Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

दोस्ती

दोस्ती

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"मीनाक्षी, जरा यह गुलाबी वाली कोटा डोरिया की साड़ी पहनना। "

"अरे वाह यह देखिये कितनी सुन्दर लग रही है। "

"मीनाक्षी ,यह हरी जामदानी तो पहनकर दिखाओ। "

"सभी साड़ियां अच्छी लग रही हैं। आप सभी ले लीजिये। "

इस बातचीत से आप यह मत समझना कि मीनाक्षी के लिए साड़ियां खरीदी जा रही हैं। मैं मीनाक्षी, साड़ी खरीदने नहीं आयी हूँ। बल्कि मेरा काम तो साड़ियां बेचना है। अरे मेरा कोई बुटीक नहीं है, बल्कि मैं तो एक मामूली सी सेल्स गर्ल हूँ, जो साड़ियों की दुकान पर काम करती है। मैं एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली साधारण सी लड़की हूँ। मेरे पापा एक फर्म में मुनीम हैं , मम्मी एक फैक्ट्री में काम करती है और छोटा भाई अभी स्कूल जाता है। 


सामान्यता तो जो महिलाएं साड़ी खरीदने आती हैं, उन्हें हम साड़ी पहनाते हैं ताकि वह बिना किसी संशय के साड़ी खरीद सकें। लेकिन कई बार पुरुष अपनी महिला रिश्तेदार या मित्र को तोहफे के रूप में साड़ी देना चाहते हैं। तब उनकी सहूलियत के लिए, हमारे बॉस के कहने पर मैं खुद साड़ियां पहनकर दिखाती हूँ। आज भी एक महाशय अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने आये हैं। उन्हीं को जमकर चूना लगाने के लिए, यह सारी कवायद हो रही थी। 

हमारी कवायद सफल भी रही, क्यूंकि वह महाशय एक नहीं पूरी चार साड़ियां खरीदकर ले गए। वह भी सब महँगी -महँगी। 


मुझे साड़ी की इस दुकान पर काम करते हुए लगभग 2 साल होने को आये हैं। यहाँ पर बिकने वाली साड़ियां सिर्फ साड़ी मात्र नहीं हैं। बल्कि कहानियाँ हैं भारत की संस्कृति की, कला के पारखी लोगों की, विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी कला और हुनर को ज़िंदा रखने वाले लोगों की। मैं मीनाक्षी, इन सभी साड़ियों से एक लगाव सा महसूस करती हूँ। कभी -कभी मेरा बहुत मन होता है कि मैं इनमें से कोई साड़ी खरीद लूँ , लेकिन इनकी कीमत देखकर मन मसोस कर रह जाती हूँ। 

जब मैं मैसूर सिल्क की साड़ी पर हाथ फेरती हूँ तो ऐसा लगता है मानो चन्दन की खुशबू से मेरा तन और मन दोनों सरोबार हो गए हैं। मन करता है कि यह साड़ी नागिन सी मुझ से लिपट जाए और फिर कभी मुझसे अलग न हो। 


 बालचुरी साड़ी के आँचल को जब मैं अपने कंधे पर डालती हूँ तो ऐसे लगता है मानो रामायण और महाभारत के पात्रों वैदेही और पांचाली से साक्षात बात कर रही हूँ। पैठनी साड़ी को तो देखते ही मेरा मन मयूर नाच उठता है ;मानो साड़ी पर कढ़े हुए अन्य मयूरों को अपने पास बुला रहा हो। 

इतने दिनों से यहाँ पर काम करते हुए ,मैंने अपने मन को कैसे नियंत्रित कर रखा है ;यह मैं ही जानती हूँ। एक दिन पहले आयी प्याज़ी रंग की गारा साड़ी ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। मैं यह साड़ी खरीदना चाहती थी। आज जब बॉस का मूड इतना अच्छा था तो मैंने सोचा कि बॉस से इस साड़ी पर कुछ डिस्काउंट ही मांग लिया जाए। 


मैंने बॉस को कहा ," सर ,यह प्याजी कलर की गारा साड़ी मैं खरीदना चाहती हूँ। ६ महीनों में पैसे इकट्ठे करके आपको दे दूँगी। हो सके तो इस पर डिस्काउंट भी दे दीजिये। "

बॉस ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर कहा ," डिस्काउंट तो नहीं मिलेगा। लेकिन 6 महीने तक यह साड़ी किसी और ग्राहक को नहीं बेचूँगा।"

"ठीक है, आप मेरे वेतन से हर माह कुछ पैसे काट लेना और बाकी पैसे मैं 6 माह बाद दे दूँगी।" मैं अपनी बात ख़त्म कर दूसरे ग्राहक को साड़ियां दिखाने चली गयी थी। 

