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Nidhi Sharma

Tragedy Crime Inspirational

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Nidhi Sharma

Tragedy Crime Inspirational

एक नई शुरुआत करूंगी

एक नई शुरुआत करूंगी

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"ये क्या बात हुई सूरज हमारी शादी को अभी तीन महीने हुए हैं और इतनी जल्दी आपका मन मुझसे उब गया..! पहले तो मेरे साथ वक्त बिताने के लिए आप बहाना ढूंढते थे, अब मैं देख रही हूं कि ऑफिस के बाद भी आप न जाने कहां वक्त बताते हैं..? और घर भी लेट आते हैं, मन हुआ तो खाते हैं वरना ऐसे ही सो जाते हैं क्या कोई अपनी नई पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार करता है..?" संध्या आक्रोश भरे शब्दों में अपने पति सूरज से कहती है।

सूरज बोला "इतनी मॉडर्न होते हुए भी टिपिकल गांव की लड़कियों की तरह बात करती हो। तुमसे शादी की थी ये एग्रीमेंट नहीं किया था कि 24 घंटे तुम्हारे साथ ही चिपका रहूंगा, नई-नई शादी की बात अलग होती है हमारी शादी को 3 महीने हो गए हैं। भूलो मत मेरी खुद की भी एक अलग जिंदगी है और ये तुम्हारा मुझे बार-बार टोकना और आक्रोश में बात करना बिल्कुल पसंद नहीं है।" इतना कहकर सूरज अपनी बाइक लेकर फिर से घूमने निकल गया।

तभी दूसरे कमरे से संध्या की सास प्रतिमा जी बोलीं "बहू मर्द पर कभी लगाम नहीं लगाई जाती है। अरे वो अपनी मर्जी का मालिक है अगर घूमता फिरता है तो तुम्हें क्यों दिक्कत होती है, तुम क्या चाहती हो कि मेरा बेटा तुम्हारे पल्लू से बंधा रहे..? लड़की नहीं है कि इधर उधर भटक जाएगा और हमारी इज्जत खराब करेगा तुम तो बस घर गृहस्ती संभालो मेरा बेटा खुद ही समल जाएगा।"

संध्या बोली "मम्मी जी कहां लिखा है कि हर बार बहू ही गलत होती है.! क्या कभी बेटा गलत नहीं हो सकता.?? और क्या कहा आपने की लड़की भटक जाती है अरे लड़की भटकती नहीं बल्कि लड़के उसे भटकाते हैं, मुझे तो ये समझ में नहीं आता कि ये कैसी मानसिकता है कि लड़की मां बाप की इज्जत खराब करती है और बेटा नहीं. ! कौन जानता है कल को अगर आपके बेटे ने कुछ उल्टा सीधा काम किया और आपका नाम खराब हुआ तो फिर ना कहना कि सचेत नहीं किया।" इतना कहकर वो अपने कमरे में चली गई।

संध्या की शादी के शुरू शुरू में सब कुछ ठीक था परंतु पिछले महीने से सूरज का व्यवहार तुरंत बदल गया..! जिसे एक पत्नी की नजर देख भी रही थी और महसूस भी कर रही थी, पर बिना सबूत के संध्या कुछ भी करना नहीं चाहती थी।

समय धीरे-धीरे बीत रहा था संध्या ने इस विषय में अपने माता-पिता को भी बताया उन्होंने कहा "जब तक कोई पुख्ता सबूत ना हो तुम किसी पर उंगली नहीं उठा सकती। हां जब सच्चाई तुम्हें पता चल जाए तो अपने कदम पीछे भी मत खींचना हम तुम्हारे साथ हैं।"

 संध्या ने नजर बनाए रखी और वो हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं थी। एक दिन जब सूरज दफ्तर से लौटकर आया तो घर में सिपाहियों को देखकर हैरान था!

"क्या बात हुई घर में पुलिस क्यों आई है क्या कुछ चोरी हो गई है..? अरे बताती क्यों नहीं हो बूत बनकर क्यों खड़ी हो..!"

