एक फोन

एक फोन

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एक फोन चिन्टू को लेकर मैं हास्पीटल गई, उसे रात से फीवर था। उसे डॉक्टर को दिखा जैसे ही मैं और चिन्टू के पापा बाहर निकले, मिस्टर सहाय, जो मेरी सहेली विभा के पति थे। परेशान से मेडिकल स्टोर पर खड़े थे। केमिस्ट से जल्दी मेडीसिन देने के लिये रिक्वेस्ट कर रहे थे। मैंने उनसे अस्पताल मे होने का कारण पूछा उन्होने बताया, विभा का दो हफ्ते पहिले एक्सिडेंट हो गया, हालत अच्छी नहीं उसकी। चिन्टू को उसके पापा के साथ घर भेज कर सीधे प्राईवेट वार्ड मे गई। विभा को देख मेरी आंखों मे आँसूओं की धार लग गई। अपने मित्रो, रिश्तेदारो को दो चार दिन के अंतर में, उनकी खैरियत जानने के लिये मै बराबर फोन करती हूँ, इसे मेरा शगल कह ले, या पागलपन।

कोई मुझे फोन करे या न करे, कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं फोन जरुर करती। विभा से भी मेरी फोन पर हर दूसरे दिन बाते हो जाया करती। एकाध बार मैने उससे शिकायत भी की"यार कभी तुम भी फोन कर लिया करो"उसका जवाब था"मै संयुक्त परिवार के साथ हूँ, समय नहीं निकाल पाती, तुम्हारा क्या,

दोनों मियाँ बीवी हो, समय ही समय है तुम्हारे पास, तुम्ही कर लिया करो" पता नही क्यों उसकी ये बात मुझे लग गई, मै अपनी एँठ मे आ गई, हर बार मै ही फोन क्यो करुँ। बस मैंने उसे करीब एक माह से फोन नहीं किया।

आज विभा मेरे सामने, सफेद पट्टियों से घिरी, छोटे बड़े जाने कितने फ्रेक्चर, नीम बेहोश,। उसे इस हालत मे देख बड़ी ग्लानि हो रही है स्वयं पर, अपराध बोध से घिरी हुई, अपनी ही अकड़ में रही, मैं ही एक फोन कर लेती।


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