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Nidhi Sharma

Children Stories Inspirational Children

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Nidhi Sharma

Children Stories Inspirational Children

बच्चों क समझाने का तरीका ..

बच्चों क समझाने का तरीका ..

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रात का वक्त था सब खाना खाकर अपने अपने बिस्तर पर जा रहे थे गरिमा अपनी बेटी को पढ़ने के लिए एक किताब दी और खुद थोड़ी देर लाइब्रेरी में किताबों के साथ वक्त बिता रही थी। "बहू ऐसे तो तुम कहती हो कि तुम काम करके थक जाती हो. ! पर जब देखो किताबों मैं आंखें गड़ाए बैठी रहती हो और तो और मेरी पोती को भी किताब देकर भेज दिया। यही नतीजा होता है जब मां-बाप शिक्षक या शिक्षिका हो तो कुछ बच्चों को जरूरी काम से ज्यादा किताबों में लगे रहते हैं ताकि उन्हें कोई कुछ काम ना बता दे।" प्रमिला जी अपनी बहू गरिमा से कहती हैं।

गरिमा मुस्कुरा कर बोली "मम्मी जी अगर मां-बाप शिक्षक या शिक्षिका होते हैं तो अपने बच्चों को भी वो अच्छी शिक्षा ही देते हैं। वो ये नहीं कहते हैं कि अपनी बातों से किसी और को कभी तकलीफ पहुंचाओ। किताबों में अच्छी बातें होती हैं तभी तो आपने भी अपने बेटे को भी पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाया। और वैसे कौन सा आपका काम मैंने नहीं किया जो आप इन किताबों को मेरा दुश्मन बता रही हैं..?"

प्रमिला जी बोलीं "खाना खाकर सब अपने कमरे में चले गए और तुम यहां किताबों के बीच आ गई! तुमने एक बार पूछना जरूरी नहीं समझा कि खाने के बाद शायद कोई दूध या पानी ले बस आ गई अपने किताबों की दुनिया में..! यही कारण है कि तुम मेरी पोती को भी दिन रात पढ़ने के लिए कहती रहती हो।"

गरिमा मुस्कुरा कर बोली "मम्मी जी खाना खाने के बाद थोड़ा बहुत चलना फिरना भी चाहिए तो मैंने सोचा दूध और पानी तो आप खुद भी ले सकती हैं। और जहां तक आपकी पोती की बात है मैंने आपसे कई बार कहा है, आपको जितना दुलार प्यार करना है उसे कीजिए परंतु जब मैं उसे पढ़ने बोलूं या पढ़ाने बैठूं तो आप शिक्षिका मत बनिए। मम्मी जी वक्त के साथ पढ़ने और पढ़ाने का तरीका भी बहुत बदल रहा है।"

प्रमिला जी गुस्से से बोलीं "क्यों मेरी पोती पर क्यों मेरा अधिकार नहीं है..? तुम जितना चाहो उसे बोलती रहो और ढ़ाटती रहो कोई कुछ ना बोले..! घर की बहू हो वही बनी रहो, भूलो मत कि आज भी इस घर की बड़ी मैं हूं।"

गरिमा गोली " मम्मी जी आप बात को दूसरा मोड़ दे रही हैं मैं बस इतना कहती हूं जब मैं उसे पढ़ाती हूं और आप बीच में आकर हस्तक्षेप करती हैं तो उसे ये लगता है कि मैं जो उसे समझा रही हूं वो गलत है..! इससे बच्चों को गलत संदेश जाता है इसी वजह से जब भी वो गलती करती है तो आपके पीछे छूपने की कोशिश करती है, अगर यही आदत रही तो उसका आत्मबल घटता जाएगा बस मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूं।" इतना कहकर गरिमा अपनी किताब लेकर कमरे में चली गई।

जैसे ही गरिमा कमरे में आई उसके पति गौतम बोले "क्या हुआ फिर से सास बहू में रिया (बेटी) के लिए झगड़ा हो गया..?"

गरिमा बोली आपको मैंने पहले भी कहा था कि आप मम्मी जी से इस विषय पर बात कर लीजिए और आप तो अपना पल्ला हर बार झाड़ लेते हैं। मुझे समझ में नहीं आता जब मैं उन्हें कहती हूं कि रिया जब पढ़ती है तो उसके साथ बस थोड़ी देर बैठिए, उस समय उसे विक्रम और बेताल की कहानियां सुनाने लगती हैं..! और जब मैं पढ़ाने बैठती हूं और जरा सा उसे ढ़ांटती हूं वो पीछे से डंडा लेकर मेरी अध्यापिका बन जाती हैं आखिर कब तक ये सब चलेगा..?"

