एक भूल की सजा

एक भूल की सजा

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भैया का तार पाकर हड़बड़ी में मैं जाने को तैयार हुई। कॉलेज की परीक्षाएं चालू होने की वजह से अनुज के साथ आने का प्रश्न ही नहीं उठता था। सुबह की पहली गाड़ी में मुझे बैठाकर अनुज कॉलेज को रवाना हो गए। इधर अकेले पड़ने पर मेरे मन में तरह तरह के विचार, शंकाएं जन्म लेने लगीं। जाने क्या बात हुई ? निक्की की शादी को तो अभी पूरा एक महिना बाकी है। शायद पापा की तबियत खराब हुई हो। इन्हीं विचारों के बीच द्वंद्व करती हुई मैं अपनी मंज़िल तक आ पहुंची। बस स्टैण्ड से रिक्शा लेकर फटाफट घर पहुंची। घर में उदासी सा माहौल छाया हुआ था। मेरा ह्रदय किसी अकल्पनीय घटना को लेकर कांप गया। भारी कदमों से पापा के कमरे में दाखिल हुई तो पाया कि पापा सो रहे थे और मम्मी उनके सिरहाने गुमसुम सी बैठी हुई थी। मैं मम्मी के पैर छूकर उनके पास ही बैठ गई।

‘आ गई बेटी तू। नरेश को मना किया था की नाहक ही तुझे परेशान न करें। जो होना था सो हो गया।’ मम्मी हिम्मत जुटाकर एक एक शब्द अपने मुंह से निकाल रही थी।

‘क्या हुआ ? पापा की तबियत ज्यादा खराब हो गई है क्या ? भैया ने भी फोन पर कोई खास बात नहीं की।’ मैंने पूछा। प्रत्युत्तर में मम्मी की आँखों में आँसू आ गए, वे बोली –‘सब अपनों के ही दिए ज़ख्म है बेटी।’ फिर मेरे कंधे पर सिर रखकर सुबकने लगी। इतनी देर में भाभी भी पानी का गिलास लेकर आ गई। मैंने मम्मी को पानी पिलाकर शान्त कराया और फिर खुद पानी का गिलास थाम कर भाभी की ओर देखने लगी।

‘दीदी, वो निक्की ।’ भाभी बात को अधूरी रखकर चुप हो गई।

‘क्या हो गया है निक्की को ?’ मैं परेशान हो उठी।

‘निक्की भाग गई है।’ जवाब में भाभी की निगाहें झुक गई।

‘क्या ?’ मेरे हाथ से गिलास छूट कर ज़मीन पर जा गिरा।

‘क्या हुआ ? कौन है ? निक्की आ गई ?’ शोर सुनकर पापा उठकर बैठ गए। मैं उनके पाँव छूते हुए बोली –‘ पापा, मैं सुनीता।’

‘कौन सुनीता ? कैसी सुनीता ?’ पापा आँखें फाड़े मुझे देखने लगे। मम्मी और भाभी ने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाकर लिटाया। फिर लेटे लेटे वे छत की ओर ताकने लगे। मम्मी मेरी ओर मुड़कर बोली –‘तीन दिन से यही हालत है इनकी। ठीक से न कुछ खाते है और न पीते है।’


‘ये सब कैसे हो गया मम्मी ?’ मैंने एक गहरी सांस ली।

‘आज चार दिन हो गए है उसे गए। खुद की न सही पर खानदान की इज़्ज़त तक का खयाल न किया उसने। उसी सदमे से तेरे पापा की यह हालत है।’ मम्मी ने जवाब दिया।

‘इस लड़की की अक्ल पर पत्थर पड़ गए जो उसने ऐसा गलत कदम उठा लिया। यह रिश्ता तो उसकी रजामंदी से हुआ था।’ मैं बड़बड़ा उठी।

‘किस्मत ही फूटी है बेटी, जो वह सुखी सम्पन्न घर का रिश्ता छोड़कर उसके संग भाग गई।’ मम्मी ने सिर पकड़ लिया।

‘वो नुक्कड़ वाले रामप्रसाद जी का लड़का अनिल है। कुछ करता तो है नहीं। अब तक बाप की कमाई पर ऐश कर रहा था। निक्की को पता नहीं किस नरक में ले गया होगा ?’ कहते हुए भाभी की आँखें गीली हो गई।

