धुएं में इरादे की रोशनी
धुएं में इरादे की रोशनी
"पापा आपने हमेशा मेरी ख्वाहिशों को नई उड़ान दी है फिर आज आप मेरे कदम पीछे क्यों खींच रहे हैं . ! दादी का मैं समझ सकती हूं उन्हें पोते की ख्वाहिश थी जो मेरे आने से टूट गई थी, अब तो बस उनकी यही ख्वाहिश है कि मैं किसी तरह घर जल्दी से जल्दी विदा हो जाऊं। पर मैं अपने जीवन में कुछ करना चाहती हूं, अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं कम से कम आप तो मेरी भावनाओं को समझिए। जब लड़के ज्यादा उम्र में शादी कर सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं, क्या लड़कियों की कोई ख्वाहिश नहीं होती. ?" दिव्या अपने पिता आलोक बाबू से कहती है।
आलोक बाबू बोले "बेटा मेरी बात को समझने की कोशिश करो मैं तुम्हें अपनी ख्वाहिशों को दबाने के लिए नहीं कह रहा हूं। तुम्हारा जो जी करे वो तुम करो पर एक बार लड़के से मिलने में हर्ज क्या है..! हो सकता है वो तुम्हें पसंद आ जाए और तुम अपना फैसला बदल लो।"
दिव्या बोली "वो इरादे ही क्या जो किसी के मिलने मिलाने से बदल जाए। मैं समझ सकती हूं आप किस बात से परेशान हैं क्योंकि मेरे बाद भी मेरी दो बहने हैं, पापा मेरी ख्वाहिश है कि मैं आपकी बेटी बनकर नहीं आपका बेटा बनकर आपका हाथ बटाऊं। और जहां तक शादी की बात है वो तो कभी भी हो जाएगी, मैं जानती हूं दूसरे पिता की तरह आपकी भी ख्वाहिश होगी कि आप मुझे दुल्हन के लिबास में देखें और आपकी ये ख्वाहिश मैं जरूर पूरी करूंगी पर कब करूंगी ये मैं नहीं जानती।" इतना कहकर दिव्या अपना बेग ली और कॉलेज की तरफ निकल गई।
आलोक बाबू जैसे ही उसे आवाज लगाने की सोच है पीछे से दिव्या की मां प्रमिला बोली "पीछे से आवाज मत लगाइए उसे जाने दीजिए। ऐसे भी बेटियों को मां बाप के घर में ही पंख मिलते हैं, ससुराल जाके ये पंख काम करेंगे कि नहीं कौन जानता है।"
आलोक बोले "प्रमिला मैं जानता हूं तुम्हारे भी कुछ सपने थे पर इस घर में आकर जिम्मेदारियों के काले धुएं तले वो सारे सपने कहीं खो गए। इसीलिए तुम अपनी बेटियों की ख्वाहिशों को पहले पूरा करना चाहती हो, पर ये भी तो देखो वो 38 की हो गई है..! उसके पीछे रश्मि और रेनू भी है ऐसा ना हो की जिम्मेदारियां रह जाए और मैं निकल जाऊं.।"
प्रमिला आलोक के मुंह पर उंगली रखी और बोली "शुभ शुभ बोलिए आप तो इस घर के स्तंभ हैं आपसे ही सबकी खुशियां हैं। आप ये क्यों नहीं समझ रहे कि दिव्या बस आपका हाथ बढ़ाना चाहती है, बचपन से जो वो सुनती आई कि उसकी जगह बेटा होता तो आपका बोझ कम होता बस उसी ताने को उसने अपनी ख्वाहिश बना ली है और उसे पूरा करना चाहती है करने दीजिए।"
दोनों बातें कर रहे थे तभी दिव्या की दादी कमला जी आई और बोलीं "हां हां अपनी 38 साल की बेटी की ख्वाहिशों को पूरा करने में लगे रहो। मेरे बेटे का क्या है वो तो कोल्हू का बैल बनकर पिस्सा रहेगा, अरे आखिर ये लड़की शादी करेगी कब इसकी ख्वाहिशें तो पूरी ही नहीं हो रही है। पहले पढ़ाई फिर नौकरी अब तो वो भी हो गई अब कौन सी ख्वाहिश बच गई है. !"
