घर घर की कहानी
घर घर की कहानी
भाग-१
सुनील और रजनी की शादी के सात साल बाद मृणाल का जन्म हुआ। इन सात सालों में रजनी ने कभी भी बच्चों के बारे में नहीं सोचा था। अब मृणाल आ गई है तो देर से सोना ,मृणाल का काम ,उसे नहलाना ,दूध पिलाना सारे काम एक साथ सिर पर आ गए। उसे ग़ुस्सा आता था कि इसके कारण ही उसकी ज़िंदगी बदल गई है। हमेशा बच्ची पर चिड़चिड़ापन दिखाने लगी। जिसे देखकर उसकी सास रमा ने बच्ची की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उसका पालन पोषण अपने तरीक़े से करने लगी।
दो साल बाद रजनी ने एक बच्चे को जन्म दिया। जिसका नाम राहुल रखा गया था।
अब तो रमा बहुत व्यस्त हो गई क्योंकि उसे अब दो -दो बच्चों का पालन पोषण करना पड़ रहा था।रजनी जब मन चाहे उन्हें गोद लेती थी न चाहे तो छोड़ देती थी। मायके जाती थी तो रमा बच्चों को भेजने से इनकार करती थी तो रजनी आराम से बेफ़िक्री से अपने घर चली जाती थी। रमा ने भी ट्रिक अपनाया उसने बच्चों को माता-पिता के ख़िलाफ़ कर दिया। बच्चे भी दादी के साथ रहना ज़्यादा पसंद करते थे। रमा ने बच्चों को दादी बनकर ही पाला।उनकी हर ख़्वाहिश पूरी होती थी।बच्चों के पिता भी मस्त थे।ऑफिस गए पैसे लाकर दे दिए तो वे समझते थे कि उनका काम ख़त्म... न उन्हें पत्नी से कोई मतलब था ....ना ही बच्चों से।बच्चे पल रहे हैं ज़रूरतें पूरी हो रही हैं ऑफिस के अलावा और कुछ करने की ज़रूरत नहीं थी बस और क्या चाहिए ? दोनों पति पत्नी बच्चों की तरफ़ से बेफिक्र हो गए। सुनील के छोटे भाई सुहास ने भी इन बच्चों के पालन पोषण में माँ का साथ दिया। क्योंकि उनके कोई बच्चे नहीं थे। बच्चे अब सिर्फ़ अपने चाचा और दादी की बात सुनते थे। माता-पिता को तो वे कुछ मानते ही नहीं थे। बच्चे देखते थे कि रमा अपनी बहू रजनी को हमेशा आड़े हाथों लेती थी।उन्हें मज़ा आता था।उन्हें लगता था कि दादी ग्रेट है क्योंकि माँ भी उनसे डरती है। बच्चे बड़े होने लगे पर पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान न उन्होंने दिया न घर का माहौल ही ऐसा था कि बच्चे शांति से पढ़ सकें। हमेशा सास बहुओं के बीच घमासान युद्ध होता ही रहता था। बच्चे इसका फ़ायदा उठाते थे। सुनील के बड़े भाई सुरेश ने कई बार सुहास को आगाह किया था कि बच्चों को थोड़ा अनुशासन में रखो पर रमा और सुहास को उनकी बातें नहीं सुहाती थीं। किसी तरह ले देकर मृणाल ने बी.एस .सी किया। राहुल ने इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया पर हर साल घर में धमाकाता था कि वह पढ़ाई छोड़ देगा। पाँच साल की पढ़ाई थी !!!सालाना फ़ीस एक लाख पचास हज़ार थी पर राहुल को कोई फ़िक्र नहीं थी। इसी बीच मृणाल के लिए सिंगापुर का रिश्ता आया।बहुत पैसे वाले थे एक ही लड़का था। राहुल ने अपनी बहन को खूब पटाया ताकि वह इस शादी के लिए हाँ कह दे वह सोचता था कि बहन गई तो उसे भी जाने का मौक़ा मिलेगा। मृणाल की शादी बड़े घर के बिगड़े हुए बेटे अजय के साथ हो गई। राहुल ने इंजीनियरिंग पढ़ लिया पर वह कहीं भी नौकरी नहीं करना चाहता है।वह बिज़नेस करना चाहता है। सब लोगों ने उसे समझाया कि हमारे घर में कोई भी बिज़नेस के बारे में नहीं जानता है।हम सब नौकरियाँ ही कर रहे हैं तो तुम भी नौकरी करोगे तो ज़्यादा अच्छा है क्योंकि पिता रिटायर हो गए चाचा रिटायर होने वाले थे। वह किसी की भी बात सुनने के पक्ष में नहीं था। उसने कपड़े बेचने का बिज़नेस शुरू किया।
