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Laxmi Yadav

Tragedy

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Laxmi Yadav

Tragedy

एकांतवास्

एकांतवास्

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सुदर्शन की गाड़ी ' बसेरा ' वृद्ध आश्रम की तरफ जा रही थी। उसके मन में अतीत का द्वंद चल रहा था।

बचपन की सारी यादें स्मृति पटल पर सजीव हो उठी पिताजी के देहांत के बाद माँ ने उसे बड़े कष्टों से पाला था। अपनी सभी इच्छाओं की तिलांजली दे कर सिर्फ उसकी जरूरतों को प्राथमिकता दी थी।  

काल सेंटर मे दिन भर हेड फोन लगाकर कान सुन्न हो जाते थे। भोर मे उठकर अपना व उसका टिफिन बनाती। घर बाहर और काल सेंटर मे माँ की दुनिया सिमट गई थी। आन्धी- वर्षा- तूफ़ाँ चाहे कुछ भी हो पर माँ कभी रुकी ही नही। इतने संघर्षो मे भी वो मुस्कुराती रहती थी।

लेकिन वृद्धां आश्रम जाते समय जिन अश्रु पुरित नेत्रों से मुख्य दरवाजे पर लगे अपने नामपट को छूकर फिर देहलीज़ हाथ जोड़ कर बिदाई ली थी। जो कि बहुत हृदयविदारक थी।  

यह दर्द आज सुदर्शन को दिल मे होकर आँखों से छलक रहा है। दरअसल, उसे दो सप्ताह पहले कोरोना हुआ। सबसे पहले उसकी पत्नी अरुंधति ने मुँह बनाकर उसका सामान अलग बाँध दिया। फिर दो सप्ताह मे एक बार भी हाल- चाल नही लिया। एक बार फोन किया था बैंक से पैसे लेने के लिए वो भी स्वतः पर खर्च करने के लिए। अस्पताल में भर्ती होने के तीसरे दिन लैंड लाइन से उसके लिए फोन आया था। सुदर्शन के ' हलो ' बोलने पर दूसरी ओर से काँपती आवाज़ आई " बेटा, कैसा है तू? " इस आवाज़ ने उसके अंतर्मन को झकझोर दिया। उसके शरीर मे मानों माँ की आवाज़ ने सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया हो।  

कालखंड कोई भी हो, माँ की दुआओं मे सदा असर होता है और उसने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को शिकस्त दे दी। पर इस एकांतवास् मे भयावह सुनापन, मूक दीवारें, स्वयं से ही सवाद , घडी की टिक- टिक और किसी अपने से मिलने की आस ने माँ के वृद्ध आश्रम के एकांतवास् का अहसास करा दिया।

अब सुदर्शन माँ के द्वारा दी गई जिंदगी सिर्फ माँ के लिए ही जीना चाहता था। उसने अस्पताल से घर आते ही सबसे पहले अरुंधति को जाने के लिए कह दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं मान रहा था। अपनी माँ को सुदर्शन वृद्ध आश्रम से अपने घर ले आया।  

पर घर मे माँ ने देखा बहू अरुंधति अपना सामान समेट रही थी और सूजी हुई आँखों से उसे देख रही थी। माँ को देखते ही चरणों मे गिरकर माफी मांगने लगी। अरुंधति बोल रही थी " माँजी, मुझे माफ कर दीजिये। ये ' सुमित्रा सदन ' आपका था आपका है और आपका ही रहेगा।


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