आलोक बाबू बोले "मां आप परेशान मत हो दिव्या समझदार है एक न एक दिन वो मान ही जाएगी अब हमारे हाथ में इंतजार करने के अलावा कुछ भी नहीं है।" आलोक बाबू के तीन बच्चे थे बेटे की चाहत में तीनों लड़कियां थी दिव्या सबसे बड़ी थी, उसकी ख्वाहिश थी कि जब तक वो अपने पिता का बोझ हल्का ना कर दे वो शादी नहीं करेगी।
समय बीता दिव्या की दोनों बहनों की शादी हुई और पिता रिटायर हुए। लोग समाज मदद भले ना करें परंतु ताने देने में पीछे नहीं हटते।
धीरे-धीरे समय बीता दिव्या कॉलेज में लेक्चरर थी उसने एक बेटे की जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभाई, जब पिता ने शादी की बात की तो दिव्या ने कहा "पापा जिस दिन कोई मेरे मन लायक मिल जाएगा मैं भी शादी के लिए तैयार हो जाऊंगी।" माता-पिता सोचे चलो जो लड़की पहले मना कर रही थी अब कम से कम उसने हां तो की है।
कुछ महीनों से दिव्या बदली बदली नजर आ रही थी मानव काले धुएं में से एक नई रोशनी दिख रही हो। मां की पारखी नजरों ने देखा पर जब भी वो कुछ पूछती दिव्या मुस्कुराकर टाल देती। एक रोज दिव्या ने अपने मन की बात मां से साझा की प्रमिला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने ये बात बाकी लोगों को बताई।
जहां पिता बहुत खुश थे वही कमला जी बोलीं "ये कोई उम्र है शादी करने की समाज अब क्या कहेगा..!" प्रमिला बोली "मांजी आप ही तो कहती थी कि दिव्या शादी कर ले।" वो बोलीं "हां पर कब कहती थी आज से 8-10 साल पहले। जब इसकी उम्र थी शादी करने की तब तो इसने पढ़ाई और फिर नौकरी की, अपनी बहनों की शादी होते हुए तुमने देखी है ना किस उम्र में उसकी शादी हुई थी। अरे लड़कियों की एक उम्र होती है शादी करने की और ये उन 38 की हो गई है अब इससे शादी कौन करेगा।"
माता-पिता कुछ कहते उससे पहले दिव्या बोली "मां आप क्यों दुखी होती है और किस से पूछ रही है! दादी एक बात बताइए आखिर कब तक लड़की अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए पहले मायके वाले और फिर ससुराल वालों का मुंह ताकेगी। कहां लिखा है कि लड़कियों की शादी 30 साल से पहले हो जानी चाहिए और जिसने भी लिखा है वो मानसिक तौर पर बीमार होगा।"
कमला जी बोलीं "तुम्हारे मां बाप ने तुम्हारा मन बढ़ा दिया है तभी तो तुम्हारी जुबान इतनी लंबी हो गई है..! सोचो इतनी उम्र में शादी कर रही हो और ऐसा व्यवहार रखोगे तो कैसे किसी परिवार में रहोगी।"
दिव्या ने अपने पिता का हाथ थामा और बोलिए "पापा मेरी ख्वाहिश थी कि मैं बेटा बनकर आपकी सारी जिम्मेदारियों को पूरा करूं जो मैंने पूरी की। अब मेरी जो भी बची ख्वाहिश है मैं अपने दम पर उन्हें पूरा करना चाहती हूं, कौशल एक अच्छे और नेक इंसान हैं। उन्होंने कभी मुझे ये नहीं कहा कि मुझे अभी शादी करनी है, वे तो आगे भी मेरे लिए रुकने को तैयार है बस अब ये निर्णय में आप पर छोड़ रही हूं। मैं शादी के लिए तैयार हूं अब आप लोग हैं या नहीं ये आप तय कीजिए।"
कमला जी बोलीं "हां हां अब तो तुम्हारा पिता भी रिटायर हो गया है अब तुम इस उम्र में इसका बोझ बढ़ा रही हो। कभी सोचा है शादी करके चली जाओगी तो ये घर कैसे चलेगा और इस उम्र में जब ससुराल जाओगी तो लोग कितने सवाल करेंगे कि अब तक शादी क्यों नहीं की, क्या कोई मिला नहीं या क्या कमी है क्या बताओगी..?"
दिव्या बोली "दादी आप चिंता मत करो मैं आपके समाज से ही सीखी हूं कि पहले अपनी रक्षा करो आत्मनिर्भर बनो बाद में किसी और की सुनो। जब समाज ने मेरा साथ नहीं दिया तो मैं क्यों बात मानू समाज की..! आज की दुनिया में जो सक्षम होते हैं समाज भी उन्हीं का साथ देता है। ये समाज वाले मेरे पिता को कितना सुनाते थे कि 3-3 बेटी पैदा की,अब हिम्मत नहीं किसी में जो मेरे पापा को को कुछ कह दे हां पीठ पीछे बोलने वालों को कौन रोक सका है।"
आलोक बाबू आगे आकर बोले "मां दिव्या कुछ गलत नहीं कह रही है हमारे रिश्तेदारों ने भी कहां हमारा साथ दिया! अगर ये नौकरी नहीं करती तो आप सोचिए में दो दो बेटियों की शादी कैसे कर पाता, मुझे बेटा नहीं है इसका मुझे कोई गम नहीं है आज मेरी बेटी बेटा बनकर मेरा सहारा बनी। तब भी आप उसी पर उंगली उठा रही हैं और उसी की ख्वाहिशों को दबा रही हैं. !"
