बेज़ुबान दर्द
बेज़ुबान दर्द
आप जिसे प्यार करे वो आपसे दूर हो तो क्या हो? और किसी और के साथ आपको भूल के खुश भी हो तो ,ये तकलीफ वही समझ सकता है जिसने इससे दर्द को जिया हो ।
बरसो बाद तुम आज यूँ ही मिल गए। कितने बदल गए हो,थोड़े से मोटे भी हो गए हो ।पर आज भी मेरी धड़कन वैसे ही मचली जैसे पहली बार देखने पे । तुम शायद जल्दी में थे,जल्दी ही समय निकाल कर मिलने का वादा करके ,मोबाइल नंबर ले के चले गए । मैं समझ गयी अब भला तुम मुझे समय क्यों दोगे? आख़िर वो मैं ही थी ,जिसने इस रिश्ते को तोड़ा था ।
हर रोज़ तुम्हे याद कर रही थी पर फ़ोन करने की हिम्मत नही ही रही थी कि तुम क्या सोचोगे मेरे बारे में। अचानक ही एक फ्राइडे तुम्हारा फ़ोन आया,नाम देख के दिल इतनी जोर उछला की क्या कहूँ ।तुमने लंच पे बुलाया । मैं अपने मन मे हजारों खयाल लिए पहुच तो गयी ,पर समझ नही पा रही थी कि क्या बात करूँगी?
रेस्टोरेंट का दरवाजा खुला और तुम अंदर मेरी तरफ आ रहे थे, ऐसा लगा की तुम्हे गले लगा के पूछू ,तुमने मुझे रोका क्यों नही? क्यों तुमने मेरे पापा से नही कहा कि तुम्हे अपने लिए थोड़ा समय चाहिए ,कि तुम मेरे लिए फिर आओगे और तब तक मैं तुम्हारी अमानत हूँ उनके पास । क्यों नही कहा?
कहाँ गुम हो मैडम? तुम्हारी आवाज़ मुझे वर्तमान में ले आयी । कुछ नही ,ऐसे ही कुछ सोच रही थी ।
तुमने बताया कि आज कल तुम एक मल्टीनेशनल कंपनी में हो,बीवी,बेटी और एक बेटा है । अपना घर ,अपनी गाड़ी है । और जब तुम ये बोले कि ये सब तुम्हारी वजह से है, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ । तब तुम बोले ,जब तुम चली गयी तो तुम्हे भूलने के लिए मैंने खुद को काम मे झोंक दिया ।और देखते देखते समय के साथ आज बहुत अच्छी जगह हूँ । मेरी कामयाबी का आधार तुम हो सिया ।
अपने लिए इतनी बात सुन कर ,मेरी आँखों से दो बूँदे टपक गयी। न चाहते हुए भी ।शादी के बाद मैंने तो बस यही सुना था कि तुमने ये गलत किया,ये गलत कहा,तुम समझोगी नही वगैरह वगैरह,,,,,
क्या कहूँ तुमसे ,तुमसे बिछड़ के मैं ज़िंदा हूँ पर जान निकल चुकी है । मेरी हर कोशिश की अरुण भी मुझे समझे, बेकार गयी। अब सिर्फ ज़िम्मेदारी और समझौता ही बचा है लाइफ में ।खैर ,तुम बहुत खुश और संतुष्ट हो अपनी लाइफ में,ये देख कर खुशी हुई ।
तुमने तो कह दिया कि हर हाल में खुश रहना आना चाहिए, मस्त रहना चाहिए।कैसे पूछू तुमको की लाश कैसे ये सब करे,पर तुमसे क्या कहूँ,वो हक़ तो बरसों पहले मैंने खो दिया । बहुत सारी बातें की तुमने, मैंने भी कहीं पर ज्यादा तो मैं तुम्हे सुन रही थी ,और बस देख रही थी।
फिर मिलने का वादा करके तुम चले गए। मैं सारे रास्ते एहि सोचते रही कि तुमने एक बार भी नही पूछा, की सिया तुम खुश हो? मेरे बिना तुम जी कैसे रही हो?
सच ही तो था, मैं उसके बिना ज़िंदा थी।तो क्या हुआ कि उसने जितनी तकलीफ सही जुदाई की ,मैंने उसकी दुगनी सही,अपने दर्द के साथ ये दर्द भी सहा की मैंने उसको दर्द दिया जिसके साथ मैं अपनी ज़िन्दगी, अपनी खुशियां बाटना चाहती थी । मैंने ऊपर वाले से हर दिन दुआ मांगी की तुम्हे खुश रखे ,तरक्की दे,और एक प्यारा जीवन साथी भी । उसने मेरी दुआ काबुल भी कर ली,पर आज सोचती हूँ कि क्या मैंने अपने प्यार को भूल जाये वो ऐसी दुआ मांगी थी? आज पता नही क्यों उसकी खुशी देख के खुश भी हूँ ,पर दर्द भी हुआ । ऐसा नही की मैंने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से नही की,पूरी ईमानदारी और सच्चे मन से निभाई ।फिर भी अरुण ने मुझे समझने में कोई मेहनत नही की ।बस मुझे मेरी ड्यूटी ही बताई हरदम ।
आज जय से मिलने के बाद,एहसास हुआ कि मैंने क्या किया, क्यों नही तब मैंने अपने दिल की सुनी ।आज मेरे पास भी एक प्यार करनेवाला, परवाह करने वाला पति होता । उसे कैसे कहूँ की तुम तो ज़िन्दगी में आगे बढ़ गए,पर मैं अकेले वहीं पहुच गयी । तुम तो मस्त रहो की सलाह दे गए,पर कैसे रहूं??
आज जाना कि आपने जिसे दिल मे जगह दी ,उसने किसी और को आपकी जगह दे दी तो कैसा दर्द होता है। ये बेज़ुबान दर्द अब मेरे दिल मे हरदम का मेहमान है । ये बेज़ुबान दर्द जो मैं उसके साथ भी नहीं बाट सकती,क्योकि उसकी जिंदगी में मेरे दर्द के जगह नहीं ।