Shakuntla Agarwal

Tragedy

4.7  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

"गुनहगार कौन"

"गुनहगार कौन"

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मन उमंग और उल्लास से प्रफुल्लित था | जगह - जगह झूलें डल रहें थे | गोरियाँ रँग - बिरँगे कपड़ों में सजी - धजी झूलें झूल रहीं थी | सखियाँ झूलें दे रहीं थी | गीतों की स्वर - लहरियों से वातावरण गुंजायमान होकर मन को मोहित कर रहा था | हँसी - ठठों से घर - आँगन चहक रहा था | घर में भी खीर - पूरी के साथ पकवानों की महक़ घर - आँगन को महका रही थी | हमारें गॉंव के पास ही रोहतक की व्यंशाला में तीज का मेला लगता था | हर पेड़ पर झूलों का डलना और पकवानों के ठेलों से सजा हुआ बाज़ार, सजी - धजी औरतों के झुरमुट, ऐसा लगता था की जैसे स्वर्ग ज़मीन पर उतर आया है और अप्सराएँ झूला झूल रहीं हैं |

 

मैंने भी सोचा कि मैं भी मेला देख कर आती हूँ और मैं भी रोहतक जाने के लिये रेल में चढ़ गयी | लेकिन ये क्या रेल का डिब्बा खचाखच भरा हुआ था | डिब्बे में कहीं तिल डालने की भी जगह नज़र नहीं आ रहीं थी | जैसे - तैसे मैंने जगह बनायी और मैं खड़ी हो गई | लेकिन जैसे ही मेरी नज़र अपने से दूर एक लड़कों के झुण्ड पर गयी, तो क्या देखती हूँ कि वो वहाँ खड़ी एक लड़की को घूर रहें थे और अपनी अश्लील हरकतों से बार - बार उसे शर्मसार कर रहें थे | वह बेचारी उनसे बचती हुई दुबकी जा रहीं थी | परंतु खचाखच भरे उस डिब्बे में ऐसा लग रहा था जैसे मुर्दे सफर कर रहें हैं | कोई भी उनकी उन अश्लील हरकतों पर आवाज़ नहीं उठा रहा था | इसका परिणाम ये हुआ कि उन भेड़ियों की हिम्मत और बढ़ चुकी थी और अब उन्होंने उस लड़की के अंगों को यहाँ - वहाँ से छूना शुरू कर दिया था | वह लड़की रो - रोकर बेहाल थी, परंतु किसी को उस पर दया नहीं आ रहीं थी | 

 

उसने एक औरत, जो उसके पास ही खड़ी थी, को करुणा भरी निगाहों से देखा | जैसे वो उसे भगवान का दर्जा दे रहीं हो | वह लड़की आगे बढ़ी और उस औरत के सीने से लिपट गयी | उसने उस औरत को ऐसे जकड़ लिया, जिससे कि उसके सारे अंग सुरक्षित हो जायें | परंतु उन दरिन्दों के हाथ अब भी नहीं रुक रहें थे | उनके हाथ अब उसके साथ - साथ उस औरत के शरीर और आत्मा को भी छलनी कर रहें थे | उस खचाखच भरें डिब्बे में उन मुर्दों की भीड़ में से किसी ने भी उनके विरुद्ध आवाज़ उठाने का साहस नहीं किया | मैं यह सोचने पर मजबूर थी कि अगर इनकी बहन - बेटी होती, तो भी क्या यह भीड़ तमाशबीनों की तरह, इन अश्लील हरकतों को क्या यूँ ही सहन करती ? क्या इनमें एक भी मर्द नहीं ?

 

भगवान का शुक्र समझों कि उनका स्टेशन आ गया और वो उतर गये | परंतु उनकी अश्लील हरकतें बंद नहीं हुई | भीड़ में खड़ी वो लड़की, औरत और मैं, यह सोचने पर मजबूर थे कि वास्तव में गुनहगार कौन हैं ? भीड़, वो भेड़िये या हम लड़कियाँ ?

 


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