Nutan Garg

Drama

5.0  

Nutan Garg

Drama

रिश्तों को क्या नाम दूँ

रिश्तों को क्या नाम दूँ

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रिश्ता कभी भी कहीं भी और किसी से भी बन जाता है पता ही नहीं चलता। बस शर्त यह है कि दोनों तरफ़ से निभाया जाये जैसे- आपका और हमारा।

रेखा शादी होकर अपने घर से बहुत दूर पति के साथ जाती है। किराये का मकान लेते हैं, उसका व्यवहार इतना मिलनसार था कि किसी को भी अपना बना लेती थी। ऐसा ही वहाँ भी हुआ थोड़े ही दिनों में वो उनके घर में इतना घुल-मिल गई कि उनके घर की एक सदस्य बन गई। उनका एक अलग रिश्ता बन गया था उन सभी के साथ। उसको ख़ुद नहीं पता लग रहा था कि वह इस रिश्ते को क्या नाम दे ?

उस घर में एक वृद्ध महिला थीं जो उसे बहुत प्यार करतीं थीं। जब उसके पाँव भारी हुए तो उन्होंने एक दादी बनकर उसका ध्यान रखा और जैसे पोत बहू उन्हीं की हो ऐसा प्रतीत होता था। पंजाबी परिवार था सो पहली लोहड़ी बेटे की बड़ी धूमधाम से मनाई गई और एक बार तो हद ही हो गई जब हिजड़े घर आये बच्चे को दुआँए देने। उन्होंने जी खोलकर दान दिया और आँगन में ख़ूब नृत्य भी करवाया।

सारे त्योहार मनाये जाते चाहे वो दोनों में से किसी के भी हों। एक परिवार की तरह रहते-रहते कई साल निकल गये पता ही नहीं चला। फिर एक दिन उसके पति के तबादले की ख़बर आती है और वो सामान बाँधना शुरू कर देते हैं पर उनका दिल अंदर से रो रहा था। वहाँ से जाने का मन दोनों में से किसी का भी नहीं था। शायद साथ इतना ही लिखा था।

घर में ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई अपना रूठ गया हो! रिश्ते ऊपर से बनकर आते हैं ऐसा दादी बोला करती थीं आज़ हक़ीक़त में देख भी लिये। कुछ तो भगवान बनाकर भेजता है कुछ अपनेआप बन जाते हैं।

बेटी की तरह उसे विदा करा गया, रोते हुए सबसे विदा ली और फिर नई जगह।

जब भी वह बैठती है तब सोचती है कि प्रेम में वो ताक़त है जिससे परायों को भी अपना बनाया जा सकता है।

ऐसे अनकहे रिश्तों की कोई सीमा नहीं होती। आज़ भी वो उनके परिवार का हिस्सा हैं बस दादी गुज़र चुकी हैं।  


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