फ़ाइल
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आज उसकी ओर निकल आया हूँ। सुना है अपनी फील्ड में बहुत रिप्पल क्रिएट किये हुए हैं उसने। आज दो साल बाद मुझे सामने पाएगी तो कैसे रियेक्ट करेगी? उन दिनों मुझे देखते ही उसकी आँखों में चमक हुआ करती थी, होंठ खुशी को रोक नहीं पाते थे...उसे इतना एक्ससाईटेड देखता था तो घबरा ही जाता था सच कहूँ तो बौरा जाती थी ...हहहह ...मेन्टल लगती थी.. स्वीट सी।
"नमस्कार जनमेजय जी"
"जी ! ...नमस्कार।"
"प्लीज आप बैठें"
"जी" अनुराधा मेरे सामने थी। उसके ऑफिस में रिसेप्शन पर कुछ देर बैठने के बाद चपरासी मुझे उसके केबिन में ले आया था।
"मेहता, जनमेजय जी के लिए ...क्या लेंगे आप सर चाय, ठंडा?!"
"उसकी कोई जरूरत नहीं है।"
"फिर भी...मेहता.. दो कप चाय..
बढ़िया वाली।" वो चपरासी निकल ही था कि,
"मैडम इस पर आपके साइन होने हैं।" एक बुजुर्ग फ़ाइल ले कर चले आये थे।
"दिखाइए।" उसकी आवाज में बहुत गम्भीर्य था।
"ये क्या है बाबा? "उसकी आवाज अचानक से बहुत विनम्र होते हुए सख्त हो गयी।" इतने महीने हो गये मुझे आपको सिखाते ...बार बार वही गलती,...पत्रांक संख्या क्यों नहीं मेंशन है?"
"अ.. अ..अभी सही करता हूँ मैडम " वे बुजुर्ग हकलाते हुए वापिस फाइल ले कर चले गए। उसने बजर दबाया, दबाते ही चपरासी मिनट से पहले आ गया।नाराजगी उसकी आवाज में झलक रही थी।
"रूमी को कहिये, बाबा को गाइड करेंगी।"
"जी ..जी मैडम" कहता हुआ वो वापस चला गया।
वह अपनी फाइल्स में खो गयी, ऐसा लगा जैसे वो भूल गयी कि मैं उसके सामने बैठा हूँ। वह अपनी फाइल्स में गुम थी और मैं उसके केबिन में बैठा उसे और उसके केबिन की दीवारों को ताक रहा था। उसने दो तीन मिनट फाइल्स देखी उन पर साइन किये और एक तरफ रखे। मुझे लगा अब शायद हम बात शुरू करें। मगर उसने फोन पर किसी डीलर को बहुत बुरी तरह झाड़ लगाई। उसके फोन रखते ही मैंने कहा।
"तुम..आप बहुत बिजी लग रहीं हैं। आपके शहर में दो दिन हूँ।"
"प्लीज जन ...बस.. ये सब समेट रही हूँ"
"ओह !...ओके" उसने मुझे जनमेजय जी नहीं कहा, जन कहा इससे एक हल्की सी राहत महसूस हुई। मैं चेयर पर पीठ लगा कर रिलैक्स हो कर बैठ गया।
वो एक के बाद एक फाइल्स को देख, साइन कर रही थी। लोगों को समझाकर ,डांट कर ,कुछ लिख कर दे रही थी। इस बीच चाय नाश्ता आ चुका था। उसकी चाय ठंडी हो गयी मगर वो बस अपने काम में थी।
सोचने लगा, जुनूनी तो थी ये शुरू से मगर.. शायद कभी इसे ऐसे काम करता देखा नहीं इसलिए आज अलग सी दिख रही है। मुझे याद आ रहा था वो पुराना दौर जब हम दोनों एक दूसरे के लिए जरूरी थे। दोस्ती से बढ़कर बहुत स्वीट सा रिश्ता था हमारे बीच। पता नहीं कब एक फॉर्मेलिटी हमारे बीच आ गयी। कुछ तो था जो खो गया था। लेकिन न अनुराधा ने कभी कुछ कहा न मैं कुछ कह पाया। उसकी सरकारी जॉब लग गयी,अधिकारी वर्ग में। अखबारों में उसकी खबरें सुर्खियां होने लगी थीं। मुझे पढ़ कर, सुनकर बहुत हैरानी होती थी की क्या ये वहीं अनुराधा है ?!
