एक ख़ून माफ़
एक ख़ून माफ़
मैं समझ नहीं पा रही थी कि संचय को हो क्या गया है, वह मेरे सामने दूसरे युवा, सुंदर पुरुषों की प्रशंसा क्यों करता रहता है? क्या उसको अपनी कमियों का अहसास है ?पर मैंने तो कभी उसके रूप -रंग , उम्र के लिए उसे कुछ नहीं कहा। कहती भी क्यों, मैंने ही तो उसे चुना था। जो चीज मनुष्य के हाथ में नहीं, उसके लिए उसे दोषी ठहराना न्यायसंगत भी तो नहीं।
फिर संचय ऐसा क्यों कर रहा है? क्या उसे यह पता चल गया है कि हर स्त्री के सपने का राजकुमार आकर्षक और युवा पुरूष ही होता है। पर अब क्यों ?उम्र के ढलान पर उसे कोई मानसिक व्याधि तो नहीं हो रही है? कहीं वह मेरे दमकते रूप रंग और युवा देह से भयग्रस्त तो नहीं है? पर मैंने तो कभी उसे यह अहसास नहीं कराया।
रति- क्रिया के समय भी वह अजीब -अजीब सी हरकतें करने लगा है। वह दूसरों के सहवास के किस्से सुनाकर मुझे उत्तेजित करने की कोशिश करता है और मेरा मुँह देखता रहता है कि मुझ पर कैसी प्रतिक्रिया हो रही है? लज्जा से बंद मेरी आंखों को बार -बार खोलने का प्रयास करता है। उसे लगता है कि वह पहले की तरह मुझे संतुष्ट नहीं कर पाता है, जबकि मेरी तरफ से ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ जिसकी रुचि, इच्छाएं, संतुष्टि सब कुछ पति की रुचि, इच्छा और संतुष्टि पर निर्भर होती है। फिर क्या हुआ है संचय को? क्या बढ़ती उम्र में उसका मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है?
मैंने देखा है जब मैं रात को गहरी नींद में सो रही होती हूँ। वह एक -एक कर मेरे सारे कपड़े उतार देता है मैं जाग जाती हूँ फिर भी नींद में होने का नाटक करती हूँ। वह मेरी नग्न देह को देखता है सजे साथ अजीब- अजीब सी हरकतें करता है और फिर एकाएक उत्तेजित होकर मुझे सुख से सराबोर कर देता है।
इधर उसे एक नई सनक सवार हुई है । जब वह घर पर होता है फोन पर जाने किसी सहकर्मी से सेक्स की बातें करता है। वह उसे बताता है कि इस समय वह अपनी पत्नी के साथ किन- किन काम आसनों की आजमाइश कर रहा है। मैं शर्म के मारे उस जगह से दूर भाग जाती हूँ। बात करने के बाद वह पूरी तरह अवश हो जाता है और मुझपर किसी भूखे की तरह टूट पड़ता है। मैं इन सब बातों को इग्नोर करती हूँ बस उस सुख को याद रखती हूं जो उसके इन पागलपन के बाद मुझे मिलता है।
कभी -कभी मैं सोचती हूँ कि वह सहकर्मी मेरे बारे में क्या सोचता होगा? संचय अक्सर उसकी बातें करता है। कहता है- इतना सुंदर लड़का मैंने आज तक नहीं देखा। गुलाबी रंगत, काले घुँघराले बाल, नाक -नक्श तराशे हुए। अभी अविवाहित है महज पच्चीस साल का। '
वह सोचती होगा उससे क्या! पर एक दिन उसे लेकर घर आ गया। सचमुच बहुत आकर्षक था वह। उसे घर में छोड़कर संचित किसी काम से बाहर चला गया। काम क्या, हम दोनों को अकेले छोड़ने का बहाना था। मैं संकुचित थी कि यह लड़का अमित मेरी सारी गुप्त बातें जानता है। लड़के ने मुझसे बातें शुरू की--आप बहुत सुंदर हैं । कैसे भैया के साथ निभाती हैं!
क्यों !निभाने के लिए क्या बस रूप -रंग देखा जाता है।
-नहीं , फिर भी !कहाँ आप और कहां वे!
तो क्या करूं?
-मेरे संग दोस्ती कर लीजिए। निराश नहीं करूंगा।
-उसकी आँखों में निवेदन था।
तुम्हें पता है न कि मैं शादीशुदा हूँ!