‘आपकी आँखों के आगे इतना सब कुछ हो गया और आपको भनक तक न लगी ?’ मैंने पूछा ।

‘पता तो चला था। नरेश तो उस लड़के को जाकर धमका भी आया था। इधर मैंने और तेरी भाभी ने निक्की को बहुत समझाया पर जैसे उसके सिर पर तो उस करमजले का भूत सवार था। नरेश ने तो निक्की का घर से बाहर निकलना भी बंद करवा दिया था।’ मम्मी ने जवाब दिया।

‘भैया कहां है ?’

‘आज ही ऑफ़िस गया है। तीन दिन तक उसकी खोज खबर पाने को जाने कहां कहां भटका। हमें तो कहीं का न रखा इस लड़की ने। जितने लाड़ प्यार से पाला उतने ही गहरे ज़ख्म दे गई। अच्छा होता जाने से पहले हम सबको जहर दे जाती।’ मम्मी रो पड़ी।

‘नहीं मम्मी। ऐसा नहीं कहते। कर्मों की गति किसने जानी है। ये दिन भी लिखा होगा किस्मत देखने को। अब उसे याद कर ज्यादा दुखी होने से क्या फायदा।’ मैंने हिम्मत बटोरकर मम्मी को सांत्वना देते हुए कहा।

‘अपनी पेट जनी को कैसे भूल जाऊं ? मर जाती तो भुलाना आसान था। ये तो ऐसे लड़के का हाथ पकड़ा है जो अपने स्वार्थ के लिए उसे बेच भी सकता है।’ मम्मी की बात सुनकर मैं अन्दर तक हिल गई। फिर कमरे में काफी देर तक चुप्पी छाई रही। शाम को भैया आए तो वे भी मुझे काफी व्यथित लगे। लेकिन इस वक्त वे कमजोर पड़ जाते तो मम्मी पापा को कौन सम्हालता। अपनी सारी व्यथा न जाने उन्होंने किस तरह दफ़न कर दी।


भैया के कहने पर मैंने अनुज को सारी बातों से अवगत कराकर कुछ दिन यहीं रहने का फैसला कर लिया।

मम्मी पापा ने थोड़ी स्थिरता धारण की तो मैं भारी मन से सभी से विदा लेकर अपने घर को रवाना हुई।

निक्की ने ये क्या कर डाला ? सोचकर मेरा सिर भारी हुआ जा रहा था। घर पहुँचकर अभी कपड़े बदले ही थे कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो मैं हैरान हो गई। सामने निक्की खड़ी थी। मेरे जी में तो आया कि चोटी खींचकर इस लड़की को दो तमाचे घर दूँ। पर मेरे कुछ कहने या करने से पहले ही वह मुझसे लिपट कर रोने लगी। उसे रोता देख मेरे हाथ पैर ढीले पड़ गए। तभी यहां आते वक्त भैया की दी गई हिदायत मन में कौंध गई। 

‘सुनीता, वैसे तो वह अब अपना काला मुंह दिखाने वापस आएगी नहीं पर अगर भूल से भी तेरे यहां आती है तो खबरदार जो तूने उसे पनाह दी तो। तेरे लिए भी इस घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो जाएगे।’

मैं अजीब सी दुविधा में फँस चुकी थी। भैया को निक्की के मेरे यहां आने की भनक भी लगी तो रिश्तों में बेवजह दरारें पैदा हो जाएगी। मैं कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रही थी और निक्की मुझसे लिपटकर दरवाज़े पर खड़ी सुबक रही थी। इस वक्त मुझसे उसकी हालत देखी नहीं गई और मैं उसे अन्दर ले आई। काफी देर तक वह मेरी गोद में सिर रखकर रोती रही। फिर चुप हुई तो बोली – ‘दीदी, मैं बर्बाद हो गई। वो पांच थे। मेरे संग ....’

