मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई

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कल ही कि तो बात है, वो मुझे मिलने आये। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे वक़्त भाग रहा है, थम जा रे वक़्त,आज ही तुझे क्यों तेज़ चलना है, दो घड़ी चैन से उनका दीदार तो करने दे। मैं भागती सी स्टेशन पहुँची, उन्हें फ़ोन किया, वो बोले ज़रा मुड़ कर तो देखो। दौड़ के उनके सीने से लग जाने का दिल किया, पर ज़माने की शर्म ने रोक लिया। फिर हम अपने रूम पे आ गए, जैसे ही मैंने रूम का दरवाज़ा बंद किया, उन्होंने झट से मुझे गले लगा लिया।

ऐसा लगा जैसे तपती ज़मीन पर पानी की फ़ुहार हुई। एक दूसरे की बाहों में प्यार भरे लम्हे ऐसे जा रहे थे मानो अब कभी जुदा न होंगे। कई घंटे बाद वो बोले अच्छा मैं अब चलूँ, फिर मिलने आऊंगा। मैंने कहा नहीं रुक जाओ एक घंटे और बस, वो बोले एक घंटे बाद भी तो जान ही है ना।अब चलता हूँ। वैसे तुम कहो तो रुक जाता हूँ पर जाना तो है ना, और ये कहते हुए वो तैयार भी हो गए। मैंने भी अपना दिल मार के कहा हाँ ठीक है। फिर मैं उनके साथ ही स्टेशन आ गयी, सोचा इसी बहाने थोड़ा समय और मिलेगा।

वहां भी बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं, लेकिन समय ज़रूर खत्म हो गया। भीगी पलकों से मैंने उन्हें जाते देखा, वो भी शायद नोटिस किये लेकिन कुछ कहे नहीं। मैं नम आँखें लिए, भारी मन से घर वापस आ गयी। सोचा मुझे कल पहुँच कर फ़ोन करेंगें और मेरे आंसूओं का सबब पूछेंगे, लेकिन उनका एक फ़ोन नहीं आया, नहीं कोई मैसेज। मैंने सोचा प्यार में क्या तेरा मेरा, चलो उनके पास टाइम नहीं तो मैं ही कर लेती हूँ, और मूझे जवाब मिला, की फुर्सत से कॉल करूँगा। आज चार दिन हो गए उनके पास फुर्सत का एक पल भी नहीं हुआ। दिल तो ज़ोर ज़ोर से रो रहा है, पर आवाज़ नहीं है। आँखों को रोकने के चक्कर मैं गला भर जा रहा है पर आँसू बाहर नहीं आने दे रही मैं।

सोच रही हूँ वो इतना पत्थर दिल किए हो गया कि उसको मेरी तन्हाई और मेरा ख्याल भी नहीं आया। मेरे दिल के दर्द को उसने नज़रअंदाज़ किया या वो समझ नहीं पाया ?? आखिर कहां कमी रह गयी मेरे प्यार में???



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