वहीं खड़े दरोगा ने बोला "अच्छा तो सूरज बाबू आप हैं..!! आप ये सवाल अपनी पत्नी से क्यों मुझसे पूछिए मैं आपको बताता हूं। आपके खिलाफ आपकी पत्नी श्रीमती संध्या जी ने एफ आई आर दर्ज करवाई है।"

सूरज हैरानी से बोला है "एफआईआर... मगर क्यों..! किस लिए..? संध्या ये क्या कह रहे हैं और ये क्या मजाक लगा रखा है! मैं कुछ पूछ रहा हूं जवाब क्यों नहीं दे रही हो..?" सूरज आक्रोश से लाल निगाहें संध्या की तरफ करके बोला।

जैसे ही सूरज संध्या की तरफ बढ़ा दरोगा ने उसका हाथ पकड़कर पीछे खींचा और बोला "अपनी पत्नी के होते हुए दूसरी औरत के साथ संबंध रखते हो शर्म नहीं आती।"

सूरज अटकते हुए बोला "संबंध किसके साथ, किसने देखा..!! वो हैरानी में इधर-उधर देखने लगा और सोचने लगा कि आखिर संध्या को उसके और प्रेरणा के बारे में कैसे पता चला।

दरोगा बोला "सूरज बाबू किस-किस से पूछेंगे सारे शहर ने देखा है। तभी तो आपकी पत्नी ने आपके खिलाफ कंप्लेंन की और हमें एफआईआर दर्ज करनी पड़ी, चलो रे हथकड़ी लगाओ इन्हें और ले चलो इनके असली ससुराल... थोड़ी खातिरदारी हम भी करें।" दरोगा हवलदार से बोला। दरोगा सूरज को अपने साथ ले गए वहीं संध्या चुपचाप खड़ी रही।

प्रतिमा जी दरोगा के पैर पर रही थी और कह रही थी "मेरा बेटा ऐसा नहीं है जरूर मेरी बहू के मन में कुछ चल रहा है तभी तो वो मेरे बेटे को फंसा रही है। आप ही सोचिए दरोगा बाबू कोई नई नई दुल्हन अपने पति के खिलाफ पुलिस में जाएगी, अरे बहू कुछ कहती क्यों नहीं हो पूरे मोहल्ले में हमारा नाम खराब हो जाएगा।" संध्या ने एक शब्द नहीं कहा पर चुपचाप अपनी जगह पर खड़ी रही और पुलिस वाले सूरज को लेकर चले गए।

सूरज के मां-बाप इधर-उधर फोन करके सबसे मदद मांग रहे थे। वहीं संध्या ने अपने पिता को सारी बात बताई और चुपचाप अपने कमरे का दरवाजा बंद करके सो गई।

अगले दिन संध्या अपने लिए रसोई में चाय बना रही थी तो प्रतिमा जी बोलीं "देखो तो जरा इस लड़की को लाज शर्म है कि नहीं अपने पति को जेल भेजकर यहां चाय पी रही है! बहू तुम्हारी शादी को अभी 4 महीने नहीं हुए और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए, अगर सूरज से कोई गलती हुई थी तो तुम उसे समझाती पर ये सब करने की क्या जरूरत थी..? कुछ पूछ रही हूं मुंह में क्या दही जमाए बैठी हो. ?

प्रतिमा जी के पति किशोर बाबू बोले "जब शादी ठीक हो रही थी तभी कुछ लोगों ने कहा था कि लड़की बहुत तेज तर्रार है..! पर ये नहीं मालूम था कि अपने ही पति पर इल्जाम लगाएगी, अगर अपने पति को समझती और समझाती तो ये दिन देखना ना पड़ता।"

संध्या चाय पीकर कप किनारे रखते हुए बोली "मम्मी जी पापा जी मैंने आपको इन बातों के लिए सचेत की थी पर आप लोगों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया और आज आप लोग मुझ पर ही उंगली उठा रहे हैं..! उनकी बुरी आदतों पर लगाम लगाने की वजाए मुझसे अपेक्षा कर रहे हैं कि मैं उन्हीं समझती और समझाती..! वाह रे ससुराल वालों स्वयं के बेटे की गलती को अपनी बहू पर मढ़ रहे हो..! आप लोगों को पता था कि शादी से पहले उनका चक्कर किसी और से चल रहा है तो उनकी शादी आपने मुझसे क्यों करवाई मेरी जिंदगी क्यों खराब की..?"

प्रतिमा जी बोलीं "ये क्या कह रही हो बहू जवान खून थोड़ा बहुत तो इधर उधर भटक ही जाता है पर हमने उसे समझा दिया था।" संध्या बोली "अच्छा तो आपने समझा दिया था और आपका लाडला समझ गया था

.? ये क्यों नहीं कहतीं कि मेरे पिता के पैसों की चमक आपके आंखों में थी। दहेज की मोटी रकम, फ्लैट ,गाड़ी इन सब चक्कर में आपने अपने बेटे की एक नहीं सुनी और उसके साथ साथ मेरी जिंदगी भी खराब कर दी..! जितना गुनहगार आपका बेटा नहीं उससे बड़े गुनहगार तो आप लोग हैं।"

