एक प्यारा सा अनकहा रिश्ता
एक प्यारा सा अनकहा रिश्ता
नीलू अंधेरे को देखते हुए फटाफट कदम घर की ओर बढ़ा रही थी। हालांकि रोज़ 8 बजे ही वो आती थी वहां से जहां वो नौकरी करती थी पर हर रोज़ ही थोड़ी डरी हुई होती थी। और होती भी क्यों ना, माहौल ही कुछ ऐसा हो चला था। अखबार उठाओ तो अच्छी खबर ढूंढने से एक दो मिलती हैं जबकि बुरी खबर बहुतायत में । सो ऐसे में नीलू का डर जायज़ था और उस पर कमाई भी इतनी नहीं थी कि रिक्शा या आटो रोज़ किया जाए।
एक दिन उसका डर हकीकत बनकर सामने आ गया। अभी उसने एक मोड़ काटा ही था कि छुप कर खड़े दो लडके अचानक से सामने आ गए और उसका दुपट्टा पकड़ लिया। उसका दिल धक से रह गया। उसने बहुत कोशिश की अपना दुपट्टा छुड़वाने की पर उन्होंने उसे ही पकड़ लिया। एक ही पल में ज़िन्दगी लगा नरक बनने वाली है। मन ही मन उसने भगवान से गुहार लगाई और सारी हिम्मत बतौर कर वो ज़ोर से चिल्लाने लगी।
सुनसान सी सड़क थी और बचाने वाला कोई नहीं, इसलिए नीलू अपनी पूरी ताक़त और हिम्मत दिखा रही थी कि तभी ज़ोर से एक बैसाखी का वार उन लड़कों पर पड़ा। दो ही मिनट में उस बैसाखी वाले लड़के ने उन दोनों गुंडों को भगा दिया।
नीलू बुरी तरह रो रही थी। वो लड़का उन गुंडों को भगाकर पलटा और नीलू पर बुरी तरह बरस पड़ा। और उससे पूछने लगा कि क्या उसे सही गलत की तमीज नहीं है जो इतनी रात गए इस सुनसान सड़क पर फिर रही है। और ये भी बोला कि तुम्हारी जैसी बेवकूफ लड़की के कारण ही अखबार उल्टी सीधी खबरों से भरी होती है।
नीलू रोना भूल हल्की बक्की रह गई। कहां तो वो उस लड़के से हमदर्दी के कुछ शब्दों की उम्मीद लगाए बैठी थी और कहां ये गालियां मिल रही थी। लेकिन उसकी पीड़ा इतनी बढ़ गई थी कि उसका अहसान भूल वो फट पड़ी।पूछने लगी उससे कि इतना बोलने से पहले उसे सामने वाले के हालात की जानकारी लेनी चाहिए। बोलना और इल्ज़ाम देना तो बहुत आसान होता है पर दूसरे कि परेशानी समझना बड़ा मुश्किल।
अब उस लड़के ने बड़े गौर से नीलू को देखा और पूछा कि तुम्हारा घर कहां है,चलो मैं छोड़ आता हूं। मन तो बहुत किया नीलू का कि उसे साफ मना कर दे पर अकेले जाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।सो अपने घर का पता उसे देकर चुपचाप उसके साथ चलने लगी।
रास्ते में नीलू ने उसे बताया कि कैसे उसके माता पीता और भाई की मौत एक एक्सिडेंट में साल भर पहले हुई थी और तब से वो हिम्मत बांधे कैसे अपने बूढ़े दादी बाबा का सहारा बनी हुई है। नीलू कहने लगी कि दादी बाबा ना होते तो शायद वो भी मम्मी पापा के जाने वाले दिन ही आत्महत्या कर लेती। ये नौकरी भी उसकी मजबूरी थी कि पैसे अच्छे मिलते थे जिससे वो अपने दादी बाबा की दवाइयों का खर्चा आराम से निकाल पाती थी नहीं तो कबकी सही समय पर घर आने वाली नौकरी उसने ढूंढ ली होती।
नीलू की सारी बातें सुनकर उस लड़के आकाश ने उस से अपने बुरे व्यवहार की माफ़ी मांग ली जिस पर नीलू बोली कि माफ़ी मांगकर मुझे शर्मिंदा ना करें। आज आप ना होते तो पता नहीं कि मैं अभी तक ज़िंदा भी होती या नहीं।
बातें करते करते नीलू का घर आ गया और आकाश उसे घर के बाहर छोड़कर ही चला गया। अगले दिन सुबह नीलू डरते हुए ही सही पर मन कड़ा कर नौकरी पर जाने के लिए तैयार हुई। पता था उसे कि अगर आज हिम्मत हारी तो कभी अपने डर से जीत नहीं पाएगी।
रात को लौटते हुए उसका मन कांप रहा था । तभी उसे अपने पीछे से बैसाखी की आवाज़ सुनाई दी। एक सुकून भरी मुस्कुराहट से उसने पलट कर आकाश की ओर देखा।आकाश उसे घर तक छोड़ कर चला गया और रास्ते में ज्यादा बात भी नहीं की उसने।और फिर ये रोज़ की आदत बन गई। दोनों इकट्ठे जाते थे पर कुछ खास बात नहीं करते थे। एक अजीब सा अनकहा रिश्ता बन गया था दोनों के बीच।
दो दिन बाद राखी आने वाली थी और नीलू का मन बड़ा उदास था ।रह रहकर उसे अपना भाई और मम्मी पापा याद आ रहे थे। रात को घर लौटते हुए उसकी उदास चुप्पी को आकाश भांप गया। कैसा अजीब रिश्ता था दोनों का, चुप्पी का भी अलग रंग होता है ये उसे आज समझ आया था। आज नीलू को घर पहुंचाकर वो वहीं रुक गया और नीलू को बोला कि मैं परसों घर आऊंगा राखी बंधवाने। इसलिए नौकरी पर थोड़ा लेट जाना।
नीलू को समझ ही नहीं आ रहा था कि खुशी से हंस या रोए। आज आकाश ने इस अनकहे रिश्ते को एक प्यारा सा नाम दे दिया था और उसको एक नई आशा। वो अपने हाथों से आकाश के लिए राखी बनाने घर के अंदर चल दी।