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Abhilasha Chauhan

Tragedy

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Abhilasha Chauhan

Tragedy

एक थी रमा

एक थी रमा

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रमा की आंखों से आंसू बहना बंद नहीं हो रहे थे। वह पढ़ना चाहती थी, जीवन में कुछ बनना चाहती थी, पर घरवाले तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे। उसकी हर बात पर घर में तू-तू-मैं-मैं होने लगती। अभी दसवीं की

परीक्षा दी है उसने और बापू हैं कि ब्याह के पीछे पड़े हैं। रोज उसकी भावनाओं की हत्या हो रही थी।

और वह दिन भी जल्दी आ गया । दस साल बड़े एक व्यक्ति को उसके जीवनसाथी के रूप में चुन लिया गया था। वह छोटी सी दुकान चलाता था। रमा हंसना भूल गई थी। इससे घर में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह क्या सोचती है, बस अपना बोझ दूसरे के गले में बांधने की तैयारी हो रही थी।

विवाह हुआ , वह दुल्हन बन के आ गई। यहां भी वह सिर्फ उपभोग की वस्तु थी। दिनभर काम और रात को पति की इच्छाओं की पूर्ति, ऊपर से दहेज की मांग ।

रमा समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे ? बिना किसी

के सपोर्ट और प्यार के बिना कोई व्यक्ति कैसे जीवन में आगे बढ़ सकता है। रमा अवसाद में डूब चुकी थी। क्या बनना चाह रही थी और क्या बन गई।

अब तो रोज घर में झगड़े और होने लगी। दहेज की मांग बढ़ती जा रही थी। पिता तो पल्ला झाड़ बैठे थे , अब रोज उसकी कपड़ों की तरह धुलाई होती। उसके आंसू देखने वाला कोई नहीं था। घर के सभी लोग उसे ताना मारते। पति तो हैवानियत की हदें पार कर चुका था। रमा एक जिंदा लाश बन गई थी। आखिर में तंग आकर उसने फांसी लगा ली। इस बात को परिवार वालों ने किसी तरह

दबा दिया। सब जगह अफवाह फैला दी कि बीमार थी। आनन-फानन उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। माता-पिता भीआए उसके और ससुराल वालों की बात को सच मान बैठे। आज रमा को गए एक साल हो गया। उसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया। किसी को क्या फर्क पड़ा ? कौन था रमा का हत्यारा ? ये समाज या उसके माता-पिता या ससुराल वाले ?


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