गलती कर दी घर से भागकर
गलती कर दी घर से भागकर
सुनसान सड़क के बीचों बीच आँखों में आँसू लिये खड़ी निया समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर वो किस तरफ जाये। उसने एक बार फिर नजरें उठाकर चारों तरफ देखा सारा शहर नींद के आगोश में जा चुका था। उसे लग रहा था कि सड़क के दोनों ओर लगी कतारबद्ध लाइटें भी सर झुकाकर उससे बोल रहीं है......
"मैडम इतनी रात को यहाँ क्यों खड़ी है? घर जाइये। "
घर याद आते ही लगा चाँद बादलों से लुका छुपी करके उसे चिढ़ाता हुआ बोल रहा है......
"और भागो घर से, अब तो यहीं सड़क पर भटकोगी तुम या फिर कोई मानव पकड़ कर ले जायेगा उस घिनौने दल-दल में जहाँ से अभी तुम बचकर भाग निकली हो। और लाइट, सड़क, चाँद सभी हा हा हा हा करके हंस पड़े हो।"
इतनी आवाजें एक साथ सुनकर निया कान पर हाथ रख पागलों की तरह चिल्लाने लगी " चुप हो जाओ, माफ कर दो मुझे... बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने घर से भाग कर... माफ कर दो मुझे।"
और निढाल होकर वहीं सड़क किनारे डिवाइडर पर बैठ गई। खुद से ही बात करते हुये मान जाती सभी की बात तो आज ये भयानक रात न देखनी पड़ती। कितना प्यार करते थे उसके मम्मी, पापा उसे। पर उसपर तो मानव के प्यार का भूत चढ़ा था।
था भी तो वो कॉलेज का सबसे हैंडसंम और अमीर लड़का। जिससे कॉलेज की ज्यादतर लड़कियाँ दोस्ती करना चाहती थी। पर मानव ने दोस्ती के लिये सुंदर सी
निया को चुना था। शुरुआत की थोड़ी न नुकर के बाद आखिर निया भी मान गई। पहले दोस्ती हुई फिर दोस्ती प्यार में बदल गई। और कॉलेज के बाद जब निया के पापा ने उसकी शादी के लिये उसे किसी लड़के से मिलवाना चाहा तो उसने साफ शब्दों में उन्हे मानव के बारे में बता उसी से शादी करने की बात की।
एक बार को तो लगा कि पापा मान गये है। पर फिर पता नहीं उन्हे मानव के बारे में क्या पता चला कि वो निया की शादी मानव से करवाने के बिल्कुल खिलाफ हो गये। निया बहुत रोई, पर हर बार निया के पापा ने ये बोलकर कि.....
"वो बड़े बाप का बहुत बिगड़ा हुआ लड़का है वो तुम्हारे लिये सही नहीं है। तुम उससे दूर रहो ।"
निया को समझा देते। माँ भी पापा के साथ थी।
एक दिन मानव के प्यार में अंधी होकर वो सब छोड़ उसके साथ घर से भाग निकली। दो तीन दिन तक तो मानव उसके साथ ठीक रहा फिर कुछ अलग -अलग सा रहने लगा। उसे देखकर यूँ लगता जैसे वो कोई प्लान बना रहा हो।
एक दिन निया ने छुपकर मानव की बातें सुनी वो उसे किसी को दस लाख में बेचने की बात कर रहा था। निया समझ गई कि मानव उसे प्यार का झांसा देकर देह धंधे में धकेलने वाला है। ये बात उसने मानव पर जाहिर नहीं होने दी की वो उसके प्लान के बारे में जानती है। और एक दिन मौका देखकर वो वहाँ से भाग निकली।
निया अपने विचारों में खोई थी कि तभी एक गाड़ी उसके पास आकर रुकी जिसकी आवाज सुनकर बिना कुछ देखे निया बदहवास हो भागने लगी पीछे कोई
"निया... निया" की आवाज लगाता हुआ उसके पीछे दौड़ने लगा। आखिर उसने निया को पकड़ ही लिया। निया ने बिना देखे ही हाथ जोड़कर उससे....
