गलतफहमी

गलतफहमी

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पूजा पाठ निपटा कर सरला काकी फिर दरवाज़े पर बैठ गईं, सूप में सूखे चावल बीन रही हैं कि तभी गाँव के पंडित जी आये और पूछा-

"सरला बहन, कितने सालों से देख रहा हूँ तुम्हें। यूँ ही रोज़ सुबह से शाम तक दरवाज़े पर ही बैठी रहकर काम करती हो। किसका इंतज़ार है तुमको ?"

"पंडित जी जो तुम मुझे इतने सालों से जानते हो तो ये नहीं जानते कि मैं हर शाम मंदिर में किसके नाम का दीपक जलाती हूँ भोले के आगे। मैं अपने पोते की राह देख रही हूँ। कभी ऐसा ना हो कि वो मुझे ढूँढता हुआ आये और मैं अंदर हूँ और वो यूँ ही घर ढूंढता हुआ निकल जाए। वो बड़े शहर में रहता है ना, गाँव के बारे में उसे क्या पता।"

"बहन तेरा बेटा जो शहर का हुआ वो तो आज तक पलट कर आया नहीं... तो पोता कहाँ से आएगा, अपने मन को भ्रम से जितनी जल्दी निकाल लोगी उतना अच्छा रहेगा।"

"पंडित जी...कभी कभी ज़िंदा रहने को कुछ गलतफहमियाँ ज़रूरी होती हैं।"


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