मैंने सोच लिया था कि इस बार दीवाली पर लक्ष्मी पूजा तो यही गारा साड़ी पहनकर करूंगी। पहली बार मैंने अपने लिए कोई अपनी औकात से बढ़कर चीज़ पाने का सपना देखा था। 

अपने सपने को पूरा करने की शुरुआत मैंने आज से ही कर दी थी। दुकान से घर तक मैं ऑटो में न जाकर पैदल ही गयी ताकि कुछ पैसे बचा सकूं। प्रतिदिन की तरह आज रात भी रात का खाना खाकर मैं छत पर घूमने चली गयी थी। पड़ोस की छत पर निम्मी पहले से ही आयी हुई थी। 


अरे, मैं तो अपनी कहानी सुनाते -सुनाते आपको निम्मी के बारे में बताना ही भूल गयी। निम्मी और मैं बचपन की सहेलियां हैं। हम दोनों एक दूसरे के हमराज़ हैं। जब तक दिन भर की सारी बातें एक -दूसरे को न बता दें ,तब तक हमें चैन नहीं मिलता। अब मैं अपनी गारा साड़ी की ख़्वाहिश भला निम्मी को क्यों नहीं बताती। निम्मी बस्ती के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। उसके घर की हालात भी मेरे जैसे ही थी। उसने कहा ," तुझे कुछ ट्यूशन दिलवा दूँगी तो तू जल्द ही पैसे इकट्ठे कर लेगी। मेरी सहेली का सपना जरूर पूरा होगा। लेकिन तू इतने घंटे काम कर पाएगी। "

"बिल्कुल करूंगी ,करना ही पड़ेगा। सपने को पूरा करने के लिए दिन -रात तो एक करने पड़ेंगे। पहली बार अपने लिए कोई सपना देखा है ,ख़्वाहिश की है। ",मैंने कहा। 


अपने सपने को पूरा करने के लिए मैंने दिन-रात एक कर दिए थे। गारा साड़ी खरीदने के लिए मैंने जहाँ पर भी पैसे बचा सकती थी, पैसे बचाये। दुकान जाने से पहले और आने के बाद मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। घर आते -आते मेरे शरीर का पोर -पोर दुखता था , लेकिन गारा साड़ी की याद आते ही मैं, मेरा सारा दर्द भूल जाती थी। अब मुझे समझ आ रहा था कि अगर हम किसी को शिद्दत से चाहे तो पूरी कायनात उसे कैसे दिलाने लग जाती है। कायनात आपसे उतनी मेहनत करवाती है, आपसे वैसे काम करवाती है , जो आपको असंभव लगते हैं। 

शायद भगवान भी मेरे साथ था, दीवाली से कुछ दिन पहले ही मैंने साड़ी खरीदने लायक पैसे एकत्रित कर लिए थे। दुकान पर भी अच्छे पैसे जमा हो गए थे। 

आज छत पर निम्मी ने मुझे देखते ही कहा ," लगता है साड़ी खरीदने लायक पैसे जमा कर लिए है तूने । "

"हाँ, कल साड़ी खरीद कर ले आऊँगी। दीवाली पर पहनने के लिए साड़ी के साथ का ब्लाउज, पेटीकोट, मैचिंग ज्वेलरी आदि भी तो लेने होंगे। "मैं अपनी रौ में बोलती जा रही थी। 


तब ही मैंने अचानक से पूछा ," लेकिन तुझे कैसे पता चला। "

"तेरी दोस्त तेरी दोस्त ऐसे ही थोड़े न हूँ। । इतने दिनों बाद तेरे चेहरे की रौनक देखते ही बन रही है। तेरे चेहरे की चमक के आगे यह पूनम का चाँद भी फीका लग रहा है। "निम्मी ने कहा। 

"तेरी वजह से ही तो आज मेरे और मेरे सपने के बीच में बस एक रात की दूरी रह गयी है।" मैंने निम्मी के गले लगते हुए कहा। 

"चल हट, तूने दिन -रात मेहनत की थी। मैंने क्या किया ?"निम्मी ने अपनी गर्दन झटकते हुए कहा। 

"कल तू भी शाम को दुकान पर आ जाना, दोनों साथ में साड़ी लेकर लौटेंगे।" ऐसा कहकर मैं और निम्मी कल मिलने के वादे के साथ लौट गए। 


रोज़ रात तो बिस्तर पर पड़ते ही मुझे नींद आ जाती थी। लेकिन आज जैसे नींद मुझसे रूठ गयी थी। कल मेरा ख़्वाब पूरा हो जाएगा, कल मेरी गारा साड़ी मेरे हाथ में होगी। मुझे लग रहा था कि आज रात कुछ लम्बी हो गयी है। 

