गोपाल
गोपाल
नौवीं कक्षा में पढ़ने वाला "गोपाल" एक बहुत ही होनहार लड़का था। अपनी कक्षा में गोपाल हमेशा अव्वल आता था। माता पिता और सभी टीचर्स को उससे बहुत उम्मीदें रहती थीं। गोपाल भी जी जान लगा कर दिन रात मेहनत करता यहां तक कि कभी-कभी तो पढ़ाई करने के जोश में खाना भी भूल जाता था।
इसी प्रकार दिन बीत रहे थे और वार्षिक परीक्षा का समय आ गया। सभी विषयों की परीक्षाओं में गोपाल फिर से अव्वल रहा। 99 प्रतिशत अंक प्राप्त कर गोपाल की खुशी का ठिकाना ना रहा। माता पिता और सभी टीचर्स उसकी इस कामयाबी पर बहुत खुश थे।
माता-पिता ने सोचा बेटे ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है तो उसे उपहार भी कुछ बड़ा मिलना चाहिए, इसी जोश में आकर गोपाल के माता-पिता ने उसे एक बहुत ही कीमती मोबाइल उपहार स्वरूप दिया। मोबाइल पाकर गोपाल की खुशी का ठिकाना ना रहा, मानो उसे कोई बड़ा खज़ाना मिल गया हो।
गोपाल अब दसवीं कक्षा का छात्र था इसलिए उसे अब मेहनत भी दुगनी करनी थी, पर मोबाइल की चकाचौंध की दुनिया में वो ऐसा खो गया कि दिन-रात बस दोस्तों से चैटिंग करना, गेम खेलना और वीडियो देखने में ही समय बीत जाता था। पढ़ाई को "कल में टालकर" वो मां बाप की बातें भी टालता रहा।
गोपाल की मां को लगा अभी नया नया जोश है फिर खुद ही पढ़ाई में इसका मन लग जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ गोपाल धीरे-धीरे पढ़ाई में पिछड़ता गया। गोपाल की मां उसे जब भी पढ़ने के लिए कहती, गोपाल का बस एक ही जवाब होता था, "मां आज थोड़ा खेलने दो कल मैं ज्यादा समय पढ़ लूंगा।"
पर गोपाल का "कल" कभी नहीं आता था। मोबाइल उसके हाथों में देकर उसके माता-पिता भी बहुत पछता रहे थे।
खैर ! जैसे-तैसे दिन बीते 10वीं की बोर्ड परीक्षा का समय भी नजदीक आ गया और गोपाल पर अब भी किसी के समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था।
परीक्षा हुई परिणाम आया पर उत्तीर्ण बच्चों की सूची में गोपाल का कहीं नाम ना था अब तो भोपाल के पैरों के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई। मोबाइल की लत ने आसमान से सीधा जमीन पर पटक दिया इस बात का अहसास उसे अब हुआ।
गोपाल के माता पिता को भी बहुत तकलीफ हुई पर उन्होंने समझदारी से काम लिया। उन्होंने गोपाल को समझाया अभी तुम्हारे पास समय है फिर से परिश्रम करो और जो कुछ भी तुमने खोया है उसे दुबारा हासिल करो, पर एक बात हमेशा याद रखना जो आज का काम है उसे आज ही करो कभी "कल" पर मत टालो। क्योंकि "कल" कभी नहीं आता है।
गोपाल ने अपनी गलती मानी और मन लगा कर दिन रात परिश्रम कर फिर से वही होनहार गोपाल बन गया। "कल ज्यादा समय पढ़ लूंगा" इस गलती को गोपाल ने अपने जीवन में दोबारा कभी नहीं दोहराया। गोपाल के माता-पिता को भी अपनी गलती का एहसास हुआ कि उन्हें जोश में आकर बेटे को मोबाइल नहीं देना चाहिए था।
आज न जाने कितने बच्चों का भविष्य इन गैजेट्स की वजह से ही अंधकार में जा रहा है इसकी चकाचौंध बच्चों को पढ़ाई से विरक्त कर देती है हम अभिभावकों को यह समझना होगा कि बच्चों को जरूरत होने पर ही मोबाइल दें और अगर दें तो उसका सही इस्तेमाल भी बताएं और इस्तेमाल की एक समय सीमा भी तय करें।
जो करना है आज कर लो बीता समय फिर ना आएगा,
आज का काम कर पे टाला तो पछतावा ही हाथ आएगा,
चकाचौंध में फंस कर लक्ष्य से ना अपनी नजर हटाओ,
ये चकाचौंध पल भर है तुम अपनी मजबूत चमक बनाओ।