गौतम बोले "तुम कितना परेशान होती हो अब अगर तुम मां को एक और पोती या पोता दे देती तो दूसरे में व्यस्त रहती। अब एक पोती है तो सारा प्यार तो वो उसी पर लुटाएगी ना..।" इतना कहकर गौतम हंसने लगे

गरिमा बोली "हां हां कर लो अपनी मां की तरफदारी..! एक बच्चा तो आप दोनों से संभलता नहीं है और दूसरे बच्चे की चाहत रखते हो..!! मैं भी पीछे हटने वाली नहीं हूं मास्टर की बेटी हूं अपनी बेटी को भी सही रास्ते पर ले आऊंगी " इतना कहकर गरिमा अपने किताबों में खो गई।

धीरे-धीरे समय बीतने लगा मां और दादी की नोकझोंक के साथ रिया भी बड़ी होने लगी। एक दिन रिया को वो कुछ कह रही थी और रिया उसकी बात नहीं मान रही थी, क्योंकि जब भी गरिमा उसे समझाती प्रतिभा जी बीच में आ जातीं..!

इन्हीं सब बातों से गरिमा बहुत परेशान थी तभी उसकी एक सहेली पूजा का फोन आया और दोनों ने पार्क में मिलने का प्रोग्राम बनाया। सभी परेशानियों से कुछ फुर्सत के पल निकालकर गरिमा पार्क में गई।

गरिमा को चिंतित देख कर पूजा बोली "क्या बात है उदास बैठी हो..! तुम तो हमेशा खिलखिलाती रहती हो फिर आज चेहरे पर ये उदासी क्यों?"

वो बोली "यार बहुत परेशान हो गई हूं। बढ़ते हुए बच्चों को समझाना और सिखाना किसी परीक्षा से कम नहीं होता है!" पूजा बोली "ऐसी क्या बात हो गई जो तुम इतना परेशान हो...!"

गरिमा बोली "तुम जानती हो मुझे खाने-पीने का शौक नहीं है। परंतु मुझे नई-नई किताबें पढ़ना और रेसिपी बनाना बहुत अच्छा लगता है, रिया अब बड़ी हो रही है तो हमेशा कुछ न कुछ मैं उसके लिए करती रहती हूं। जब भी उसे कुछ समझाती हूं उसकी दादी बीच में मास्टरनी बन जाती है फिर वो मेरी एक बात नहीं सुनती। फिर उसके चेहरे पर जब उदासी आती है ये देखकर क्या मैं खुश रह पाऊंगी तुम ही बताओ मैं क्या करूं?"

पूजा बोली "ये इसलिए हो रहा है कि तुम अपना वक्त किताबों के साथ ज्यादा बिताती हो और तुम्हारी सास रिया के साथ ज्यादा वक्त बिताती है। थोड़ी देर उसके साथ अकेले में बैठो उसके मन में चल रही बातों को जानने की कोशिश करो। फिर देखना तुम्हारी परेशानी का हल अपने आप निकल जाएगा।"

गरिमा बोली "जाने आजकल के बच्चों को क्या हो गया है..! बस पढ़ना और खाना यही दो जिम्मेदारी तो होती है फिर भी वो इतना परेशान हो जाते हैं, हमारे जमाने में हर चीज के लिए हमें दूसरों का चेहरा देखना पड़ता था ,घर की परेशानियों को भी झेलना पड़ता था। माता पिता के काम में हाथ बटाते और वक्त मिलने पर हम मुस्कुराते थे।"

पूजा मुस्कुराकर बोली "सच में आजकल के बच्चों को देखो, सर पर न जाने कितने बोझ लिए घूमते हैं...! और मन की बातों को मन में ही दबाए रखते हैं।"

गरिमा बोली "आज कल की ये भागदौड़ की दुनिया न जाने कैसी हो गई है जो इन मासूम बच्चों के चेहरे से उनकी हंसी ही ले गई है! पर मेरे घर में मेरी सासु मां उसे समझाने की जगह और उल्टा कुछ ऐसा कह देती हैं कि सब गड़बड़ हो जाता है।"

पूजा बोली "इसका तो कोई उपाय नहीं है क्योंकि तुम्हारी सास को तुम्हारे घर में ऐशो आराम मिलता है तो वो तो जाने से रहीं फिर तुम क्या करोगी..?"

