Dr.manju sharma

Drama

4.9  

Dr.manju sharma

Drama

गोलू की कारगुजारी

गोलू की कारगुजारी

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कंधे पर बस्ता, हाथ में पानी की बोतल, गोलमटोल सा गोलू, मुँह फुलाए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। कंकरिया उठा-उठा कर इधर-उधर फेंक रहा था। गुस्से में मुँह टमाटर सा लाल हो गया था।


अचानक भारी आवाज़ ने उसका ध्यान भंग किया।


“गोलू तुम उदास क्यों हो?”


गोलू ने चारों ओर देखा। कुछ नहीं दिखा, फिर वह ऊँघने लगा। बच्चों सी खिलखिलाहट सुनाई पड़ी सर्र- सर्र। गोलू ने तिरछी आँखे कर ऊपर देखा। पेड़ की लंबी-लंबी शाखाएं लंबी दाढ़ी सी लटक रही थी। पेड़ हिला और कहने लगा “गोलू क्या बात है स्कूल क्यों नहीं गए?”


“नहीं मुझे स्कूल नहीं जाना” उसे सुबह की बात याद आ गई और मन रुआंसा हो गया। गोलू ने उस आवाज़ से पूछा “पर तुम कौन हो?”


“तुम नहीं आप। जिसकी ठंडी छाया में तुम आराम कर रहे हो”


“अरे पेड़ बाबा आप बोल सकते हैं? हाँ पर कोई सुनता ही नहीं”


“आप क्या कहना चाहते हैं?” गोलू ने पूछा जैसे कह रहा हो ‘मैं हूँ ना’


पेड़ ने कहा “मैं तो लोगों को समझाना चाहता हूँ”


गोलू “पर क्या?” उसने अपनी हथेली नचा दी।


पेड़ “यही कि हमें मत काटो, हमें काटकर अपने पैरों पर क्यों कुल्हाड़ी मारते हो?”


और इसी तरह आवाजें आने लगी “हमें मत काटो, हम मर जाएगें , हाँ-हाँ हम मर जाएँगे”


गोलू के भोले चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आई। उसने कहा “पर क्यों?”


“क्योंकि तुम (मनुष्य) लोग हमें काट रहे हो,इतना ही नहीं हम प्यासे मर रहे हैं”


और महीन सी थकी आवाज आई गौरय्या ने कहा “मुझसे तो उड़ा भी नहीं जाता”


गोलू ने चारों-ओर नज़र दौड़ाई सब सूखा सूखा। कहीं पर कांच की बोतलें, कहीं प्लास्टिक की थैलियाँ, तो कहीं कचरे का ढेर। पेड़ों की टूटी टहनियां और सूखी क्यारियां।


गोलू ने सोचा क्यों न हम इस पार्क को हरा भरा बनाएँ। वह था भी बहुत समझदार। आज वह विचलित था तो दूसरी ओर उसके मन को पंख लग चुके थे। वह योजना बनाते-बनाते निदियाँ रानी की गोद में चला गया।सुबह जल्दी तैयार होकर स्कूल गया। उसने अपने दोस्तों को बुलाया और अपनी योजना बताई।


रिंकू ने कहा “पर गोलू यह हम कैसे कर...?”


“अरे हिम्मत करो तो कतरा भी दरिया बन सकता है”


सभी दोस्त उसका मुँह देखने लगे। “अरे वाह ! गोलू तुम तो बडकू भैय्या बन गए हो”


सुमी “यह मजाक का समय नहीं है। गोलू का विचार अच्छा है। हमें उसकी सहायता करनी चाहिए”


सबने एक साथ कहा “हाँ- हाँ हम साथ-साथ हैं”


गोलू “तो सुनो आज से हम अपना गृहकार्य जल्दी पूरा करेंगे”


“हाँ-हाँ”


गोलू “और टी.वी. कम देखेंगे”


पिंकी “लेकिन मिक्की माऊस ...? उसने छोटे- छोटे गुलाबी होठ खोले”


गोलू समझाने लगा “देखो अच्छा काम करने के लिए थोड़ी तकलीफ तो होगी ना”


पिंकी ने हाँ में सर हिलाया।


“देखो-देखो सब आ रहे हैं”


“हाँ ठीक है बाकी बाते बाद में”


“डन डन”


सभी लंच ब्रेक में मिले। “रास्ते में वो पार्क है ना वो जहाँ काँच की बोतलें और कचरा पड़ा रहता है”


पिंकी “छी... कितनी गंदी जगह...”


उसने नाक पकडी। सुमी ने समझाया पहले पूरी बात सुना करो।


सॉरी दीदी और पिंकी ने कान पकड़ लिए।


गोलू “ठीक है, ठीक है। कल से हम हर दिन एक घंटा काम करेंगे”


क्या काम...?


गोलू “छोटे – छोटे गड्ढे बनाएँगे, उसमें खाद डालेंगे, फिर पौधा लगाएँगे और खाली जगह हरी- भरी हो जाएगी”


पिंकी ने खुश होकर कहा और सभी ताली बजाने लगे “और सूखे पेड़-पौधों में पानी देंगे आखिर उन्हें भी तो प्यास लगती होगी”


सबके चेहरे हरिताभ हो उठे।


सब अपना-अपना काम मेंहनत और लगन से करने लगे। गोलू में आए परिवर्तन से सभी हैरान थे, पर दादाजी उसकी कारगुजारी को ताड़ गए। गोलू आता जल्दी-जल्दी अपनी पढ़ाई करता और सो जाता उसके मुख पर मेंहनत और शुभ कार्य की मुस्कान बिखरी रहती। ना टी.वी. ना आइपैड ना ही कंप्यूटर गेम्स।


आज रविवार है। गोलू तो पाँच बजे ही उठ खड़ा हुआ। दादाजी की अनुभवी आँखों से भला क्या छुप सकता था। उनके पूछने पर गोलू ने विस्तार से सारी बात बताई। दादाजी का सीना चौड़ा हो गया उन्होंने मूछों को ताव दिया और उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले “बिटवा तुमने नेकी का अलख जगाया है मैं भी तुम्हारे साथ हूँ।” अब क्या था जीवन का गहन अनुभव और नव उल्लास मिलकर काम कर रहे थे। देखते-देखते पौधे बड़े होने लगे। आने – जाने वालों की आँखे एकबार उधर टिक ही जाती। उन बच्चों के अदम्य साहस और नेक विचार से अब पार्क हरा -भरा हो उठा।


आज विद्यालय का वार्षिकोत्सव है। प्रधानाचार्य ने गोलू और उसकी टीम को बधाई दी तथा पर्यावरण सरंक्षण के लिए पुरस्कार भी दिया। दादाजी का चेहरा गर्व तथा ख़ुशी से चमक रहा था। बच्चों की सराहना सुनकर सभी अभिभावक बहुत खुश थे।


जोशी सर ने गोलू से पूछा कि “तुम्हे इस कार्य की प्रेरणा कहाँ से मिली?”


गोलू ने कहा एक दिन मम्मी ने मुझे आईपैड नहीं दिलाया तो मैं गुस्से में स्कूल नहीं गया और पार्क में जाकर बैठ गया। वहां प्यासी चिड़िया और दुखी पेड़ों को देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा। इसलिए...”


तभी एक चहकती चिड़िया वहां से उड़ी मानो वह धन्यवाद देने आई हो।


तालियों की गड़गडाहट से सभागार गूंज उठा।


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