प्रतिमा जी को लगा की बहू ज्यादा ही गुस्से में आ गई है तो उन्होंने उसे पुचकारते हुए कहा "संध्या बेटा एक बार प्रयास करने में क्या हर्ज था। अरे तुम अपने रूप और प्रेम से उसे सही रास्ते पर लाती तो वो आ जाता, जरूर तुमने ही कुछ कमी छोड़ी होगी तभी तो वो दोबारा उस लड़की के पास गया।"

थोड़ी ही देर में खबर आग की तरह फैल गई सूरज की बहन रेखा और बहनोई पप्पू जी भी घर पर आ गए और सभी संध्या पर ही गुस्सा कर रहे थे। संध्या गुस्से में खड़ी हो गई और बोली "मम्मी जी एक बात बताइए अगर मेरा संबंध नंदोई जी के साथ होता तो आप और आपकी बेटी मुझे क्या सलाह देंगी ..?"

रेखा बोली "हे भगवान! मम्मी देखो कैसी बेशर्म औरत है। खबरदार जो मेरे पति की तरफ नजर भी डाली।" संध्या मुस्कुरा कर बोली "अपने पर बात आई तो मिर्ची लगी! ननद रानी अगर मान लीजिए ऐसा होता तो क्या आप सब मुझे इस घर में वही सम्मान देते जो आज आप अपने भाई और आप अपने बेटे के लिए मुझसे मांग रही हैं?" किसी के पास कोई जवाब नहीं था वही पप्पू बाबू रेखा को धीरे से कान में बोले "भाभी बात तो सही कह रही हैं।" रेखा ने आंखें दिखाई तो पप्पू बाबू चुपचाप एक किनारे खड़े हो गए। 

प्रतिमा जी बोलीं "ठीक है मेरा बेटा खराब है हम सब खराब है। अगर हम इतने ही बुरे हैं तो चली क्यों नहीं गई इस घर को छोड़कर. ?" संध्या मुस्कुराते हुए बोली "मम्मी जी शायद आप भूल रही हैं ये फ्लैट मेरे पापा ने शादी में मुझे खरीद कर दी थी, घर का एक-एक सामान मेरे दहेज का है। और आप क्या कह रही थी गांव की लड़कियां भटकाती है, मम्मी जी अब वो भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती हैं फिर मैं तो शहर की लड़की हूं। मुझे नहीं रहना आपके धोखेबाज बेटे के साथ मैं तलाक के लिए अर्जी डालूंगी, अब ना तो मुझे आपके विश्वासघाती बेटे के साथ और ना आप लोगों के साथ रहना है।।"

  रेखा सामने आकर बोली "बहुत बोल रही हो और हम सब सुन रहे हैं। तुम्हारे पास सबूत क्या है कि सूरज धोखेबाज है और वो दूसरी लड़की के साथ घूमता फिरता है..?" किशोर बाबू प्रमिला जी हर कोई उससे पूछने लगा "हां हां बताओ क्या सबूत है..??"

वो बोली "पूजनीय मेरे ससुराल वालों सबूत वो गाड़ी है जो मेरे पिता ने दहेज में आपके बेटे को दी थी। वो मोटरसाइकिल भी मेरे नाम पर ही रजिस्टर है, जब ये लोग न्यूटाउन मेन रोड में धूम रहे थे और हेलमेट नहीं पहन रखी थी तो सीसीटीवी कैमरे ने इनकी तस्वीर उतारी और इनके खिलाफ चालान काटा और उस चालान का नोटिफिकेशन मेरे फोन पर आया। मैंने अपनी शादी को एक मौका और देना चाहा था पर जब आरटीओ एप पर जब गाड़ी का नंबर डाली तो सारा चिट्ठा सबूत के साथ सामने आ गया। अरे मैंने तो आपको उनके कारनामे दिखाए ही नहीं ये लीजिए सबूत, देखिए इसमें आपका बेटा किसके साथ चिपककर घूम रहा है, समय तारीख सब है इसमें.... ।" इतना कहकर संध्या ने फोन अपने ससुर की तरफ बढ़ा दिया।

फोटो देखकर सब हैरान थे क्योंकि फोटो में सूरज दूसरी लड़की के साथ बैठा था। हेलमेट ना होने के कारण उन दोनों की तस्वीर साफ साफ दिख रही थी। सभी किशोर बाबू बोले "अरे प्रतिमा ये लड़की तो हमारे पुराने पड़ोसी अनिल बाबू की बेटी प्रेरणा है।"

प्रतिमा जी फोटो देखीं और आक्रोश में किशोर बाबू को बोलीं "सच्चाई पर मोहर लगाना जरूरी था क्या..। न जाने ये लड़का और क्या क्या कांड करेगा अब चलो यहां से.." फिर बेटे को कोसते हुए वो दूसरे कमरे में चली गईं।

