गुस्सा
गुस्सा
शादी की 15वीं सालगिरह थी।
सुबह इनकी ऑफिस में मीटिंग थी तो ये जल्दी चले गए इन्हे याद नहीं था काम के प्रेशर के कारण मैंने भी कुछ ना कहा...दोपहर में फोन करके बोले कि "शाम को आने में लेट हो जाएगी तुम खाना खा लेना।"
अब तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था..
एक तो भूल गए, ऊपर से लेट और आयेंगे।
शाम के सात बजे डोर बेल बजी। फिर मैंने भी गुस्से में दरवाजा खोला तो ये डर गए और इनके हाथ में गुलाब के फूलों का गुलदस्ता देख मेरा गुस्सा शांत हो गया।

