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Swati Gautam

Inspirational

4  

Swati Gautam

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गुलाब का एक दिन

गुलाब का एक दिन

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आज शर्मा जी के चेहरे पर पसीने की लकीरें हैं, चिंता साफ दिखाई देती है। कोई पूछ ले तो बस, राम; कैसा दिन आ गया है ? कंचन तो ऐसी कभी ना थी। शादी के 15 साल बाद उसे क्या सूझी है ? किसी काम में जी नहीं लग रहा। बताइए कितनी शर्म की बात है कि अगर वो किसी दुकान पर जाकर अपनी पत्नी के लिए गुलाब मांगेंगे ? आज तक कभी गुलाब खरीदे ही नहीं। हां एक दो बार अम्मा के लिए जरूर मंदिर में रखने को गुलाब खरीदे थे, जब वो वैभव लक्ष्मी का व्रत करती थी। कितनी दूर चले जाते थे वो साइकिल दौड़ाते हुए। बड़ा कुआं वाले मंदिर पर। बड़े कूएं के बड़े मंदिर के आस-पास कोई कुआं नहीं था लेकिन अम्मा बताती थी कि पहले वहां एक बड़ा सा कुआं हुआ करता था। वो किसी राजा ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। बताइए प्रेम में लोग कुआं तक बनवा देते हैं, फिर वही प्यार याद आ गया। अरे; प्यार कोई ऐसी चीज थोड़ी है जिसे गुलाब के फूल से दर्शाया जाए। अब हमें तो ये भी नहीं पता कि यह गुलाब का फूल मिलेगा कहां ? अगर नहीं ले गए तो प्रकोप कौन झेलेगा। रात को ही टुन्ना हो गई थीं, जब हमने बोल दिया था," ये क्या बेकार की जिद्द लगा रखी है। तुमको क्या जरूरत है कांति जी से होड़ करने की ? वो मनाती हैं तो मनाएं त्योहार। यह कोई हिंदुस्तानी त्योहार थोड़ी है, और प्यार त्योहार का मोहताज नहीं है। हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं कोरे कागज पर लिख कर ले लो। गुलाब मत मंगाओ। क्या कहेंगे हम दुकान पर जाकर, हम तो बड़े लजा जाएंगे।"

"हाँ, बडे लजा जाएंगे; जहाँ लजाना चाहिए वहां नही आती लाज ? जब माँ बहन की गाली कूद-कूदकर देते हैं। हमें कुछ नही पता हमको चाहिए गुलाब, कुछ भी हो। पिछली बार जब कांति के यहाँ गई थी, तो ना चहाते हुए भी, उसके फ्रिज पर ग्लास में सजे गुलाब को देखकर पूछ बैठी और कांति गौने आई दुल्हन की तरह शर्मा गईं।"

"तुम समझो। हमारी ग्यारह साल की बिटिया हो गई, क्या बढिया लगता है ये सब ?"

"तभी कह रही। खुद बताती है आज कोयल कि मम्मी पापा घूमने गए, मम्मी आप और पापा जब घूमने जाओगे मैं आपकी चोटी बनाऊँगी। मैं कौनसा कह रही हूँ ,गुलदस्ता ले आओ। एक गुलाब तो जाने कहाँ छुपकर आ जाएगा।"

"बडे बाबू ?" रवि ने टेबल बजाइ ,"कहाँ खोए हैं।"

"कही नही; बोलिए।" अपनी स्थति का भान करके शर्मा जी चौंके।

"आज हम जल्दी जा रहे हैं, सँभाल लीजिएगा।"रवि के चहरे पर गुलाब खिल गए," जरा शाम को मिसेज के साथ घूमने का प्लान है।" कोई और दिन होता तो जान भी ना पाते, आज तक कहां जाने थे कि ऐसा भी कोई दिन होता है, जिस पर गुलाब दिया जाता है; पर अब तो अच्छे से समझते थे, कहां जाने की तैयारी है ? शर्मा जी मन ही मन सोचने लगे, संभालने को तो हम पूरा देश और प्रधानमंत्री की कुर्सी भी संभाल लें लेकिन गुलाब कहां मिलेगा और सबसे बड़ी दिक्कत हम मांगेंगे कैसे ? सोचे, आज का लौंडा है रवि से पूछ लें हिम्मत जुटाकर बोले," लेकिन वो मिलता कहां है ?"

" वो, वो क्या ?"