दूसरे कमरे में जाकर प्रतिमा जी ने अपने पुराने पड़ोसी को फोन किया और खूब उटपटांग बातें बोलीं "अरे बेटी अगर संभल नहीं रही है तो किसी और के पल्ले बांध देती मेरे बेटे को फसाने की क्या जरूरत थी। कितनी मुश्किल से उसे रास्ते पर लेकर आई थी पर तुम्हारी बेटी है किसका पीछा ही नहीं छोड़ रही है।

उधर से आवाज आई "अपने बेटे को क्यों नहीं संभालती हो खुले बैल की तरह छोड़ रखी हो। अरे इतनी गुणवंती और रूपवती पत्नी को छोड़कर दूसरी लड़कियों पर नजर डालता है, खराब तो तुम्हारा बेटा है जो मेरी बेटी को बहला रहा है, दोबारा मेरी बेटी के आसपास नजर आया तो उसके टांगे तुरवा देंगे।"

पप्पू बाबू बोले "माताजी बुरा मत मानिएगा पर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को दोष नहीं देते। साले साहब ने बहुत गलत किया आप तो जानती हैं आजकल का कानून बहुत कड़क है, और पुलिस तो उससे भी ज्यादा सख्त है न जाने उनकी कितनी कुटाई की होगी। अगर कोई रहम कर सकता है तो वो हैं भाभी जी, रिश्ता रखे ना रखे पर कम से कम साले साहब की हड्डियां तो ना टूटेगी तो जाइए और बहू के पैर पकड़िए।"

रेखा पप्पू बाबू से बोली "ये किस तरह मेरी मां से तुम बात कर रहे हो!" पप्पू बाबू ने रेखा को एक लप्पड़ दिया और बोला "खबरदार खुद का भाई निकला दो नंबर का और पति को अपने वश में करना चाहती हो! अरे जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते,घर चलो चुपचाप।" इतना कहते हुए पप्पू बाबू रेखा को वापस घर ले गए।

  संध्या के माता-पिता भी वहां आए प्रतिमा जी और किशोर बाबू ने उन्हें भी समझाने की असफल कोशिश की उन्होंने साफ-साफ कहा "हमने बेटी की शादी इसलिए नहीं की थी कि आपका बेटा और आप लोग उसे धोखा दें।आप लोग अपने बेटे की गलती को सुधारने की जगह दूसरे की बेटी को समझौता करना सिखा रहे हैं..! हर बार लड़की ही समझौता क्यों करेगी।"

प्रतिभा जी कुछ कहती है उससे पहले संध्या की मां ने बोली "अब बस बेहतर होगा आप लोग इस घर को खाली कर दे। मेरी बेटी अपने तरीके से अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेगी, अब वो इस रिश्ते में नहीं रहेगी जहां भरोसा ना हो वहां औरतों का सम्मान नहीं होता।"

आखिरकार शाम तक किशोर बाबू और प्रतिमा जी को बहु का घर छोड़ कर अपने पुराने मकान में जाना पड़ा। कुछ समय बाद संध्या ने सूरज से तलाक लिया और अपनी नई जिंदगी शुरू की।

 समय बीता सूरज लौटकर घर आया मां बाप से माफी मांगा और अकेले जीवन जीने लगा, प्रतिमा जी बेटे के दुख से दुखी थी तो किशोर बाबू बोले "जैसी करनी वैसी भरनी ! हमने तो इसे समझाने की कोशिश की थी, कहीं ना कहीं गलती हमारी है हमने उम्मीद दूसरे की बेटी से क्यों लगाई अपने बेटे की गलती को क्यों नहीं देखा। सच ही तो कह गई संध्या जरूरी नहीं हर बार बहू ही गलत हो बेटा भी गलत हो सकता है।"

समय के साथ साथ संध्या अपने जीवन में एक नई शुरुआत की और आगे बढ़ गई पर सूरज वहीं ठहर गया। क्योंकि हर बार दाग चांद पर ही क्यों लगे कभी सूरज पर भी ग्रहण लग ही सकता है। जैसे अच्छी बात फैलती है बुरी बात भी फेली गई कोई भी माता-पिता अपनी लड़की का रिश्ता ऐसे लड़के से क्यों करना चाहेगा जो भरोसे के काबिल ना हो।

मित्रों जिस घर में भरोसा और सम्मान ना हो वहां भूल से भी अपनी बेटी को ना ब्याहें। दान दहेज से खुशियां खरीदी नहीं जाती बल्कि घर सजाया जाता है।

आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें बहुत-बहुत धन्यवाद।


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