मृणाल शादी करके सिंगापुर गई पर दो महीनों में वापस आ गई क्योंकि वह माँ बनने वाली थी। तीसरे महीने में ही वह मायके आ गई। अब दोनों बच्चों ने दादी और चाचा की बात भी सुनना बंद कर दिया। राहुल को बिज़नेस में बारह लाख का नुक़सान हुआ। उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वह अब कुछ और बिज़नेस करना चाहता है। मृणाल पति के पास नहीं गई क्योंकि अजय बहुत पीता है और उसने बहुत सारी उधारी की है वह भी अपने माता-पिता से छुपकर। घर वालों ने उस पर सख़्ती बरती उसके सारे उधार चुकता करने के बाद थोडे दिन उसे बीबी और बेटी से अलग रखने का फ़ैसला लिया। इस बीच करोना आ गया और साल भर से दोनों अलग रह रहे हैं। मृणाल अभी ससुराल में है उन्होंने उसे एम.एस.सी दाख़िला दिला दिया ताकि वह कुछ और न सोचे। इस बात से भी रमा को एतराज़ है कि वह मायके नहीं आती है अपनी बच्ची को लेकर रमा अब अपना प्यार पर पोती पर लुटाना चाहती है। मृणाल की सोच है कि हम भाई-बहन को दादी ने माता-पिता से दूर किया।अब मेरी बेटी को मुझसे दूर कर देंगी।
भगवान जाने इस कहानी का क्या अंत होगा ?
1. इस तरह अगर रजनी और सुनील दोनों अपने बच्चों पर ध्यान देते और उनका ध्यान रखते तो कहानी अलग होती ?
2. रमा और सुहास ने बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने हाथों में लिया तो था अगर उन्होंने अपने ज़िम्मेदारी को अच्छे से पूरा किया होता ? दादी बनकर नहीं माता-पिता बनकर पाला होता।
3. रिश्ता बनाना आसान है उसे अच्छे से निभाना भी एक कला होती है।
भाग-२
विनोद बैठक में बैठकर पेपर पढ़ रहे थे !!!कहने को पेपर पढ़ रहे थे कह सकते हैं। उनकी आँखें पेपर पर थीं पर कान रसोई घर में कुछ सुनना चाह रहे थे। दरअसल बहू सविता और उनकी पत्नी गौरी में सुबह -सुबह कुछ कहा सुनी हो रही थी।इसलिए बर्तन के गिरने की आवाज़ें आ रही थी तभी कमल कमरे से बाहर आता है और पापा के सामने बैठ जाता है और उनकी तरफ़ देखते हुए कहता है !!!पापा मैं तंग आ गया हूँ।इस रोज -रोज़ की चिकचिक से आप ही कुछ करिए ना !!!! विनोद कहते हैं —मुझे मालूम है बेटा मैं भी परेशान हो गया हूँ ..पढ़े लिखे लोग भी इस तरह व्यवहार कर सकते हैं ? मुझे नहीं मालूम था कोई बात नहीं !!!मुझे दो दिन का समय दे दो मैं कुछ करता हूँ। कहते हुए विनोद उठकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर सुबह की सैर के लिए निकल जाते हैं। कमल अपने कमरे में बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने के लिए चला जाता है।