कमला जी बोलीं "तुम कितनी भी सफाई दे लो बेटी तो बेटी होती है। इतने समय तक इसने शादी नहीं की अब इस उम्र में शादी करेगी, दोनों बहनों के ससुराल वाले क्या कहेंगे।" सब ने कमला जी को समझाने की बहुत कोशिश की पर उन पर कुछ असर नहीं हो रहा था तो सब वहां से चले गए।
दिव्या की छोटी बहन रश्मि ने दादी को फोन किया हालचाल जाने के लिए तो दादी ने पूरी कथा सुना दी और बोली कि "तुम्हारे ससुराल वालों को भी पता चलेगा तो देखना कितना बात का बतंगड़ बनाएंगे।" वो बोली "दादी अब मैं क्या करूं सब मुझ पर हसेंगे! वो तो यही कहेंगे कि जिस उम्र में लोग बच्चे पैदा करते हैं उस उम्र में इसकी बहन शादी कर रही है।"
रश्मि ने तुरंत अपनी छोटी बहन रेनू को फोन किया और सारी बात बताई रेनू ये बात जानकर बहुत खुश हुई और बोली "दीदी शादी कर रही है मैं तो बहुत खुश हूं।" रश्मि बोली "क्या तुम पागल हो गई हो..! सोचो हमारे बच्चे हैं वो क्या सोचेंगे कि हमारी बड़ी मौसी अब शादी कर रही है!" रेनू बोली "इसमें क्या नई बात है दीदी की अपनी मर्जी थी उनकी भी कुछ ख्वाहिशें थी वो उन्हें पूरा करने के बाद शादी करना चाहती थी। और समाज वाले कौन होते हैं दखलअंदाजी करने वाले, जब हमारी शादी की बात चल रही थी तो क्या समाज वाले पापा की मदद करने आए थे..? उस समय दीदी ना होती तो हमें अच्छा परिवार और लड़का नहीं मिलता और तुम कब से समाज की बातें सुनने लगी..!" रश्मि को भी एहसास हुआ कि वो अपनी बहन को छोड़कर समाज की चिंता कर रही है।
समय बिता कौशल के माता-पिता दिव्या के घर आए और रिश्ते की बात है कि ये बात चारों तरफ फैलने लगी। एक रोज कमला जी मंदिर गईं वहां पंडित जी ने कहा "कमला जी बड़ी खुशी हुई जानकर कि बड़ी बिटिया का रिश्ता तय हो गया। ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं और इतनी गुणी समझदार लड़की जिस घर जाएगी वहां किसी चीज की कमी नहीं होगी।"
वहीं कमला जी की सहेली कामिनी जी बैठी थी वो बोलीं "पंडित जी आप भी हद करते हैं इस उम्र में कौन सी लड़की को अच्छा रिश्ता मिलता है! अब अगर शादी नहीं भी करती तो क्या बदल जाता, कम से कम मां-बाप का सहारा ही बनकर रह जाती। अरे लड़की अपनी ख्वाहिश ससुराल में रहकर भी तो पूरी कर सकती।"
दिव्या कॉलेज से घर की तरफ आ रही थी रास्ते में ही मंदिर था उसने दादी को देखा तो वहां चली गई और जब उसने कामिनी जी के बाद सुनी तो वो आगे बढ़कर अपनी दादी के कंधे पर हाथ रख कर बोलो "कामिनी दादी जरूरी है औरत अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए पहले मां बाप का और फिर सास-ससुर का मुंह ताकती रहे..? मेरे पिता ने मुझे आत्मनिर्भर बनाया ताकि मैं अपनी फेसलों के लिए किसी का मुंह ना ताकू, आपने तो अपनी पोती की शादी 24 साल में ही कर दी थी ना..! क्या हुआ उसे ससुराल वालों ने पढ़ने नहीं दिया और ना ही अपनी मर्जी से वो मायके आती है, मैंने तो यहां तक सुना है कि वो अपनी मर्जी से अपनी पसंद के कपड़े तक नहीं पहन पाती है..! क्या इसी को आप सही उम्र में शादी करना कहती हैं..?"