बहरहाल अनुराधा पहले भी अपने काम में डूब जाती थी लेकिन बीच बीच में दस बार उसकी नजरें मुझे ढूंढा करती थी। मैं उसे मुझे ढूंढता देख खुश भी होता था। कुछ कुछ बहाने से मेरे पास आती थी
"जन ये कैसे होगा?" ,
"अरे यार कुछ तो अपना दिमाग लगाया करो"
"होता तो तुम्हारे पास आती?"
"मेरे पास दिमाग है?"
"बहुत ज्यादा" कहते हुए उसकी आँखों में उसके 'बहुत ज्यादा', कहते कहते लाड़ सा उमड़ आता था।
"अच्छा जनमेजय ...सुनिये... आप कल क्या कर रहे हैं?" अनुराधा बुदबुदाते हुए पूछ रही थी। मैं हाल की यादों से निकल आया।
" कल?!"
"हम्म..कल कहीं लंच पर मीटिंग रखते हैं, आज बहुत काम है।"
मैं सीट से तुरन्त उठ गया " देखता हूँ मैंम ,आप प्लीज अपना काम देखिये। सॉरी आपको डिस्टर्ब किया।" मैंने देखा मुझे उठते देख उसने अपना सर फिर फाइल्स में घुसा लिया था।
"हम्म ..चलिए फिर ठीक है, मीटिंग अरेंज हो तो मुझे सुबह 7 बजे तक बता दीजियेगा।"
'सात बजे बता दूं?!' अब अनुराधा का रवैया बरदाश्त के बाहर हो रहा था। मैंने कहा फाइन और केबिन के बाहर आने को दरवाजा खोलने लगा। दरवाजा लॉक हो गया था।
"वेट , ये यहां का स्टाफ भी न ..जाते जाते किसी ने ..।" अनुराधा अपनी सीट छोड़ कर अब मेरे बराबर खड़ी हो कर की से दरवाजा खोल रही थी।
"लो खुल गया।"
"थैंक्स"
"जन!?.."
अनुराधा बहुत धीमे से कह रही थी " कल मिलोगे न!" मैं हैरानी से उसको देखने लगा। मुझे नहीं समझ आया कि क्या है? "प्लीज़ .." उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा।
"अनु..तुम.." ,
" एक मिनट जनमेजय जी! आप एक सहयोग कर सकते है क्या?" अब उसकी आवाज में ऑथोरिटी थी। मैं अजीब उलझन में था कि हो क्या रहा है!
उसने झटपट एक फ़ाइल निकाली और उसमें कुछ किया और मुझे पकड़ा दी। बोली" आप इसे तिवारी जी को दे दीजियेगा कहिएगा शाम 5 बजे तक रिपोर्ट दे दें। ",
"तिवारी जी..ये फाइल?!"
"जी, आपके साथ सचिवालय में हैं न ! प्रपोजल है।" उसने मेरी ओर देखा।
फ़ाइल ले कर मैं अपनी कार में चला आया। कार स्टार्ट करते वक्त दिल किया फ़ाइल उठा कर फेंक दूं। उठा के फेंक ही देता की ध्यान आया कि सचिवालय में तो तिवारी एक मैं ही हूँ। फटाफट फ़ाइल खोली। फ़ाइल में सिर्फ एक पन्ना था जिस पर अनु ने कुछ लिखा था।
"जन, बहुत मुश्किल से अपनी खुशी दबा पा रही हूँ। चाहती हूं कि सब छोड़ कर इसी वक्त तुम्हारे साथ निकल पडूं। तुम भी तो अजीब हो बता कर आते। ऑफिस में एक अधिकारी की तरह बर्ताव जरूरी है मेरे लिए। ऑफिस के माहौल में व्यक्तिगत जिंदगी, हर तरफ आंख कान ..समझ रहे हो न!
सुनो कल पूरा दिन साथ रहेंगे, उन जगहों पर चलेंगे जहां बैठा करते थे। कितना अनकहा है बाकी है।"
नीचे उसने एक बड़ा सा स्माइली बनाया था। मैं अब उसकी इस हरकत को सोच सोच कर मुस्करा रहा था, मेरी अनु तब शरारती थी अब स्मार्ट और सेंसिबल भी हो गयी है..गजब !
मैंने उसके ऑफिस की तरफ देखा। वो बाहर आई हुई थी किसी को कुछ समझाते हुए बीच बीच में मेरी ओर देख रही थी। शायद मेरी मुस्कान से उसे अंदाजा हो गया "कल बताता हूँ अनु की बच्ची" इशारा करते हुए मैंने कार सड़क की ओर मोड़ ली।