विनोद आयकर विभाग में काम करते थे और गौरी एल.आई.सी में काम करती थी। उनके दो बच्चे थे।बेटी का विवाह कर दिया था।वह अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती थी।उसके दो बच्चे थे। बेटा कमल आईटी कंपनी में नौकरी करता था। सविता ने भी इंजीनियरिंग किया था पर दो छोटे बच्चों को संभालना था।इसलिए उसने अपने काम में ब्रेक लिया था।
गौरी और विनोद दोनों ने मिलकर इस घर को बनाया था। बच्चों का बचपन यहीं बीता पाँच कमरों का बड़ा सा इंडिपेंडेंट घर था। जब तक गौरी नौकरी करती थी तब तक घर में शांति थी। खाना बनाने के लिए एक कुक को रख लिया था। घर के काम करने के लिए भी कामवाली बाई आ जाती थी। शाम को ऑफिस से घर आते ही सविता चाय बनाती थी सब मिलकर चाय पीते थे। दोनों बच्चे सबको अपनी बातों से खुश कर देते थे। दो साल पहले विनोद रिटायर हुए। विनोद बच्चों को अपने साथ पार्क घुमाने ले जाते थे।उनके साथ खेलते थे। एक साल ही हुआ गौरी को रिटायर हुए। रिटायर होते ही उसने कुक को हटा दिया कि मैं खाना बनाऊँगी। बस तब से घर में रोज दोनों के बीच झगड़े होते थे। आपस में दोनों ने बातें करना बंद कर दिया। कल की ही बात थी कि सविता और कमल बच्चों के लिए कपड़े ख़रीदने के लिए बाज़ार गए।बच्चों की ज़िद से बाहर चाट खा लिया जिसकी वजह से उन लोगों ने ठीक से खाना नहीं खाया।बस गौरी चिल्लाते हुए कहने लगी पहले बताना था तो मैं खाना कम बनाती।अब देखो कितना खाना बाहर फेंकना पड़ रहा है। सविता का कहना था कि हमने सोचा ही नहीं था।दोनों अपनी -अपनी जगह ठीक थे पर एक दूसरे को समझ नहीं पा रहे थे। सविता बच्चों को पढ़ाई के समय कमरे में बिठाकर पढ़ाती थी।यह बात गौरी को पसंद नहीं। वह कहती है कि बच्चों को दादा दादी से घुलने मिलने नहीं देती। विनोद ने समझ लिया था कि दोनों के बीच रसोई के लिए ही झगड़ा है।गौरी अब उस पर अधिकार रखना चाहती थी क्योंकि सालों उसने नौकरी की वजह से उसे छोड़ दिया था। सविता शादी होकर आते ही रसोई को सँभाल रही थी इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। विनोद पूरा दिन अनमने ही रहे। दूसरे दिन सुबह की सैर से आते ही उन्होंने कहा कल मेरे दोस्त विशाल का गृहप्रवेश है खाना नहीं बनाना ,वहीं खाना है। उस दिन रविवार था तो सब लोग उनके घर गए। सास बहू दोनों घर देखकर बड़े ही खुश हो रहीं थीं। विनोद ने कहा इसी अपार्टमेंट में और भी घर हैं मेरे दूसरे दोस्त ने लिया है उन्हें भी देख लेते हैं । विशाल उन चारों को वहाँ लेकर जाते हैं।दोनों फ़्लेट एकदम सटे हुए थे जैसे दो भाइयों के लिए बनाये हैं।यहाँ भी सास बहू घूम -घूम कर देख रहीं थीं तभी विनोद ने कहा ये दोनों फ्लेट मैंने अपने लिए खरीदे हैं ,यह सुनकर वे दोनों फिर से अंदर जाकर अच्छे से देखने लगी कि यह अपनी हैं। कमल के पास जाकर विनोद कहते हैं कमल मुझे यह ज़्यादा अच्छा लगा कि हम साथ रहकर भी अलग रहेंगे बच्चे भी इधर-उधर घूमेंगे दोनों को अपनी -अपनी प्रायवसी मिलेगी।तीज त्योहार साथ मिलकर मनाएँगे। कमल ने कहा -आपने कैसे ख़रीद लिया पापा !मुझसे कहा होता तो मैं आपकी मदद कर देता था न। विनोद ने कहा -नहीं कमल मैंने गाँव की ज़मीन बेच दी है।वहाँ हम जा भी तो नहीं रहे हैं और एक जायदाद बेचकर दूसरी ही तो ख़रीद रहे हैं न।