एक नया अध्याय
एक नया अध्याय
नुपुर ने गार्ड से कहा कि, एक बाई को भेजना मुझे पूरे दिन के लिये चाहिए। बिना आज्ञा के कोई भी सोसाइटी में नहीं आ सकता था। थोड़ी देर बाद घंटी बजती है, वह जाकर देखती है कि एक अधेड़ उम्र की महिला दरवाज़े पर खड़ी है।
“आपको क्या चाहिए माँजी?“ नुपुर ने सहज भाव से पूछा।
“आपने काम के लिये बुलाया था?“ वह बूढ़ी औरत बोलती है।
“हाँजी! पर आप कैसे?” बड़े आश्चर्य से नुपुर पूँछती है।
नुपुर ने उनको अंदर बुलाया पानी पिलाया, फिर बैठने का इशारा किया तो उन्होंने आशीर्वाद देने की झड़ी ही लगा दी, “जुग-जुग जियो बेटा, तुम्हारा घर फले-फूले, तुम ख़ूब तरक़्क़ी करो।” नुपुर की आँखों में आँसू आ जाते है उनकी यह दशा देखकर।
“माँजी आप इस उम्र में काम!” उससे रहा नहीं गया उसने पूछ ही लिया?
“क्यों नहीं? मैं मरते दम तक किसी पर बोझ बनना नहीं चाहती, अपने पैरों पर खड़े रहकर जो मज़ा है वह दूसरों के ऊपर निर्भर रहकर कहाँ? जीवन संघर्षों से भरा ना हो तो जीने का मज़ा नहीं आता।” बड़ी ख़ुद्दारी से उन्होंने जवाब दिया।
नुपुर का मुँह खुला का खुला ही रह गया वह उनकी ख़ुद्दारी को सलाम करने लगी। आज इस उम्र में भी इतना कान्फीडैंस। हम इस छोटी सी उम्र में अपने को दूसरों पर निर्भर कर लेते हैं और एक यह है जो अब भी!!
मन ही मन उसने सोचा कि इनको रखकर मैं भी जीवन की एक नई किताब पढ़ लूँगी। काम का क्या है? हो जायेगा, कुछ मैं करूँगी कुछ इनसे करा लूँगी एक ठंडी साँस भरती हुई, “माँजी आप कल से आ जाइयेगा।”
बूढ़ी औरत कहती है कि, “बेटे पैसे कितने?” बीच में बात काटते हुए नुपुर बोली, “बस यह समझो कि आपको कुछ कमी नहीं होने दूँगी आज मैंने जीवन का एक नया अध्याय आपके माध्यम से पढ़ा है।” बूढ़ी औरत ख़ुशी-ख़ुशी चली जाती है...!