकती थी। अभी उसकी तबियत एकदम ठिक है। हमने फैसला किया है कि उसे कुछ दिन एकदम आराम करने देगें। ताकी वह कार्यक्र्म के लिए भला चंगा भूतपूर्व नौजवान बन जाए। समझी क्या ?। अभी आप अकल के पीछे लठ्ठ लिए मत फिरना। आपसे अनुरोध है ये बात किसी से भी मत करो। अन्यथा मित्रों में भ्रम फैल जायेगा की कार्यक्रम होगा की नहीं !। आपको कोई भी या अन्य किसी को भी कोई दिक्कत हो तो मेरे से या गुनवंता के साथ बात करो। समझ में आया की नहीं मेरी अम्मा।
पदमा: वो हसने लगी। और कहा ठिक है।
अरुण: और सुनों पदमा, मैंने कहां कार्यक्रम होगा। क्योंकि वह श्रीकांत का सपना है। हम मित्रों का फर्ज है कि उसका सपना पुरा करे ! अच्छा फोन रखता हुं फिर बात करेगें।
गुनवंता : अरे अरुण, मैं तुझे ही ढूंढ रहा था। अरे क्या बात हैं। कांता भाभी भी साथ है। अरे भाभी को अपने प्रिय मित्र श्रीकांत से बहुंत शिकायत है। उनकी तकरार का उपाय खोज रहा था। भाभी को, हमने जो कल चर्चा कि उसके सबंध में बता रहा था। हमने अभी सोचा है कि उसकी पुरी जिम्मेदारी हम उठा लेगें। उसे अभी आराम की सक्त जरुरत है। उसे आराम करने देगें। मैंने उस पदमा को भी हिदायत दी कि वो इसके बिमारीकी हवा ना बनायें। कार्यक्रम सबंधी कोई भी दिकत हो तो मेरे से, या तेरे से बात करे। वो कार्यक्रम में आने की तैयारी में
जुट जाए।
अरुण : क्यों कांता भाभी अभी खुश हो ना ?। उसने सर हिलाकर हामी भरी।
कांता ; उसने कहा कि श्रीकांत कार्यक्रम में सम्मेलित होने के लिए जीद कर रहे है। लेकिन डॉकटोरनों , इन्हे पूर्ण आराम की सलाह दी है। आसमान से गिरा खजूर में अटका, जैसे नौबत आ चुकी थी।उसे समझाना एक जटिल समस्या थी।
अरुण : भाभी ये सच है की जीतना परिश्रम श्रीकांत ने इस कार्यक्रम के लिए लिया है, उससे उसको कार्यक्रम में सम्मेलित होना स्वाभाविक ही लगता है। । अंडे सेवे कोई ,बच्चे लेवे कोई ।शायद उसे लगता होगा कि इसका श्रेय उसेही मिलना चाहिए।
लेकिन हम तिनों के बिच में एक गुप्त समझोता करते है। एक पंथ दो काज, अभी उस कहते है की तु कार्यक्रम तक अच्छा आराम कर ले। बाकी चिंता छोड् दे। हम सब संभाल लेगें। तु फिर अपनी पुरी उर्जा कार्यक्रम में लगना। उससे वो आपको परेशान नहीं करेगा।और खुश भी रहेगा। जल्दी स्वास्थ लाभ भी करेगा। जैसे ही जाने का समय आयेगा हम उसे समझाने का सभी प्रयास करेगें। उससे समझायेगें , अगर तेरी तबियत बिच में या कार्यक्रम के पहिले रात या उसी दिन खराब हो गई तो हम तेरे पिछे लगेगें। इस कारण कार्यक्रम में अस्त-व्यस्तता आ जाएगी। कार्यक्रम का सब मजा किरकीरा हो जाएगा !। हम कार्यक्रम का वीडियो बना ही रहे है। उसे तु तो बाद में देख सकता है। अगर हम तुझे ले भी गये तो भाभी का मन तो कार्यक्रम नहीं लगेगा।हो सकता है वो नहीं भी आयें। ऐसे मेरी योजना है। क्या आप इस योजना से सहमत है ?।
कांता : उसने कहाँ ठिक है। देखो तुम्हारी बात, तुम्हारा दोस्त मानता है, की नहीं। या अपनी ही रट लगाता है।हम दोनों ने भाभीसे कहां वो आप हम पर छोड दो। फिर हम तीनों उसके पास गये। योजनानुसार उससे बात की थी। और वह हमारी बात बहुँत समजाने पर मान गया था। हमे उसने विश्वास दिलाया के वह भाभी की बातें सुनेग। जल्दी से जल्दी कार्यक्रम के पहिले स्वस्थ होकर हमारे साथ चलेगा !। हम अभी फिलाल अपनी योजना में आधे सफल हो गये थे। पुरे सफल होने के लिए अभी बाद में प्रयास करना होगा। यह कार्य उलटी गंगा पहाड चली जैसा था। हम रोज श्रीकांत का हालचल जाकर लेते रहे। उससे वो काफी खुश भी रहता था। कार्यक्रम के कार्यों की प्रगती की भी जानकारी लेते रहता था। जल्दी ही उसे अस्पताल से छुटी हो गई थी। वह गुनवंता के घ्र्र के पास रहता था। गुनवंता उससे मिलते रहता था । उसे समझाते रहता था।हम दोनों और कांता भाभी उसे जल्द स्वस्थ होने के लिए पूर्ण विश्रांती कितनी जरुरी है, अपने – अपने तरीके से श्रीकांत समझाते रहते थे। फिर वह घडी पास आ पहुंची जब हमे कुछ बचे हुये कार्य जल्दी- जल्दी निपटाने पडे। उन सभी कार्यों को अन्य मित्रोंने युध्द स्तर पर पुरा किया था।हम कुछ मित्र शुरु से ही श्रीकांत के कंधे से कंधा लगाकर कार्य या योगदान दे रहे थे।अभी इस उम्र के पडाव पर किसी भी मित्र को अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना बनने की इच्छा नहीं थी। कोई भी अभी अपना राग अलपना नहीं चाहता था।जो बच्चपन में हुंआ करता था। सभी का एक ही सपना था।श्रीकांत जल्द से जल्द ठिक हो जाए। तय कार्यक्रम योजनानुसार संपन्न हो जाए।इस में सबसे बडी बाधा श्रीकांत ही था।सभी उसे ही अपना नेता मान चुके थे। वह अस्वस्थ होने के कारण उन्हे कार्यक्रम के ऊपर संकट के बादल मंडराते दिख रहे थे। ये भ्रम तोडने के लिए हमे कॉफी मशक्त करनी पडी। यह कार्य उलटे बाँस बरेली को जैसा था। अंत तक हमे ये राज छुपाना पडा कि श्रीकांत अभी पुरी तरह से तंदुरुस्त होते जा रहा है।वह जोर –शोर से काम में जुटा है। आप उसे बार-बार फोन करके तकलिफ मत दो। वह पुरी तरह से फिट है।सिर्फ ऐतिहात के त्योर पर उसे हम आराम करने को कह रहे है। आप भी हमें इस कार्य में कृपया सहयोग प्रदान करे।