गरिमा बोली "मैं जानती हूं वो अपनी पोती का बुरा नहीं चाहती पर उनका तरीका गलत है। ये बात उन्हें समझनी होगी कि वक्त के साथ और पढ़ाने का तरीका बदल रहा है, पर उनसे मैं उम्मीद भी कैसे करूं उनकी जो उम्र हो गई है। हां रिया को समझाने की कोशिश जरूर करूंगी और मुझे पता है मैं कामयाब हो जाऊंगी।" थोड़ी देर बात करके दोनों अपने घर चली गई।

घर आकर वो रिया से बोली "बेटा क्या खाओगी बताओ? मैं फटाफट बना देती हूं।" वो बोली "मुझे खाने की इच्छा नहीं है। ये काम मिला है पता नहीं हो पाएगा कि नहीं!"

गरिमा बोली "बिना कोशिश के हार नहीं मानो मुझे भरोसा है तुम कर लोगी।" वो बोली "कहना आसान होता है मां करना उतना ही मुश्किल..।"

गरिमा हंस कर बोली "तुम्हें याद है जब मैं तुम्हें पहले किताबें पढ़ने बोलती थी तो तुम्हें किताबें भी अच्छी नहीं लगती थी और तुम दादी के पीछे छुप जाती थी। फिर धीरे-धीरे किताबों से तुम्हारी दोस्ती हुई और वही किताबें तुम्हें अब अच्छी लगने लगीं। बेटा तुम मुझे मां के साथ सहेली भी समझ सकती हो अगर कुछ परेशानी है तो तुम मुझसे बात कर सकती हो। हर वक्त ऐसे चेहरे को लटकाए मत रहो, बहुत दुख होता है कभी तो खुद से प्यार किया करो। औरों के लिए नहीं खुद के लिए खुश रहो और जीना सीखो।"

रिया बोली "मम्मी आप दूसरों की मांओ की तरह मुझे ज्ञान मत देने लगना, मैं थक गई हूं इन सब बातों से!" गरिमा ने उसके हाथों को पकड़ा और बोली "आखिर बात क्या है? जब तक तुम मुझसे साझा नहीं करोगी, तो तुम्हारा मन कैसे हल्का होगा।" उसकी बेटी की आंखों से आंसू बहने लगे।"

वो बोली "मुझे लगता है मेरे सभी दोस्त कुछ वक्त बाद काम करने लगेंगे। एक मैं ही हूं जो अभी तक पढ़ने में लगी हूं, आपका सपना मैं कब पूरा करूंगी यही सोच-सोच कर मैं थक जाती हूं और पढ़ाई भी नहीं कर पाती हूं।"

गरिमा बोली "बेटा बचपन में मैं तुम्हें किताबें पढ़ने इसलिए नहीं कहती थी कि अपने ऊपर दबाव बनाओ..! विद्यार्थी के पास ज्ञान होना जरूरी है जो तुम्हारे पास है और सफलता अपने वक्त पर ही मिलती है।"

वो बेटी के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "बेटा छोटी-छोटी बातों से अगर तुम इतना दुखी हो जाओगी तो बड़ी बड़ी परेशानियों का कैसे सामना कर पाओगी। हर काम को खुशी से करना सीखो और जरूरी बात ये है कि हमेशा अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान रखो तो सफलता आज ना कल तुम्हारे पास आ ही जाएगी।" फिर गरिमा के साथ रिया भी मुस्कुराने लगी।

रिया बोल "मम्मी आप कैसे हर समय ऐसे आराम से रहती हैं..! शायद ये उन किताबों का असर है जिनके साथ आप अपना वक्त बिताती हैं, तभी तो मुझे याद है आप जितना किताबों के साथ वक्त बिताती थीं उतना ही दादी आप पर गुस्सा करती थीं। उन किताबों ने ही आपको धैर्य से रहना सिखाया काश कि आपका ये गुण मुझमें में होता।"

गरिमा बोली "जरा धीरे बोलो अगर तुम्हारी दादी ने ये बात सुन ली तो वो कहेंगी एक पोती मेरे पक्ष में थी उसे भी मेरी बहु छीन ले गई।" इतना कहकर दोनों मां बेटी हंसने लगी।

रिया को हंसता देख गरिमा बोली "अपनी खुशी को चेहरे पर आने दो, खुशी इंसान के हाथों में होती है बस पहचानने की देर है। मैंने हमेशा किताबों को अपना दोस्त बनाया तुमने उन्हें दोस्त बनाया पर उन्हें अपनी मन की बात नहीं बताई कभी उन्हें बनाकर तो देखती तुम्हें कब का समझा चुके होते।"

रिया बोली "सच कहा आपने मैं अपने पुराने दोस्त उन किताबों से दूर क्या हुई मैं तो दादी की तरह गंभीर हो गई। आपको पता है मेरे दोस्त भी कहते हैं कि मैं स्कूल में कितना हंसती और मुस्कुराती थी न जाने मेरे चेहरे की वो हंसी कहां चली गई!"

