घुटन

घुटन

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आज की तारीख में कोई लड़की अगर मुझको पूछे कि क्या उसको अपने पसंद के लड़के से शादी करनी चाहिए या माँ बाप के पसंद से तो मेरा जवाब होगा अपनी पसंद से जो भी होगा तुम्हारा निर्णय होगा।

मैंने जब अपने घरवालों की पसंद आए शादी की तो सोचा कि भगवान की मर्ज़ी है और अपने माँ बाप की खुशी, फिर वरुण से शादी कर लिया। जय का और अपना दिल तोड़ के। क्योकि तब तक जय की कोई नौकरी नहीं थी, पापा को तो सरकारी अफसर चाहिए था, मुझसे पहले भाई ने अपनी पसंद से शादी कर ली थी और पापा ने इस बात को दिल से लगा लिया था। तबियत खराब हो गयी थी उनकी, और तब उन्होंने कहा था तुम लोग अपनी मर्ज़ी करो मैं तो अपनी लाडो की शादी अपने तरीके से करूँगा। ये सुनने के बाद मेरी हिम्मत ही नहीं हो पाई उन्हें जय के बारे में बताने की। जय ने तो अभी अभी पढ़ाई खत्म किया था,कोई नौकरी नहीं,घर से भी बहुत मजबूत नहीं था, क्या कह कर उसको पापा के सामने लाती?? मुझे कोई चिंता नहीं थी,आज नहीं तो कल वो कुछ कर ही लेता,मुझे तो उस पर पूरा यकीन था। मुझे बस उसका साथ चाहिए था क्योंकि मैं जानती थी कि वो मुझे कितना ज्यादा प्यार करता है और मैं भी। मैंने तो उसके बिना ज़िन्दगी सोची भी नहीं थी। और जो नहीं सोची वो ज़िन्दगी मुझे मिली।

वरुण के साथ शादी हो गयी, दिल टुकडों को समेट कर जीने की कोशिश की पर उसने और उसके घर वालों ने शायद कभी मुझे दिल से अपनाया ही नहीं या यूं कहिये की जय का दिल तोड़ने की सज़ा मिली। मेरी ज़िंदगी से प्यार कहीं दूर चला गया। अब सिर्फ ज़िम्मेदारी थी घर के लिए, वरूण के लिए। जब जब दिल के टुकड़ों के साथ मुस्कुराना चाहा, वरुण ने और टुकड़े कर दिए। अब तो सारे ज़ज्बात कहीं खो गए। सिर्फ जिस्म बन के रह गयी मैं।

इस बार घर गयी तो बरसों बाद जय को मिली,वो अपनी वाइफ के लिए कितना फिक्रमंद है। उसकी छोटी छोटी खुशियों का भी कितना खयाल है उसे। ये सब देख कर, सुन कर दिल ही दिल मे रो दी मैं। जिस प्यार और फिक्र की मैं हक़दार थी वो आज किसी और के नसीब में है। जलन भी होती है और खुशी भी। मैं तो सारी उम्र जय की कमी के साथ जी रही थी पर उसकी लाइफ में कोई कमी नहीं थी। नौकरी, पत्नी, बच्चे, अपना घर सब था उसकी लाइफ में।

उसका दिल दुखाने की सज़ा तो भगवान ने मुझे दे दिया, मेरी ज़िन्दगी से एक फिक्र करने वाला, प्यार करने वाला इंसान हटा के, सिर्फ अपने मतलब से प्यार करने वाला इंसान दे कर। पर जिसका मैंने दिल तोड़ा, उसका दिल तोड़ने के पहले मैंने अपने दिल को अपने ही हाथों कुचल दिया वो भगवान को नहीं दिखा, मैं तो दो दो दुख झेल रही हूं, अपने दिल का और उसके दिल का भी। आप जिसे बेइंतेहा प्यार करे उसको आपकी वजह से तकलीफ हो तो ये बात खुद को भी डबल तकलीफ देती है,ये मैंने तब जाना। मैंने उसको अलग अपनी खुशी से नहीं, मजबूरी से किया। मेरी सज़ा तो खत्म ही नहीं हो रही। थक गई हूं अब। पता नहीं ऊपर वाले को मुझ पर रहम कब आएगा ? अब अक्सर ये लगता है कि मुझे भी अपनी मर्ज़ी से करना था, घरवाले तो मान ही जाते, कम से कम हम तो जीते! रोज़ रोज़ अपने दिल के टुकड़े समेटने तो नहीं पड़ते। रोज़ ही मन अफसोस तो न करता। अपनी खुशियों को मैंने खुद ही जाने दिया,क्या शिकायत करू किसी से। ये तो सब मेरी बदकिस्मती है और कुछ नहीं। जय तुम हमेशा खुश रहो। तुम्हे खुश न देख पाऊं तो मोहब्बत कैसी।  

  रोज़ खुद को इस बात पे कोसती रहूंगी की क्यों मैंने उसको जाने दिया,अपने हाथों अपनी खुशी लुटा दी।

बस इस तसल्ली के साथ मरूँगी की पापा और माँ इस बात से खुश हैं कि मेरी शादी उन्होंने अपनी मर्ज़ी से की और अपने हैसियत से भी। तो क्या हुआ जो मैं रोज़ घुटती हूँ। अब ये घुटन ही मेरी ज़िंदगी है।


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