पिता का श्राद्ध
पिता का श्राद्ध
गहरी नींद में हड़बड़ाहट के साथ रवि उठ बैठा और रोते हुए बोला कि पापा कह रहे है कि मैं भूखा है, मुझे खाना खिला दो। तभी पास में सोई हुई उसकी पत्नी मीनल उठ गयी। रवि को ऐसे देख कर पूछा तो रवि ने कहा कि मुझे पापा दिखाई दिए और कह रहे थे कि मुझे खाना खिलाओ।
क्या बात कर रहे हो आप रवि? पापा जी कैसे बोल सकते हैं। उनका देहांत हुए तो 2 साल हो गया है और आज तक तो कभी दिखाई नही दिए। अब क्या हो गया अचानक से मीनल ने कहा
तुम सही कह रही हो... शायद मैं ही सपना देख रहा था इतना कहकर रवि बाथरूम में चला गया।
सुबह मीनल की पड़ोस में रहने वाली शीला जी आई... बोली लो आज मैंने खीर बनाई है तो उसका प्रसाद लायी हूँ... मीनल को देते हुए बोली।
आज मेरे ससुर जी का श्राद्ध है, उन्हें खीर बहुत पसंद थी तो अब मैं उनके श्राद्ध पर हमेशा खीर जरूर बनाती हूँ।
अच्छा मीनल ने कहा...
लेकिन हम तो श्राद्ध नही मानते, न ही कोई खाना किसी पंडित को देते है, हम तो कुछ नही करते... न ही मेरे ससुराल में इस तरह कोई खाना बनाकर पंडितों को दिया जाता है
शीलाजी ने बड़े अचरज से कहा... श्राद्ध तो करना चाहिए .. ये तो हमारा कर्तव्य है, संस्कार है, हमारे समाज की परंपरा है कि जिनकी मृत्यु हो जाती है। उनका श्राद्ध किया जाता है। उनके लिए खाना, कपड़े, और कुछ जरूरी सामान पंडितों को दिया जाना चाहिए। खाना पक्षियों को डालते है... ऐसा करने से हमारे बड़े बुजुर्गों को खुशी मिलती है, उनका आशीर्वाद हमेशा
मिलता है और हमे संतोष मिलता है। लेकिन आज कल की पीढ़ी इन बातों को स्वीकार नही करती। माता पिता के जीवित होने पर जो उनके जिम्मेदारी नही उठाते मरने के बाद वो उनका श्राद्ध भी नही करते। लेकिन मेरी बात मानो तो हमे अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करते हुए इस श्राद्ध को करना चाहिए और अपने बच्चों को भी इस रीति रिवाजों के बारे में बताना चाहिए। अच्छा तो क्या मैं भी श्राद्ध कर सकती हूं मीनल ने पूछा
हां तुम कर सकती हो... शीला ने कहा तुम्हारे ससुर जी की मृत्यु ही चुकी है। तुम भी पंडित से पुछकर श्रद्धा से अपने ससुर का श्राद्ध करो।
तभी रवि भी आ गए मीनल ने रवि को सारी बात बताई तो रवि ने कहा हम भी पापा का श्राद्ध करेंगे। पंडित को खाना खिलाने की बजाए किसी गरीब को खाना देंगे ताकि उस गरीब की दुआ भी मिल जायेगी। रवि और मीनल अपने पापाजी के श्राद्ध की तैयारी करने लगे।
दोस्तों, सच मे आजकल लोग पुराने रीती रिवाज को भूल गए है अब सिर्फ दिखावा रह गया है। पूरी जिंदगी तो जिनको पूछा नही जाता बाद में उनका श्राद्ध किया जाता है... यदि श्राद्ध ही करना है तो उनके जीते जी उनके साथ अच्छा व्यवहार करके करो बाद में क्या होगा किसने देखा है। मरने के बाद कौन क्या करता है, किसने देखा है। उनके जीवन काल मे ही उनकी आत्मा को संतुष्ट रखो ताकि बाद में आपको लोकदिखावे के लिए ये ना करना पड़े।
आप सब का क्या कहना है इस बारे मे। आप भी श्राद्ध करते हो या नहीं। यदि आप नहीं करते तो इसके पीछे आप क्या कारण देते हो ?