निक्की की अधूरी छोड़ी बात का मर्म मैं समझ गई और बुरी तरह से घबरा गई।


‘चला गया न तुझे बीच मंझधार में छोड़कर। तेरी इस हरकत से वहां घर पर मम्मी पापा और भैया भाभी की क्या हालत हो रही है इसका रत्ती भर भी अंदाजा है तुझे ? जिन्दा लाश बन गए है वे।’ इस वक्त मुझे यह सब न बोलना था पर मैं अपने आपको न रोक सकी। वह फिर से सुबकने लगी। मैंने उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा –‘अरे पगली। अब जो कर बैठी है उस पर रोते रहने से क्या होगा ? चल उठ नहा धोकर कुछ खा ले। अब आगे का कोई न कोई रास्ता ज़रुर मिल जाएगा।’

मैंने जबरदस्ती उसे बाथरूम में धकेला। नहाकर जब वह बाहर निकली तो उसकी छटा देखकर एक पल को मैं भी ठगी सी खड़ी रह गई। यौवन पूरे बहार के संग खिला था उसमें। जो कुछ उसके संग हुआ उसमें उससे ज्यादा दोष शायद उसकी देह का था।

थोड़ा बहुत खिलाकर मैंने उसे सोने को भेज दिया और मैं बाहर के कमरे में आकर सिर पकड़कर बैठ गई। तभी मेरे मोबाइल की रिंग बज उठी। स्क्रीन पर भैया का नाम आ रहा था। कांपते हाथों से मैंने कॉल जोड़ी।


‘तू अच्छे से पहुंच तो गई न सुनीता ? कम से कम एक फोन तो कर देना था।’

‘जी भैया।’ मैं जवाब में कुछ ज्यादा न बोल पाई।

‘तेरी आवाज़ क्यों कांप रही है ? क्या हुआ ?’ भैया ने मेरी घबराहट महसूस करते हुए पूछा।

‘भैया, वो निक्की ... यहां... ।’ मैंने इस वक्त उनसे कुछ भी छिपाना ठीक न समझा। आगे न पीछे उन्हें यह बात पता तो चलनी ही थी।

‘वो तेरे यहां आई है ? उसे इसी वक्त घर से धक्के देकर बाहर निकाल दे।’ भैया का स्वर गुस्से से तेज हो गया था।

‘भैया, उसकी हालत ठीक नहीं है। उसे इस वक्त भावनात्मक सहारे की जरूरत है। मन और शरीर दोनों से टूट चुकी है वह।’ मैंने भैया की बात का विरोध किया।

‘अपना किया हुआ भी भुगत रही है। बहुत शौक था न प्यार करने का उसे, अब भुगतने दे। वह हमारे लिए मर चुकी है और अगर तूने उसका साथ दिया तो तुझें भी मरा हुआ मान लेंगे।’ कहकर भैया ने मुझे आगे कुछ कहने का मौक़ा दिए बिना ही फोन कट कर दिया।

तभी दरवाज़े पर कुछ आहट हुई। पीछे मुड़कर देखा तो निक्की मेरे पीछे खड़ी थी। वह शायद मेरी सारी बात सुन चुकी थी। उसने कातर नज़रों से मुझे देखा। मैंने उसके सिर पर हाथ फेर कर सांत्वना दी। 


कुछ ही देर में अनुज भी आ गए। निक्की को आया देख पहले तो अनुज भी उस पर गुस्सा हुए फिर उसे एक बड़े भाई की तरह समझाकर हिम्मत दी। रात को हम सबने साथ ही खाना खाया। सारी रात मेरी आँखों में नींद न थी। मैं यह सोचकर परेशान थी कि अब आगे क्या होगा ? फिर निक्की भी अपने किए पर पश्चाताप कर काफी देर तक सुबकती रही। 

‘तेरी मुट्ठी में आने वाली ख़ुशियाँ बंद थी, चाँद को पकड़ने की चाहत में तूने तेरी बंद मुट्ठी क्यों खोल ली ? क्यों भूल गई कि स्त्री देह के उतार चढ़ावों की तरह ही उसकी जिन्दगी भी सीधी सपाट नहीं होती। जिसने गुनाह किया उसके शरीर और मन को तो कोई चोट ही नहीं पहुंची अब तेरी एक भूल की सजा सारी जिन्दगी तुझे भुगतनी पड़ेगी।’ मैं उसके पास लेटी उसके आने वाले कल की चिन्ता कर बड़बड़ाती जा रही थी।  

