एक श्राप ऐसा भी
एक श्राप ऐसा भी
होली का त्यौहार आस पड़ोस में सारे बच्चे रंग खेल रहे हैं।
मगर अम्मा जी अपने घर के सारे लोगों को एक कमरे में बंद करके बाहर से ताला लगा कर के
बैठे हैं ,की कोई भी घर में से बाहर और घर में रंग खेलने ना जाए। और बाहर का कोई इंसान इन पर रंग ना डाले ।
क्योंकि अम्मा जी के दिल दिमाग में बैठा हुआ है। कि इस परिवार को अगर कोई भी त्यौहार यह परिवार मनाएगा। और होली पर अगर एक दूसरे पर रंग डालेगा तो किसी की मृत्यु हो जाएगी ।
और इस परिवार का वंश आगे नहीं चलेगा । ऐसा उनको कभी किसी ने बोला होगा कि इस परिवार को यह श्राप है ।वैसे तो अम्मा जी बहुत पढ़ी लिखी है।
मगर श्राप और अंधविश्वास साधु संतों की कही बातें उन सब में वह बहुत जल्दी आ जाती हैं। और बहुत ही ज्यादा मानते हैं।
इसके चलते उन्होंने घरवालों का जीना दुश्वार कर रखा है। इन सबके चलते उनका जो छोटा बेटा है, अपनी पढ़ाई पूरी करके बाहर ही नौकरी ढूंढता है।
उसकी अम्मा जी बहुत मना करती हैं मगर वह नहीं मानता। और दूसरे शहर नौकरी करने चला जाता है। उसकी पत्नी बहुत ही प्रगतिवादी विचारधारा वाली है। और वह इन सब में नहीं मानती है ।
उसकी शादी के बाद में यह पहला त्यौहार है ।उसकी परिवेश में उसके पियर में उसने कभी ऐसा देखा नहीं होता है। और वह इन सब बातों को बिल्कुल नहीं मानती है।
पति को होली के समय गांव चलने के लिए बोलती है कि सब मिलजुल कर के होली मनाएंगे।
उसका पति मना करता है कि नहीं वहां होली नहीं खेली जाती है।
और तुम भी होली नहीं खेलोगे क्यों किसी ने रंग लगा दिया तो ,अपने घर में किसी की मृत्यु हो जाएगी ।और अपना वंश आगे नहीं चलेगा। ऐसा श्राप मिला हुआ है।
हमारे परिवार को ।
उसकी पत्नी को यह सब बहुत ही हास्यास्पद लगता है। और वह बहुत जिद करने लगती है कि मैं तो कोई भी हालत में होली पर सब के साथ में गांव मे जाऊंगी और होली मनाऊंगी ।
और उसकी जिद के आगे हार मानकर भी दोनों जने होली के दिन सुबह-सुबह बिना घर वालों को बताएं पहुंचते हैं ।
और जाकर जैसे ही दरवाजा खटखटा ते हैं अम्माजी दरवाजा खोलती हैं ।और उन लोग दोनों को देख कर चौक जाती हैं। अरे तुम लोग यहां क्यों आए ।
तुमको पता है ना कि अपने घर परिवार में होली नहीं खेली जाती है। फिर भी तुम यहां आए हो। चलो अब तुम को भी कमरे में बंद कर देती हूं। मगर उसकी बहू उनको समझाती है ,कि अम्मा जी ऐसी बात नहीं है श्राप कुछ नहीं होता है ।और आप डर करके सबकी खुशियां क्यों छीन रही हैं और वह मुट्ठी भर के रंग अपनी सास के अम्मा जी के लगा देती है। अम्मा जी बहुत डर से घबरा जाती हैं ।पहले तो चिल्लाती हैं ।तब तक उनकी बहू कमरे का दरवाजा खोल देती है ।
सब जने बाहर आकर एक दूसरे के ऊपर रंग लगा देते हैं और बहुत खुशी खुशी होली मनाते हैं। और शाम को वह लोग वापस अपने शहर जाते हैं ।अम्मा जी को बहुत डर लगा रहता है।
कि अब क्या होगा अब तो कोई मर जाएगा। अब अब हमारा वंश आगे नहीं चलेगा।
मगर ऐसा कुछ नहीं होता है थोड़े दिन बाद ही उनके बेटे के वहां से खबर आती है कि खुशखबरी है ।और अम्मा जी बहुत खुश होती हैं। उनको लगता है इतने साल उन्होंने वैसे ही डर में बिता दिए ।श्राप जैसा कुछ नहीं होता है ।यह सब मन का वहम है। अच्छा हुआ बहु ने होली खेलने के बहाने मेरी आंखें खोल दी ।और इस तरह उनको एक श्राप की दकियानूसी सोच से मुक्ति मिल गई। जब जागे तभी सवेरा देर आए दुरुस्त आए।