अपने अभी के घर को किराये पर दे देंगे।मैंने ऑलरेडी बात कर ली है।महीने में पचास हज़ार मिलेंगे। कमल ने पापा को गले लगाया और कहा आप का मुक़ाबला तो कोई नहीं कर सकता है। कमल मेरा मुक़ाबला बाहर के लोग नहीं कर सकते हैं।परंतु घर में मैं गौरी का मुक़ाबला नहीं कर सकता। सब हँसते हैं। विनोद ने कहा घर चलकर इन दोनों को बताएँगे कि हम अब वहाँ नहीं यहाँ रहेंगे। समय रहते ही विनोद ने रिश्तों को सँभाल लिया है वरना वे और उलझ जाते थे।
भाग-३
निर्मला और विनोद की शादी हुए पाँच साल हो गए पर उनकी कोई औलाद नहीं हुई। निर्मला उदास रहती थी। सुबह सबेरे उठकर काम काज करना विनोद के लिए चाय नाश्ता और ऑफिस के लिए टिफ़िन तैयार करना उसकी रोज की आदत बन गई थी। उस दिन भी वह ऐसे ही सबेरे बिस्तर से उठी पर उठ नहीं पायी सर चकरा रहा था।किसी तरह अपने आप को सँभाल कर वह उठी पर गिर गई।उसके गिरने की आवाज़ से विनोद की नींद खुली।वह भाग कर आता है और निर्मला को पलंग पर लिटा देता है।वह कहती मालूम नहीं विनोद आज क्या हो गया उठते ही चक्कर आने लगे। विनोद ने फेमली डॉक्टर कुमारी को फ़ोन किया और निर्मला के बारे में बताया। आधे घंटे में ही कुमारी पहुँच गई।उसने निर्मला को चेक किया और बताया कि बहुत -बहुत बधाई ख़ुश ख़बरी है। आपकी पत्नी गर्भवती है। निर्मला और विनोद दोनों को तो ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्हें मुँह माँगी मुराद मिल गई। सही समय पर निर्मला ने एक सुंदर स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। बहुत सुंदर बच्ची थी उसका नाम परिणिका रखा। घर में उसे परी बुलाते थे। परिणिका स्कूल से कॉलेज में पहुँच गई और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके नौकरी पर लग गई। निर्मला को अब उसकी शादी की फ़िक्र होने लगी। वह बहुत सुंदर पढ़ी लिखी और नौकरी करने वाली लड़की थी।उसे अच्छा वर तो अपने आप ही मिल जाएगा यह उसे मालूम था। विनोद के दोस्त के घर उसकी बेटी की शादी थी जिसमें दोनों का जाना ज़रूरी था क्योंकि उनके साथ परिवार के जैसे रिश्ता था। इसलिए परिणिका को पूरी हिदायतें देकर दो दिन के लिए वे लोग बैंगलोर जाते हैं। यह कल तक की बातें थीं।
आज
परिणिका अभय से प्यार करती है।जो उसके ही साथ ऑफिस में काम करता था। वे दोनों अपनी दोस्ती को पति पत्नी के रिश्ते में बदलना चाहते थे। परिणिका उत्तर प्रदेश से थी और अभय तमिल ब्राह्मण था। दोनों ने माता-पिता को नहीं बताया क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं वे मना न कर दें। दोनों ने सोचा रिजिस्ट्रार ऑफिस में जाकर रिजिस्टर मेरेज कर लें।वहीं से मंदिर में जाकर शादी कर लेते हैं।तब घर वाले कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि शादी तो हो चुकी है। वह कल का ही दिन है। परिणिका को डर लग रहा था कि कैसे करूँ ?माँ पापा पर क्या बीतेगी ?कितना विश्वास है उनको मुझ पर !!!’माँ को बिना बताए तो एक कदम नहीं उठाती थी और आज ज़िंदगी का इतना बड़ा फ़ैसला उनको बिना बताए!!!!
