इंतज़ार
इंतज़ार


आज कितने दिन हो गए जय तुम कहाँ हो ? कोई फोन नहीं,कोई मैसेज नहीं। मुझे मना करते हो,और खुद करते नहीं हो। क्या करूँ मैं ? लगता है तुम्हें भी वक़्त और जमाने की हवा लग गयी है। प्यार भी कमर्शियल हो गया क्या ? तुम तो कहते थे कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, क्या हुआ ? आज भी याद है वो दिन जब तुम पिछली बार महीनों बाद मुझे मिलने आये थे। तुम्हारी ही चाहत थी कि मैं सफेद सूट और लाल दुप्पटे में आऊं, और मैंने भी महसूस किया कि मुझ पर वो बहुत अच्छा लग रहा था। तुम मुझे देखते ही बोले 'वाओ'। तुम्हारी आँखों मे वो प्यार मैं महसूस कर रही थी। फिर हम दोनों बोटिंग के लिए गये, मैं वो
लम्हे भूल ही नहीं सकती। तुम्हारा साथ, ठंडी हवा और पानी, सबने मिल के शमा कितना सुहावना बना दिया था। पूरा दिन कैसे निकल गया खबर ही नहीं लगी, पर हर लम्हा मैंने जिया था। काश वक़्त वहीं रुक गया होता। जाते समय तुमने मुड़ के देखा और कहा अभी जाने का मन नहीं हो रहा, पर जाना होगा।
वो दिन और आज का दिन। तुम आये नहीं, आये तो बस दिन, हफ्ते और महीने, जिनमे तुम नहीं थी। मैं पलके बिछा कर तुम्हारी राह देख रही हूँ। और अगर दिल भर गया तो प्लीज बता दो, दिल घबराता है। ये लम्हे बजे भारी हैं ।
हर लम्हा तुम्हें याद किया, तुम भूल गए पर
हमने हरदम तुम को ही प्यार किया ।।