कमला जी आश्चर्य से कामिनी जी को देखने लगे और बोली "कामनी बहन आप तो हद करती हैं अरे जिसके घर में खुद छेद हो वो दूसरों के फटे को सीलेगा..! सच कहा है किसी ने चलनी दूसे सुप को.. चलो बेटा देख लिया बोलने वालों को।" इतना कहकर वो पोती के साथ घर चली गईं।
जब दोनों दादी पोती घर आई तो आलोक और प्रमिला हैरान थे क्योंकि ये तो पूरब पश्चिम का मिलन था। सबकी हैरान भरी निगाहें देखकर दिव्या दादी का हाथ पकड़ कर बोली "दादी किसी को जवाब देने की जरूरत नहीं है। आपको मुझ पर भरोसा है न आज तक मैंने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे किसी का सर झुके, मैं बस जिम्मेदारियों को बांटना चाहती थी इसीलिए इतने सालों तक मैंने शादी नहीं की थी। अब जब सही जीवनसाथी मिला है और मैंने अपनी ख्वाहिशे पूरी कर ली तो क्या गलत किया..? और आप ही तो कहती हैं सब भगवान की मर्जी से होता है तो मेरी शादी थोड़ी लेट हो रही है, उसमें भी उनकी मर्जी है। अगर आपका आशीर्वाद रहा तो मेरी बची खुची ख्वाहिशें भी पूरी हो जाएगी।"
देखते देखते समय बीता और शादी की तारीख पास आ गई। रश्मि और रेनू अपने पतियों के साथ मायके आई उन्हें आते देख दिव्या ने अपनी बाहें फैलाए दोनों बहनों ने बड़े प्यार से दिव्या को प्यार दिया। रेनू बोली "दीदी अब हम भी गाएंगे जिनके आगे जी, जिनके पीछे जी मैं हूं उनकी साली जी वो हैं मेरे जीजाजी..।" सब हंसने लगे।
रश्मि दादी के पास जाकर बोली "दादी मैं भी आपकी तरह सोचती थी पर रेनू ने मुझे समझाया की शादी की कोई उम्र नहीं होती। इंसान अपनी ख्वाहिशों को पूरा करके भी शादी कर सकता है, और ये भी तो देखिए लड़का आगे बढ़कर दीदी का हांथ मांगा और वो दहेज नहीं ले रहे ये बात सोच कर ही हमारे मन में उनके प्रति बहुत इज्जत बढ़ गई है।"
दोनों दामाद आगे बढ़कर बोले "दादी आप की पोती सही कह रही है लड़की अगर अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए अगर कुछ समय मांगे तो मायके में मिलना ही चाहिए। आखिर कब तक वो अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए दूसरों का मुंह ताकेगी हम तो बहुत खुश हैं।"
सबकी खुशी में दादी भी खुश हो गई फिर क्या था शादी की तैयारी शुरू हुई। शादी के रोज जब दिव्या तैयार होकर आई सभी की आंखें फटी की फटी रह गई मानो आसमान से कोई अप्सरा आ रही थी। दोनों बहने दिव्या को लेकर आगे बढ़े कौशल ने आगे बढ़कर अपना हाथ बढ़ाया, दिव्या ने पिता की ओर देखा तो उन्होंने हां में इशारा किया दिव्या ने अपना हाथ कौशल के हाथों में सौंप दिया।
पंडित जी जब कसमें दिला रहे थे कौशल बोले "मैं अपनी तरफ से एक वादा करता हूं कभी भी इसकी ख्वाहिशों को नहीं दबाऊंगा। ये बिल्कुल आजाद पंछी की तरह जैसे आज तक माता पिता के पास रही, अपने दूसरे घर में भी रहेगी और मैं हमेशा इसका साथ दूंगा।"
सबके आशीर्वाद से विवाह संपन्न हुआ जब दिव्या विदा होने लगी अपने पिता के आंसुओं को पोछते हुए बोली "पापा खुद को कभी अकेला मत समझना मैं हमेशा आपके साथ रहूंगी। हमेशा मेरी यही ख्वाहिश रहेगी कि मेरा पूरा परिवार हमेशा खुश रहे।"
कौशल हाथ जोड़कर बोला "अब आपकी बेटी के साथ आपका ये बेटा भी है। अपनी बेटियों के सपनों को पूरा करने के लिए आपने समाज की जिन बातों को अनसुना किया, मैं आपको वचन देता हूं मैं आपको कभी निराश नहीं करूंगा।" कौशल की बातें सुनकर पूरा परिवार खुश था कि दिव्या का निर्णय सही है।
समाज में कुछ ऐसी भी लड़कियां होती है जो अपनी ख्वाहिशों को खुलकर माता-पिता के सामने नहीं रख पाती हैं। उन्हीं में रोशनी मिलती है बस कोशिश करने की जरूरत है।
आपको ये कहानी अच्छी लगी तो मुझे सपोट करें बहुत-बहुत आभार।