" प्लीज मुझे छोड़ दो, प्लीज मुझे छोड़ दो" की रट लगा ली।
तभी निया को पकड़े हुये शख्स ने निया को झझोड़ते हुये कहा.... "आँखें खोलो निया मैं हूँ तुम्हारा दोस्त केशव"
निया ने डरते डरते आँखें खोली और सामने अपने बचपन के दोस्त को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी। केशव निया को सहारा देकर गाड़ी तक लाया और उसे उसमें बिठाकर पानी पिलाया। जब निया थोड़ा संयत हुई तो केशव उसे डांटते हुये बोला....
"ये क्या है निया तुम एक बार मानव के चंगुल से छूट कर निकल आई तो तुम्हें दुबारा इस तरह सुनसान सड़क पर नहीं आना चाहिये था। अगर वो वापिस आ जाता तो?"
"तो सही होता ले जा कर बेच देता मुझे उस दलदल में वैसे भी मेरी फिक्र किसे है। तुम्हें पता है मानव के चंगुल से निकालकर मैं सीधे घर पापा के पास गई थी। पर उन्होंने मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया ये बोलकर कि "अब मुझसे उनका कोई नाता नहीं"!
सिसकते हुये निया बोली तो केशव निया के आँसू पोंछते हुये बोला...
" सब पता है मुझे, तुम्हारे घर से निकलने के बाद आन्टी का फोन आया उन्होंने मुझे तुम्हारे बारे में सब बताने के बाद ये भी कहा कि मैं जाकर तुम्हें अपने घर ले जाऊँ। क्योंकि अंकल अभी बहुत गुस्से में है।"
"देखा मैंने कहा था न कि पापा चाहते ही नहीं की मैं घर वापिस आऊँ। अब तो मेरे पास एक ही रास्ता है कि मैं मर जाऊँ। "
रोते हुये जब ये बात निया ने कहीं तो केशव ग़ुस्से में निया से चीखते हुये बोला......
" बस !! बस करो तुम ये खुद को बिचारी बताने का ड्रामा। तुम बस हमेशा अपनी सोचती हो। अंकल के मना करने के बावजूद तुम उस लफंगे मानव के साथ घर से निकल गई। बिना ये सोचे की इकलौती बेटी के जाने के बाद तुम्हारे माँ, बाप पर क्या बीतेगी।
और अब जब वापिस आई हो तो अंकल के जरा से डांटने पर निकल पड़ी अपनी जिन्दगी खत्म करने। तुमने कभी ये सोचा कि उन्हें कितना दुःख पहुँचाया है तुमने? कितनी जिल्लत उठाई है उन्होंने सभी के सामने तुम्हारी वजह से? और तुम चाहती हो कि वो तुम्हें एक बार में ही माफ कर दें।
अरे उन्हें थोड़ा टाइम तो दो। तुम्हें उन्हें मनाना चाहिये था। उनके दरवाजा बंद करने पर तुम्हें वहीं बैठे रहना चाहिये था। बार-बार माफी मांगनी चाहिये थी। दरवाजा खुलवाने की कोशिश करनी चाहिये थी। न की यूँ सुनसान सड़क पर निकल आना था फिर से किसी मुसीबत को निमंत्रण देने के लिये।"
केशव की बातें सुनकर निया को समझ आ गया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। तो वो उसके साथ चल पड़ी अपने माँ, पापा से अपने किये की माफी माँगने। कहीं न कहीं उसे विश्वास भी था कि वो लोग उसे माफ जरूर कर देंगे। और मन ही मन है संकल्प भी ले लिया था निया ने की आज के बाद वो वही करेगी जो उसके मम्मी, पापा कहेंगे क्योंकि दुनिया में माँ बाप से ज्यादा हमारा भला और कोई नहीं सोच सकता।