मैं प्याजी कलर की साड़ी पहनकर तैयार हो गयी थी। माँ ने मुझे नज़र का टीका लगाया। मैं फटाफट निम्मी के घर गयी ताकि उससे पूछ सकूं मैं कैसी लग रही हूँ। अभी निम्मी के घर के गेट पर ही थी कि माँ ने मुझे आवाज़ लगा दी ," मीनाक्षी, मीनाक्षी "

माँ की आवाज़ से, मैं जाग गयी थी। " ओह्ह तो मैं सपना देख रही थी। "मैं मन ही मन बुदबुदाई। 


मैं फटाफट उठकर बैठ गयी। अपने रोज़मर्रा के काम तेज़ी से निपटाने लगी। मेरे पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, मैं अपने सपने अपनी गारा साड़ी से कुछ ही दूर थी। मैं दुकान जाने की तैयारी ही कर रही थी कि निम्मी की मम्मी भागते -भागते आयी। वह रो रही थी और उन्होंने बताया कि ,"निम्मी घर से बाहर ट्यूशन पढ़ाने के लिए निकल ही रही थी कि न जाने कहाँ से एक जलता हुआ राकेट उसके कपड़ों में आकर लगा। अभी -अभी उसके भैया उसे हॉस्पिटल लेकर गए हैं और मैं भी वही जा रही हूँ। "

"मैं भी आपके साथ चलती हूँ।" मैं अपनी बचत लेकर आंटी के साथ हॉस्पिटल चली गयी। हॉस्पिटल के खर्चे निम्मी और उसके घरवालों की बचत से पूरे नहीं हो पा रहे थे।

उन्हें कहीं से मदद नहीं मिल रही थी, वह निम्मी को किसी और सस्ते हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का प्लान करने लगे। मुझे निम्मी और गारा साड़ी में से किसी एक को चुनना था। मेरे लिए यह चुनाव मुश्किल नहीं था। मैंने अपने सपने को भूलकर, साड़ी के लिए इकट्ठे किये गए पैसे भी दुकान से हॉस्पिटल में लाकर जमा करा दिए। 


प्रतिदिन नियम से दुकान से आने के बाद मैं निम्मी से मिलने हॉस्पिटल जाती। कई बार रात को वहीं रुक जाती। निम्मी ने एक -दो बार गारा साड़ी के लिए पूछा, लेकिन मैं टाल गयी। तब निम्मी ने कहा भी कि ,"मैडम, दीवाली के दिन ही पहनकर आएगी। तब तो देख ही लूंगी। "

दीवाली की शाम मैं निम्मी के पास पहुंची ,निम्मी ने मुझे देखते ही पूछा ,"तेरी गारा साड़ी कहाँ है ?"

"नहीं खरीदी यार " मैंने जवाब दिया।

"पर क्यों ?"निम्मी ने अपनी आँखें फैलाते हुए कहा।

"यार, अपनी बस्ती में कोई उस साड़ी की कीमत कहाँ समझता? जो लोग वैसी साड़ियां पहनते हैं ,उनके बीच हमारा आना -जाना कहाँ होता है। ज़िन्दगी मैं आगे बढ़ने के सपने देखना अच्छा है ,लेकिन अपनी औकात से बढ़कर चीज़ों के सपने देखने का क्या फायदा। सोच रही हूँ ,उस पैसे से कोई अच्छा सा कोर्स कर लूँ। तू जल्दी से ठीक हो जा ,फिर दोनों सहेलियां मिलकर करेंगी। "मैंने कहा।


"तू और तेरी बातें, कुछ समझ नहीं आती। पागल लड़की ने उस साड़ी के लिए न दिन देखा और न रात और जब पैसे जमा हुए तो साड़ी खरीदी भी नहीं। " निम्मी ने अपना सर पकड़ते हुए कहा।

"मैं तो ऐसी ही हूँ। "ऐसा कहते हुए मैंने मिठाई का टुकड़ा निम्मी के मुंह में डाल दिया।

मैंने सोचा था कि निम्मी मेरी बात पर विश्वास कर लेगी । लेकिन निम्मी ने मेरी बात पर ज़रा भी यक़ीन नहीं किया था, इसका पता मुझे २ महीने बाद आये मेरे जन्मदिन पर चल गया था । 

निम्मी ने अपने पिता द्वारा तोहफे में दिये एक लॉकेट को बेचकर मुझे मेरा सपना गारा साड़ी ख़रीदकर जन्मदिन के उपहार के रूप में लाकर दी । यह लॉकेट निम्मी के पास उसके पापा की आखिरी निशानी थी, फिर भी उसने मेरे लिए बेच दिया। निम्मी ने मुझे यह सब नहीं बताया था, लेकिन उसके गले में वह लॉकेट न देखकर मैं अपने आप ही समझ गयी थी ।


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