काफी देर तक करवटें बदलते रहने के बाद फिर जाने कब नींद लग गई ।


सुबह दरवाज़े पर दस्तक होने की आवाज़ सुनकर उठी। छह बज रहे थे। यह दूधवाले के आने का समय था। उठकर अपनी बगल में नजर डाली तो पाया कि निक्की कमरे में न थी। शौच करने गई होगी यही सोचकर मैं दूध लेने के लिए तपेली लेने रसोई की तरफ गई। तपेली लेकर जैसे ही बाहर का दरवाज़ा खोला मेरे हाथ से तपेली छूटकर दूर जा गिरी मेरे सामने अनिल खड़ा था। निक्की के संग इतना सब करने के बाद वह बेशर्म मेरे घर की दहलीज पर खड़ा था। गुस्से से तिलमिलाते हुए मैंने उसके गाल पर ज़ोर से दो तमाचे जड़ दिए। शोर सुनकर अनुज आँखें मसलते हुए बाहर आ ग । मैं कुछ बोलने जा रही थी कि पीछे से आकर निक्की ने मुझे धक्का दिया और अनिल से जाकर लिपट गई । निक्की की इस अप्रत्याशित हरकत पर मैं और अनुज दोनों हैरान से खड़े एक दूसरे का मुंह तांक रहे थ।

‘तुझे लाज शर्म है या नहीं ? जिसने अपने दोस्तों के संग मिलकर तुझे बर्बाद कर दिया तू वापस उसकी ही पनाह में जा रही है ?’ मैंने निक्की का हाथ खींचकर उसे अनिल से दूर करते हुए उसे घूरा।

‘मैं निक्की से शादी करना चाहता हूं।’ निक्की के कुछ कहने से पहले ही अनिल बोला।

‘शादी का मतलब भी जानते हो ? शादी से पहले ही अपनी गन्दी वासना से उसे बर्बाद कर चुके हो। अब शादी का झांसा देकर उसे बेचने का इरादा है क्या ?’ मैं गुस्से से कांप रही थी।


‘दीदी, अनिल और मेरा प्यार पवित्र है। उसने मेरे संग कुछ गलत नहीं किया।’ निक्की की बात सुनकर मैंने अपना सिर पकड़ लिया।

‘घर से भागकर हम दोनों भरूच गए और वहां मुम्बई जाने के लिए हाइवे पर खड़े थे। शाम गहरा चुकी थी और अंधेरा होने था तभी एक ट्रक हमारे पास आकर रुकी। ट्रक ड्राईवर हमें मुम्बई तक छोड़ने को तैयार हो गया और हम ट्रक के पीछे वाले भाग में चढ़ गए। वहां पहले से तीन लड़के मौजूद थे। कुछ दूरी के बाद सुनसान रास्ता आने पर उन्होंने पकड़ कर मुझे रस्सी से बांध दिया और फिर बारी बारी से निक्की के संग .....’ कहकर अनिल ने अपना सिर झुका लिया।

उसकी बात सुनकर मेरा सारा आक्रोश पानी पानी हो गया।

‘सबकुछ होने के बाद उन्होंने निक्की को ट्रक से बीच रास्ते में उतार दिया और मुझे लेकर आगे चले गए। उसने हाथापाई कर जैसे तैसे अपने को बचाकर यही सोचकर यहां आया था कि निक्की ज़रुर आपके यहां आई होगी। आप बस हम दोनों का थोड़ा सा साथ दे दे। मैं निक्की से सही में प्यार करता हूं और अब भी उससे शादी करने को तैयार हूं।’ कहते हुए अनिल की आँखों से आँसू बहने लगे।


मैंने उसे अन्दर कर दरवाज़ा बंद कर दिया।

‘आवेश में आकर कोई भी कदम उठाने से पहले परिवार वालों को अपने विश्वास में लिया होता तो आज जो चोट तुम दोनों को पहुंची है उसकी नौबत ही नहीं आती। तुम दोनों की नादान भरी एक भूल की सजा मन पर लगे घावों को कभी नहीं भर पाएगी। मैं तुम दोनों के संग हूं। देर सबेर मम्मी पापा और भैया भी मान ही जाएंगे।’ कहते हुए मैंने अनुज को देखा। उसने सहमति से मेरा हाथ दबा दिया।  

   



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