गरिमा बोली "सोचो तुम्हारे दोस्तों को भी तुम्हारे चेहरे की उदासी दिखती है! कभी सोचा है तुम्हारे दुखी चेहरे को देखकर तुम्हारी मां कितना दुखी होती है। और मेरी तो छोड़ो तुम्हारा उतरा हुआ चेहरा देखकर सबसे ज्यादा दुखी तुम्हारी दादी होती है और इन सब बातों का जिम्मेदार वो मुझे मानती है।"

तभी प्रमिला जी का आगमन हुआ और बोलीं "बहू अब तो ये बड़ी हो गई है अब तो इसके पीछे मत पड़ा करो..! दिन-रात तो ते किताबों के साथ रहती है, आखिर तुमने मेरी पोती को अपने जैसा बना ही लिया अब क्या चाहती हो पढ़ते-पढ़ते मेरी पोती पागल हो जाए।"

गरिमा हंसकर बोली "लो जिसका डर था वही हुआ।" रिया भी हंसने लगी। रिया आगे बढ़ कर बोली "दादी किताबें हमारे दुश्मन नहीं हमारी सहेली होती है। और आपको पता है जो बात आप मुझे समझा नहीं पाती है वो भी ये किताबें समझा देती है। देखिएगा एक दिन आपको भी मम्मी की बातें सच लगेगी और मुझ पर गर्व महसूस होगा।"

प्रमिला जी पोती के कंधे पर हाथ रखकर बोलीं "मुझे पता है बेटा आखिर तुम्हारे शरीर में मेरे खानदान का खून है कुछ ना कुछ तो अच्छा तुम जरूर करोगी आखिर पोती किसकी हो।"

गरिमा बोली "ये अच्छा है मम्मी जी मेहनत मैंने इतने सालों किया और सारा क्रेडिट आप ले गईं..! जब बच्चे अच्छा करें तो वो पिता और दादी पर चले जाते और जब यही कुछ शरारत करती थी तो आप क्या कहती थीं, बिल्कुल अपनी मां पर गई है।" गरिमा के इतना कहते ही सब हंसने लगे।

तभी उधर से रिया के पापा गौतम आए और बोले "मैंने तो सुना था दो तलवार एक म्यान में नहीं रह सकती पर यहां तो तीन-तीन तलवार एक साथ हैं..!" प्रमिला जी बोलीं "तू क्या चाहता है पूरी जिंदगी बहू के साथ लड़ाई झगड़े से बीत जाए..?"

गरिमा बोली "सही पकड़े हैं मम्मी जी सास बहू की दोस्ती हो जाए ये बात जल्दी किसी को हजम नहीं होती है।"

रिया बोली "पापा दादी और मम्मी के झगड़े का कारण हर बार मैं होती थी। अब जब मैंने ही सुलह कर ली अपनी किताबों से तो हर झगड़ा खत्म हो गया।" गरिमा बोली "आप सब बैठ कर बातें कीजिए मैं आप लोगों के लिए गरमा गरम चाय और पकौड़े लाती हूं।" सबको एक साथ देखकर रिया के चेहरे की उदासी मानो कहीं दूर चली गई हो और खुशियों ने उसके चेहरे पर डेरा डाला हो।

अब वो मन लगाकर पढ़ती थी और खुशी से सबके साथ खिलखिलाती थी। कभी भी पढ़ाई को लेकर घर में झगड़े नहीं होते थे अब शांति ही शांति होती थी। जब कभी रिया की परेशानियों से गरिमा परेशान होती थी तो प्रमिला जी उसे हौसला देती थीं और वही हौसला गरिमा अपनी बेटी को देती थी तो उसके चेहरे पर उदासी नहीं सदा मुस्कुराहट बनी रहती थी।

दोस्तों पुरानी पीढ़ी गलत नहीं होता परंतु वक्त के साथ पढ़ने और पढ़ाने का तरीका भी बदल रहा है हमारे बुजुर्गों को भी समझना होगा। हम सबसे ज्यादा जरूरी बात की बढ़ते हुए बच्चों को भी समझने के लिए हमें अपने आप को भी बदलना होगा।



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