तभी बाहर बालकनी से चिड़िया की चीं चीं की आवाज़ आई झट से वह बाहर जाकर देखती है। एक छोटी सी चिड़िया शायद उड़ान भरने की प्रक्रिया में गिर गई थी और कौवे उसके पीछे पड़े थे। उस छोटी सी चिड़िया की देखभाल में परिणिका ने अपना बहुत सारा समय बिताया। उसके लिए दाना पानी एक जगह रख कर फ़ोन आते ही अंदर आती है देखा तो सुषमा थी क्या कर रही है परी ...,,कल तुझे जाना है न मैं पार्लर वाली को लेकर आऊँगी साडी पहनाने से लेकर मेकअप भी कर देंगी जल्दी से सामान बाँध ले ऑल द बेस्ट कहकर फ़ोन रख दिया। अलमारी खोल कर सामने खड़ी हो जाती है।सारे कपड़े रख लेती है तभी उसे माँ की ख़रीदी हुई साड़ी दिखाई देती है।माँ कीं ख्वाहिश थी कि वह इसी साड़ी को पहनकर फेरे लें। हड़बड़ी में इस बात को तो भूल गई थी।जल्दी से उसे भी रख लिया। परिणिका चिड़िया को देखने के लिए फिर बाहर जाती है।वह आराम से खा पीकर सो रही थी। परी ने सोचा मैं भी कुछ खा लेती हूँ।रसोई में जाकर दूध गरम कर अपने लिए चाय बनाती है और बिस्कुट के साथ चाय पीती है तभी चिड़िया के ज़ोर से चीं चीं की आवाज़ सुनाई देती है।वह भागकर जाती है कि कहीं कौवे ने पकड़ तो नहीं लिया।देखा तो अब वह अच्छे से उड़ान भरने के काबिल हो गई थी जैसे ही उसने परी को देखा जैसे उसे बॉय बोल रही हो चीं चीं की आवाज़ करते हुए आसमान की तरफ़ उड़ जाती है। जहाँ चिड़िया थी उस जगह को देख परी उदास हो जाती है। सोचती है दो तीन घंटों में ही कितना लगाव हो गया था .उस चिड़िया की बच्चे के साथ। हमें माता-पिता तो इतने सालों से पाल पोसकर बड़ा करते हैं। उनकी उम्मीदें ,सपने ,प्यार सब हमारे ऊपर ही रहता है।उन्हें बिना बताए मैं चली गई तो वे टूट जाएँगे और समाज में किसी को मुँह दिखाने लायक़ भी नहीं रहेंगे। मैं यह नहीं कर सकती।कहते हुए अभय को फ़ोन करती है फ़ोन उठाते ही अभय कहता है परी सब इंतज़ाम हो गया है बस सुबह तुम जल्दी से निकलना। परी ने कहा अभय मैं तुमसे माफ़ी चाहती हूँ मैं कल नहीं आ रही हूँ। अभय घबरा गया क्या हुआ परी क्या कह रही है। कुछ नहीं हुआ अभय हम अपने माता-पिता को मनाकर ही शादी करेंगे।उनसे छिपकर उनके आशीर्वाद के बिना नहीं करेंगे।तुम भी अपने माता-पिता को मना लो ,मैं अपने माता-पिता को मनाऊँगी हम दोनों नौकरी करते हैं ।बालिग़ हैं।इसलिए वे लोग ज़रूर मान जाएँगे। अभय ने कहा सही कहा तुमने परी कल से मैं तैयारियों में लगा ज़रूर था पर माँ पापा की बहुत याद आ रही थी रहरहकर आँखों में आँसू आ रहे थे। तुमने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं ज़रूर अपने माँ पापा को मनाऊँगा। सचमुच तुमने मेरे दिल से इतना बड़ा बोझ उतार दिया है। मैं ऐसी ही जीवन साथी चाहता था जो बिन बताए ही मेरे दिल की बात समझ लें। बहुत बहुत थेंक्स परी। अभय की