घर वापसी
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मेक्सिको शहर में रहने वाले भारतीय मूल के चंद्रशेखर गनात्रा के लिए २९ नवम्बर, २०१९ का दिन बहुत ही हर्षोल्लास भरा था। उन्हें अमेरिकी अंतरिक्ष शोध संस्थान नासा द्वारा १५० दिनों के लिये अन्तरिक्ष में स्थित एक उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र में शोध हेतु भेजा जा रहा था। भारत के लिये भी ये एक गौरवपूर्ण क्षण था।
ठीक तीन दिन बाद अपनी गर्भवती पत्नी को अलविदा कहकर नासा के अप्पोलो ए-५७ नामक मिसाइल में चंद्रशेखर ने अपने साथी ब्रिटेन के टॉम हेर्बर के साथ उड़ान भरी।
इधर उनके जाने के ठीक ४ महीने बाद ही पूरी पृथ्वी पर 'कोरोना' नामक एक विषाणु का संक्रमण फैल गया। हजारों लोगों को अपने प्राण गवांने पड़े। उनमे से कईयों को प्रियजनों के शवों का अंतिम संस्कार भी मुअस्सर न हुआ। उनमें से एक चंद्रशेखर भी थे। मेक्सिको में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला जिसकी चपेट में चंद्रशेखर की पत्नी भी आ गयी। इलाज के समय पता चला की उनके गर्भ में स्थित ७ माह के शिशु को भी यह संक्रमण लग गया।
अंतरिक्ष में जाकर पांच महीनों में चंद्रशेखर और उनके साथी ने कई शोध किये और समय-समय पर उन्हें नासा के साथ साझा किया। लेकिन उनके बीवी और बच्चे की खबर उनके साथ साझा करने वाला कोई नहीं था।
२५ दिन की लड़ाई के बाद चंद्रशेखर की पत्नी ने उस मानवभक्षी विषाणु के सामने हार मान ली और मेक्सिको के सेंट जोसफ हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। उनका बच्चा भी नहीं बच पाया। इधर १ अप्रैल २०२० को अप्पोलो ए-५७ पृथ्वी पर सफलतापूर्वक उतरा।१ माह के देखरेख के बाद चंद्रशेखर और टॉम हेर्बर को घर जाने की अनुमति दे दी गयी। चंद्रशेखर को घर पहुचते ही उनके पिता ने अपनी बहू और पोते की मृत्यु का समाचार सुनाया। चंद्रशेखर आवाक रह गये। जिस विश्व की वो अभी परिक्रमा करके आये थे वही उनके सामने घूमने लगा। चक्कर खाकर वो वहीं बेसुध गिर पड़े। एक अलग संसार की खोज में वे अपने संसार को उजड़ता भी नहीं देख पाये।
सहसा उन्हें कुछ साल पहले अपने संस्थान में आये एक प्रोफ़ेसर के कुछ वाक्यांश याद आ गये-
"हम बेशक लगातार ब्रह्माण्ड से परे एक अलग दुनिया की खोज में संघर्षरत हैं परन्तु हम अपनी पृथ्वी को क्या दे रहे हैं? विकास के नाम पर प्रदूषण, मौसम की अनियमितता, सुनामी, विषाणुजनित रोग? हमें पहले अपने ग्रह को बचाने पर ध्यान देना चाहिये वर्ना हम अलग संसार की खोज में अपने संसार को खो देंगे।"
वो एक भारतीय वैज्ञानिक थे। तब चंद्रशेखर ने उनपर खूब व्यंग्य मारे थे। लेकिन आज उनके वाक्यांश का एक-एक शब्द चंद्रशेखर के कानों में गूंजायमान था।अमेरिका जैसा विकसित देश जहाँ उस महामारी को रोकने में असफल था वहीँ भारत एक विकासशील देश होकर भी न सिर्फ उस विषाणु से सफल युद्ध कर रहा था बल्कि अन्य राष्ट्रों को प्रोत्साहित भी कर रहा था।
चंद्रशेखर ने उसी क्षण घरवापसी का फैसला कर लिया और उस भीषण महामारी के बाद भारत में कर्नाटक स्थित अपने पैतृक गाँव में एक विद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे।