अपना अंश

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पूनम की शादी को अभी पाँच साल ही हुए थे अभी तो वह ससुराल को अच्छे तरीक़े से समझ भी नहीं पाई थी। अपने सपनों को पंख लगे देखकर ख़ुशी का अनुभव भी नहीं कर पाई थी। ज़िंदगी अचानक से नये मोड़ पर लाकर उसको खड़ा कर देती है। 

एक दिन निर्णय लिया जाता है कि बालाजी के दर्शन करने के लिए चलते हैं। तैयारी शुरू हो जाती है। फिर एक दिन सुबह तड़के सब चार पहियों वाली गाड़ी में बैठकर निकल पड़ते हैं। अच्छे से दर्शन भी हो जाते हैं। अब वहाँ से लौटने का समय भी आ जाता है। दर्शन करने में रात बहुत हो गई थी सबने ललित (जो पूनम  पति थे) को समझाया कि रात बहुत हो गई है तो यहीं पर रूक जाते हैं कल सवेरे निकल पड़ेंगें। पर होनी बलवान होती है और यह ही हुआ, ललित ज़िद पर अड़ गया कि अभी चलना है सुबह बहुत देर हो जाएगी परसों मेरी बेटी का पेपर है, चलना तो आज ही पड़ेगा। सब उसकी ज़िद के आगे हार मान जाते हैं और गाड़ी में बैठकर चल पड़ते हैं। 

अभी कुछ दूर ही गए थे अरे! यह क्या? गाड़ी रोडरोलर से टकरा जाती है और भयानक एक्सीडेंट्स हो जाता है। जिसमें ललित की मृत्यु तुरंत हो जाती है और पूनम भी कोमा में चली जाती है। उसके दो बेटी थीं एक तीन साल की और दूसरी एक साल की। दोनों बच्चियों के खरौंच तक भी नहीं आती है बस उसकी माँग सूनी हो जाती है जो अपनेआप में जीवन भर का दर्द छिपाए हुए थी।

कई साल लग जाते हैं उसको कोमा से बाहर निकलने में! इस एक्सीडेंट् में उसकी आवाज़ भी चली जाती है। सीधा हाथ भी सही तरीक़े से काम नहीं कर पा रहा था। ऊपर से एक भारी बज्रपात! ससुराल वालों ने उन्हें रखने से इनकार कर दिया और साथ में बहुत कुछ सुना भी दिया .....सास कहती “माँ- बेटी मेरे बच्चे को खा गईं, अगर यहाँ रहेंगीं तो हम सबको खा जायेंगीं! “ बस इतना सुनना था कि भाई व माँ -बाप को ताव आ जाता है और उसे अपने साथ ले जाते हैं। 

 पूनम का काफी इलाज़ कराया गया परन्तु पूरी आवाज़ वापस न आ पाई बस कुछ-कुछ शब्द अटक-अटक कर बोलने लगी, अपना काम भी करने लगी थी। माँ -बाप की ऑंखों की नींद तो जैसे ग़ायब ही हो गई थी। दिन-रात बस यही सोचते रहते कि अब इसका और बच्चों का क्या होगा? जब तक हम इस दुनिया में हैं तब तक तो ठीक है फिर ........उनके और भी छह बच्चे थे ! उनके ऊपर तो मानो पहाड़ ही टूटकर गिर पड़ा हो एैसा प्रतीत हो रहा था। 

 वह घर की सबसे बड़ी लड़की थी।धीरे-धीरे समय बीतता गया, सब बहन भाईयों की शादी भी होने लगी थी।सब ठीक चल रहा था परंतु माँ - बाप तो अभिभावक जो ठहरे उन्होंने उसको अपने पैरों पर खड़ा करने की ठान ली और टाइपिंग का काम सिखा दिया साथ में शौर्टहैंड भी सिखाई। उन दिनों छोटे शहरों में इसकी ख़ूब ज़रूरत हुआ करती थी। उन्होंने उसे दो टाइपिंग मशीनें भी लाकर दीं। वह मन लगाकर काम करने लगी क्योंकि वह एम०बीएड० पास जो ठहरी। उसका यह काम तो बहुत ही अच्छा चल पड़ा ....इससे उसका मन भी लगा रहता और बच्चों का ख़र्चा भी निकल जाता। उसे अब किसी का मुँह नहीं देखना पड़ता था। यह सब देखकर माँ ,बाप बहुत ख़ुश होते क्योंकि वह अब विकलांग नहीं रह गई थी और न उसे अब किसी के सामने हाथ नहीं फैलाने की ज़रूरत पड़ेगी। उसे आत्मनिर्भर बना दिया था।

उसके ठीक होते ही लोगों ने कहना शुरू कर दिया शादी कर दो पहाड़ सी ज़िंदगी होती है कैसे गुज़ारेगी अकेले? जितने मुँह उतनी बाँतें ! इसी को तो समाज की संज्ञा गई है जिस पर आज तक किसी का वश नहीं चला है। माँ- बाप ने उसके मन को टटोला! लेकिन उसने अपने बच्चों की ख़ातिर शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि दोनों लड़कियाँ जो ठहरीं।

“ये मेरी ज़िम्मेदारी हैं इन्हें मैं कैसे किसी के ऊपर लाद सकती हूँ ! कल को कोई मेरी बेटियों को कुछ कहेगा तो मैं सहन न कर पाऊँगी और ऊपर जाकर इनसे कैसे ऑंख मिला पाऊँगी?” कहते हुए वह रो पड़ती है ।(जैसे सारा वाक़या अभी गुज़रा हो )

क्योंकि जब पति की मृत्यु हुई थी तब वह होश में नहीं थी। अब जब होश आया तो समय ने थपेड़े मारने शुरू कर दिये थे! ज़िम्मेदारियों के बोझ तले व दबी जा रही थी। माँ -बाप का तो हमेशा से सर पर हाथ रहा था पर पति की कमी पूरे जीवन अखरेगी !

     कुछ समय बाद पिताजी का हाथ भी सर पर से उठ गया। अब तो जैसे पहाड़ों का समूह ही सर पर आ गिरा हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ! ख़ैर भाग्य ने करवट ली और लड़कियें क़ाबिल बन गईं ।उसकी मेहनत और तपस्या रंग लाई। लड़कियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की और दोनों  उच्च पद पर आसीन हो गईं । 

    एक यहीं  भारत में और दूसरी विदेश में जाकर नौकरी करने लगी। दोनों  बहादुर माँ की बहादुर लड़कियें जो ठहरीं ।दोनों दामाद भी बहुत अच्छे आ गये वे भी माँ की ख़ूब इज़्ज़त करते। दोनों ने शादी से पहले अपने पति से एक वादा ले लिया था कि हमारी माँ ने हमारे लिये दूसरी शादी नहीं करी तो अब यह हमारी ज़िम्मेदारी हैं ! अगर मंज़ूर हो तो ही हाँ करना नहीं तो हम पूरी ज़िंदगी कुँवारी रह लेंगी माँ के लिये ! 

  अब वह कुछ महीने एक बेटी के पास तो कुछ दूसरी के पास रहतीं हैं । माँ भी तो बूढ़ी हो गई है खाट पर हैं कुछ उनकी सेवा में लगा देती है। पीछे मुड़कर तो देखने का मौक़ा ही नहीं मिलता .......



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