-तो क्या हुआ आप एक स्त्री भी तो हैं ! आपकी भी तो कुछ इच्छाएं होंगी।
देखो मैं अपने पति से संतुष्ट हूँ। इस तरह की बातें करोगे तो उनसे कह दूँगी।
-क्या कहेंगी? अरे वे तो यही चाहते हैं कि मैं आपके साथ दोस्ती कर लूं। आप क्या समझती हैं वे किसी काम के लिए हमें अकेला छोड़ गए हैं, नहीं । वे मुझसे बिस्तर की बातें शेयर करते हैं। आपके एक -एक अंग की बातें करते हैं। क्योंकि वे चाहते हैं कि मैं आपमें दिलचस्पी लूँ। और हम दोनों को साथ देखकर वे उत्तेजना महसूस करें।
वह कुछ गलत नहीं कह रहा था, फिर भी मैं अपने पति धर्म से विचलित नहीं होना चाहती थी।
संचित आया । उसने गौर से मुझे देखा और फिर उसके साथ चला गया। लौटा तो बड़ा अनमना था। उस रात वह बिस्तर पर करवट ही बदलता रह गया।
क्या हो रहा है इसको ?क्या किसी डॉक्टर के पास ले जाऊं इसे , पर यह जाने को तैयार कहाँ होगा! अपने हिसाब से तो यह पूरी तरह नार्मल है।
अमित के फोन आने शुरू हो गए थे। वह बार -बार रिक्वेस्ट करता कि बस एक बार उसे प्रेम करने का मौका दे दूँ।
मैं उसे डाँट देती। एक दिन संचय कहने लगा कि अमित को क्यों सताती हो? वह तुमसे मिलना चाहता है और तुम उसे वक्त ही नहीं देती।
-मुझे वह अच्छा नहीं लगता।
झूठ! बिल्कुल झूठ! अमित जैसा लड़का किसी को अच्छा न लगे, यह तो हो ही नहीं सकता। तुम मेरी चिंता न करो मैं उसके आने -जाने का बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।
मैं चुप रह गयी। अमित अब इसकी उपस्थिति में ही आता और कभी -कभार अनुपस्थिति में भी। अब वह कोई ऐसी -वैसी बातें न करता। हमेशा हंसता -हंसाता रहता। अब एकांत में वह सिर्फ मन की बात करता। उसके हाव-भाव से मेरे प्रति प्रेम झलकने लगा था। वह मेरी सुंदरता की प्रशंसा करते हुए आहें भरता। संचय के भाग्य से रश्क करता। मेरी सुख- सुविधाओं की चिंता करता। बाहर घुमाने ले जाता। धीरे -धीरे वह मुझे अच्छा लगने लगा। अब मैं उसका इंतज़ार करने लगी। किसी दिन नहीं आता तो उदास हो जाती। उसने मुझे अपनी आदत डाल दी थी। वह कहता कि मुझे सिर्फ तुम चाहिए और कोई लड़की नहीं। किसी लड़की में तुमसे अधिक क्या होगा? पर जब तक तुम नहीं कहोगी तुम्हें स्पर्श भी नहीं करूँगा।
उसकी बातों का मुझपर असर होने लगा था। संचय के प्रति मैं तब भी अपने धर्म का पालन कर रही थी, पर मन में अमित ही अमित था। कभी -कभी सोचती यह पाप है । फिर सोचती हमने फिजीकल रिश्ता नहीं बनाया है और मन का रिश्ता पाप नहीं होता।
पर अमित ने अपने जन्मदिन के दिन जब उससे तोहफ़ा मांगते हुए अपनी बाहें फैला दी तो जाने किस भावना के वशीभूत मैं उसकी बांहों में समा गई। उसके युवा देह की मादक गंध मेरी साँसों में घुल गयी। उसने अपने गुलाबी होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। ऐसा लगा जैसे किसी ने प्यासे होंठों पर अमृत की बूंदें टपका दी हों। उसने मेरी देह को छुआ मेरी देह वीणा बन गयी उससे मधुर और मादक धुन निकलने लगी। आह, यह कैसी दुनिया है इतनी सुखद ...इतनी मादक इतनी स्वर्गिक। संचय के साथ तो कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ था।
पर ये पाप है--मन के भीतर से हल्का -सा स्वर उभरा। जिसे मन ने ही दबा दिया-नहीं, यह अधिकार है। स्त्री की अपनी देह का अपना अधिकार। उसे भी अपने इच्छित पुरुष से प्रेम करने का अधिकार है। अपनी देह के प्रति भी उसके कुछ कर्तव्य हैं।
संचय को मैंने इस बारे में कुछ नहीं बताया । जाने क्यों ठीक नहीं लगा कि वह जाने कि अमित के साथ मेरे सम्बन्ध प्रगाढ़ हो चुके हैं। अमित ने भी संचय से यह बात छुपा ली। अब हम अक्सर मिलते, पर संचय को नहीं बताते।
संचय यह देख रहा था कि ऑफिस में अमित वही गीत गुनगुनाता है जो घर पर मैं। दोनों की फूटी पड़ी खुशी भी उसे दिख रही थी, पर इसका रहस्य उसे समझ नहीं आ रहा था। अब अमित उसकी सेक्स संबंधी बातों में रुचि नहीं लेता था और घर पर मैं भी उसके पागलपन पर टोक देती थी। उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि उसके दो मोहरे अपनी चाल खुद चलने लगे हैं। उसकी ईर्ष्या भड़क उठी थी। उसने घर आकर मुझसे अमित के बारे में पूछा--कैसा लगा उससे सेक्स अनुभव!
क्या! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ हमारे बीच।
-अच्छा! क्या यह भी झूठ है कि वह अक्सर यहां आता है।
अक्सर नहीं कभी -कभार आते हैं वह भी आपकी जानकारी में।
-झूठ बोलती हो रंडी, मेरी बिल्ली मुझी को म्याऊं। उसके साथ गुलछर्रे उड़ाती हो और मुझसे बताती भी नहीं।
-क्या बताऊँ
तुम्हारी देह मेरी है मैं इसके साथ कुछ भी कर सकता हूँ-तुम्हीं न कहती थी।
-मैं गलत थी यह मेरी देह है इसके साथ कोई भी मेरी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता।
अच्छा! कैसे नहीं कर सकता! उसने मुझे गोद में उठा लिया और बिस्तर पर पटक दिया और मेरा चुम्बन लेने की कोशिश करने लगा। बदबू का एक भभूका उसकी देह से उठा और मेरा जी मिचलाने लगा। अमित का वह सुमधुर चुम्बन, उसकी देह की युवा गंध उसका कोमल स्पर्श याद आया। संचय का शरीर मेरे जिस्म से किसी अजगर- सा लिपट रहा है । मेरा दम घुटने लगा। मैंने पूरा ज़ोर लगाकर अजगर को अपनी देह से नोंच फेंका और उठकर बैठ गयी। साँसें सामान्य हुई तो देखा संचय जमीन पर पड़ा ऐंठ रहा है। उसके पूरे शरीर को लकवा मार गया है।