बातें सुनकर परिणिका को आराम मिला और वह अपने लिए खाना बनाने लगी। उसे भी लगा कि हम अनजाने में ही कितनी बड़ी गलती करने वाले थे। माँ का फ़ोन आया बेटा मैं और पापा कल सुबह आ जाएँगे आज पुष्पा की बिदाई हो गई है। कितना मुश्किल है अपने जिगर के टुकड़े को कलेजे से अलग करना। ठीक है रखती हूँ। कल मिलने पर बातें बताऊँगी। उस रात परिणिका चैन की नींद सो सकी। अच्छा है समय रहते उसने अपने आपको सँभाल लिया था।
भाग-४
पूरी दुनिया कोरोना नामक बीमारी के दहशत से पीड़ित है। लोग घरों से बाहर निकलने के लिए डर रहे थे। एक दूसरे से मिलना क्या अपने घर के दरवाज़े भी नहीं खोल रहे थे। पूरे भारत में लॉकडाउन हो गया। सभी लोग घरों में बंदी हो गए पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो बीमारी पर ध्यान न देकर घर बैठे बोर हो रहे हैं इसलिए अपने ही दोस्तों के घर मिल जुलकर मौज मस्ती कर रहे थे। उनकी सोच यह थी कि ऐसा समय फिर नहीं मिलेगा। उनमें दीपक का परिवार भी था। दीपक एक बहुत बड़े गेटेड कम्यूनिटी के विला में रहता था। बहुत बड़े पोस्ट पर था। उसका दबदबा ऑफिस ही नहीं आसपास भी चलता था। एक दिन घर पहुँच कर उसने अपनी पत्नी कीर्ति से कहा , इस वीकेंड में हम अपने घर पार्टी रखेंगे आसपास के कुछ परिवार आ रहे हैं तुम ख़ुद तैयार होकर बच्चों को भी अच्छे से तैयार कर देना और रसोइये को समझा देना कि मेनू क्या है। कीर्ति ने कहा वह सब तो ठीक है आपके माँ का क्या करेंगे वे तो नीचे गेस्ट रूम में रहती हैं और बार बार बाहर झांक कर देखती रहती है कि कौन आया है क्या चल रहा है? बुढ़ापा आ गया है पर ताका झांकी नहीं गई। कल की ही बात है मेरी कुछ सहेलियों को मैंने बुलाया था हम सब मज़े से बातें कर रहे थे तभी कमरे से बाहर आ गई पानी पीने के बहाने सब आपस में खुसुर फ़ुसुर करने लगे मीना ने तो हद ही कर दी थी माँ जी आप तो बहुत कमजोर दिख रही हैं ? खाना वाना समय पर खा रही हैं न ? अपनी सास का ख़्याल तो नहीं रखती पर दूसरों के घरों में टाँग अड़ाती है।मैं पहले से ही कहे देती हूँ आपकी माँ को हम ऊपर शिफ़्ट कर देते हैं वहाँ रहेंगी तो बार बार नीचे तो नहीं आएँगी न। दीपक ने कहा ठीक है चलो आज ही ऊपर भेज दते हैं। नौकरों की मदद से संध्या को ऊपर के कमरे में शिफ़्ट कर दिया गया। उसने पूछा भी कि क्या बात है बेटा ऊपर के कमरे में क्यों ? नीचे रहूँगी तो थोडी चहलपहल रहेगी मैं भी बाहर आ सकती हूँ। ऊपर के कमरे से तो कुछ भी दिखाई नहीं देता है और मैं नीचे नहीं आ सकती हूँ तो नीचे ही रहने दो न। परंतु दोनों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया था। संध्या जैसे ही ऊपर पहुँची दीपक और कीर्ति ने रातों रात अपना कमरा नीचे जमा लिया। संध्या के कमरे में एक घंटी रख दिया कि ज़रूरत हो तो