" अरे ! भाई, गुलाब का फूल।" रवि ने जोर से हंसते हुए खिल्ली उड़ाई और कहा," आप किसको दे रहे हैं ?" शर्मा जी रौब में आकर बोले," किसको दे रहे हैं से क्या मतलब ? पत्नी को दे रहे हैं।" शांत करने के मूड में रवि ने दोनों हाथ शर्मा जी के कंधे पर रखे और आंख मारते हुए बोला," नुक्कड़ पर फूलों की दुकान है।" दुकान देखते शर्मा जी सोच में पड़ गए, रोज यहां से निकलते हैं, आते जाते कभी नजर क्यों नहीं पड़ी ? अपनी पैंट की जेब में हाथ डाले और इधर उधर देखा कहीं कोई आ जा तो नहीं रहा ? सामने से ऑफिस के मदन लाल जी का स्कूटर गुजरा तो अपना मुँह लंच बॉक्स से छुपा लिया, कहीं ऐसा ना हो मदनलाल कल ऑफिस में जाकर यह अफवाह फैला दे कि हम गुलाब की दुकान पर खड़े थे। भारी बेइज्जती हो जाएगी। पहले फूलो को ऊपर से नीचे तक देखा, लगते तो बढ़िया हैं। बताइए ईश्वर ने कितनी सुन्दर-सुन्दर चीजें बनाईं हैं। फूल इतने सुंदर आज से पहले कभी नहीं लगे।

"क्या चाहिए भाई साहब ?" आवाज सुनकर शर्मा जी एसे डरे जैसे चोरी पकड ली हो।अम्मा-बाबू जी ऊपर से देखकर मानो कह रहे हैं, 'नालायक इसी दिन के लिए बडा किया था; एक फूल भी ना माँग पाओ।' गले के थूक को सटककर शर्ट की बाजू बटन खोलकर ऊपर चढाकर, खुद को सामान्य दिखाते हुए, यूँ जल्बाजी में बोले जैसे रोज फूल खरीदते हैं पर दुकानदार पहचानने से इनकार कर रहा है,"एक गुलाब दीजिए।"

"माफ कीजिए भाई साहब खत्म हो गए।" अब कैसे समझाएंगे ? कंचन तो विश्वास तक नहीं करेगी हमारी बात का।अरे हम कैसे मूर्ख हैं, हमको कोई और फूल लेना चाहिए था, उसी में मान जाती बेचारी भोली है। हजार की साडी दिलवाने का वादा करके, सात सौ की दिलाते हैं, तब भी इतनी ही खूश होती है। अब वापस जाएं भी तो दूर निकल आए।शर्मा जी वापस मुड़े भी, फिर सोचे अगर दुकान बंद हो गई होगी तो ?

कंचन गुलाब के फूल को रखने के कई जगह तलाश चुकी है। फ्रिज के ऊपर या टी वी के ऊपर; नही बैड के ऊपर, नही हाॅल में कांति की बिना बताए ही नजर चली जाएगी। हुंह..क्या समझती है उसके पति को ही प्यार जताने के तरीके आते हैं ? दरवाजे पर आहट हुई, तो खुद को एक बार प्रेमिका की तरह शीशे में निहारा, बिना गुलाब के ही उसके चेहरे पर वैसा निखार है।क्यों ना हो पहले तो कभी माँ बाप ने घर से बाहर ना निकलने दिया, अब पति को भी ये बातें सिखानी पड रही हैं, गुलाब में कोई ढेर नोट लगते हैं क्या ? 

घर का दरवाजा खोलते ही कंचन की नजर शर्मा जी पर पडी। बाजू के बटन खोलकल फोल्ड किए हुए, जगह जगह लगे मट्टी के निशान, बिखरे बाल, एक जूता कीचड़ में सना हुआ, अंत में नजर गई हाथ में सूजन पर। क्या हुआ ? कंचन ने फटाफट अपनी बेटी को पुकारा," गुड़िया आयोडैक्स लेकर आओ कितनी सूजन आई। क्या हुआ आपको चोट कैसे लगी ? शर्ट के बटन खोलते हुए शर्मा जी ने गुलाब निकालकर कंचन को दे दिया। कंचन ने गुलाब हाथ से खींचते हुए, सोफे पर पटककर कहा,"आपको इसकी पड़ी है।मैं कुछ पूछ रही हूं, हुआ क्या ?"

" अरे कुछ नहीं, जरा सा गिर गया था।" 

"आप डरा देते हैं मुझको।" सोफे पर दूसरी तरफ, लावारिस पडे हुए गुलाब को देखकर, शर्मा जी मुस्कुराते हुए सोच रहे हैं। आज वह भी करवा दिया, जो आज तक कभी नहीं किया। कैसे रास्ते से गुजरते हुए, जब एक लड़की ने एक लड़के को चाँटा मारकर गुलाब तारों वाली बाउंड्री के पार फैंक दिया और वो उस छोटी सी तार की बाउंड्री को, ढंग से कूद भी न पाए और गिर गए। एकदम शाहरुख खान जैसा लग रहा था। आयोडेक्स मिलती हुई पत्नी के बालों को फूंक मारते हुए शर्मा जी बोले," आज तो गजब दिखती हो।"

" बताइए, हाथ मैं इतनी सूजन आ गई। 11 साल की बेटी हो गई, कहीं से निकल आई, तो हम तो मर जाएंगे लाज से। तुम्हें हीरो बनने की पड़ी है ?" कंचन किसी हीरोइन की तरह शर्मा जी के हाथ पर आयोडेक्स मल रही है और गुलाब उपेक्षित सा पड़ा जल रहा है सोफे के कोने में।


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