बजा देना पानी खाना सब ऊपर ही पहुँचा देंगे। दूसरे दिन दीपक के दोस्त आए। पूरे घर में चहल पहल हो गई देर रात तक सब बातें करते हुए बैठे थे। सुबह घर में सब लोग देरी से उठे बेचारी संध्या घंटी बजा बजा कर थक गई किसी ने भी पानी नहीं दिया और न ही चाय नाश्ता के लिए पूछा। ग्यारह बजे तक सबका सबेरा हुआ। सबने चाय नाश्ता किया और कल की बातों को याद करके हँस रहे थे तभी दीपक को घंटी की आवाज़ सुनाई दी उसने नौकर से कहा देखो माँजी बुला रही हैं क्या चाहिए पूछकर आओ। तब जाकर संध्या को चाय नाश्ता मिला। अब यह रोज़ का सिलसिला हो गया क्योंकि लॉकडाउन के कारण सब घर में ही थे कभी कोई इनके घर आता तो कभी तो ये लोग दूसरों के घर पहुँच जाते। दीपक अपने परिवार के साथ रात को ही एक दोस्त के घर जाकर आए और दूसरे दिन सुबह दीपक को बुख़ार हो गया गले में दर्द शुरू हो गया डॉक्टर के पास जाकर कोरोना टेस्ट कराया गया तब पता चला कि कोरोना पॉज़िटिव है।
न्यूनतम सुविधाओं वाले एक छोटे से कमरे में उसे आइसोल्शन के लिए रखा गया। मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे कोई बात नहीं करते थे न ही नज़दीक आते थे। खाना भी प्लेट में भरकर सरका देते थे। कैसे गुजारे उसने वे चौदह दिन वही जानता था। चौदह दिन की जद्दोजहद के बाद अपनी करोना नेगेटिव की रिपोर्ट लेकर अस्पताल के काउंटर पर खड़ा था सब लोग उसके लिए तालियाँ बजा रहे थे। जंग जीतकर कोरोनावायरस से लड़कर सही सलामत वह बाहर आ गया था। उसके चेहरे पर जीत की ख़ुशी दिखाई नहीं दे रही थी। रास्ते भर गाड़ी में उसे आइसोलेशन नामक वह ख़तरनाक मंजर ही याद आ रहा था। इतना बड़ा अफ़सर बड़ी गाड़ी लोगों के बधाई के फ़ोन कॉल यह सब उसे अब अच्छे नहीं लग रहे थे वह जल्द से जल्द घर पहुँचना चाह रहा।
घर पहुँचते ही स्वागत में खड़े पत्नी बच्चे दोस्तों को वहीं छोड़कर वह सीधे उस कमरे में गया जहाँ उसकी माँ बंद थी। पिता की मृत्यु के बाद माँ ने बाहर का गेट भी नहीं देखा अर्थात् आठ सालों से वह कमरे में क़ैद थी। आइसोलेशन में थी। उसके लिए भी मनोरंजन का साधन नहीं था कोई उससे बात नहीं करते थे। वह सीधे उनके पैरों में गिर गया और माँ से माफ़ी माँगने लगा। और कहने लगा माँ आप आठ सालों से एकांतवास (आइसोलेशन) गुजार रही थी। आज से आप अकेले नहीं रहेंगी हमारे साथ ही रहेंगी। माँ भौंचक्की होकर देख रही थी कि जो बेटा पत्नी की बात को टाल नहीं सकता आज पत्नी के सामने साथ रहने की बात कह रहा था। इतना बड़ा हृदय परिवर्तन एकाएक कैसे हो गया ? बेटे ने अपने आइसोलेशन के दिनों की सारी परिस्थितियाँ अपनी माँ को बताई और कहा आज मुझे अहसास हो रहा है कि एकांतवास कितना दुखदाई होता है।
बेटे की नेगेटिव रिपोर्ट उसके ज़िंदगी की पॉज़िटिव रिपोर्ट बन गई। यही तो ज़िंदगी है .....