दोषी कौन
दोषी कौन
आज फिर से नींद नहीं आ रही, माँ का फोन जो आया था घर से। ये मम्मी भी न फिजूल की बातों को लेकर खुद भी परेशान होती हैं और दूसरों को भी परेशान करती हैं ..(रोशनी मन ही मन बड़बड़ाए जा रही थी)। माँ की बात मस्तिष्क से निकल ही नहीं रही थी। रोशनी दुखी भी थी और चिन्तित भी, कितनी बार माँ को समझा चुकी थी कि बुढापा है थोड़ा संयम से काम लो, कुछ तो स्वयं को बदलो पर माँ थी कि पलट कर कह देतीं, "अब तू भी भाई का पक्ष ले रही है, मेरा तो ना कोई बेटा है और ना ही कोई बेटी"| ये शब्द रोशनी को भीतर तक चीर कर रख देते थे।
किन्तु वह बुरा नहीं मानती थी क्योंकि वह समझती थी कि माँ ने पीड़ा व आक्रोश के वेग में यह सब कहा है।
रोशनी की माँ वैसे तो स्वभाव से नेक, रहमदिल और धार्मिक महिला हैं परंतु अपने स्पष्टवादी विचारों, सख्त लहजे में बात करने के कारण सभी की उपेक्षा का पात्र बन जाती हैं। मौके की नजाकत को समझ कर घुमाफिरा कर बात को बदलना उनके व्यक्तित्व में शामिल ही नहीं है| एक बार किसी के प्रति जो राय बन गई वो तो मानो पत्थर की लकीर ही हो गई।
कौन सही है और कौन गलत ? रोशनी करवट बदलते हुए सोचने लगी... भाई चाहता है कि मम्मी उसके साथ आकर रहें , अलग से किराए के मकान में रह रही हैं.....
सब ओर जग हँसाई हो रही है कि एक ही बेटा है और वो भी माँ का ख़्याल नहीं रखता। मम्मी का कहना ये है कि जब भी भाई के पास रहने को जाती हैं तभी किसी न किसी बात को लेकर लड़ाई हो जाती है, अब तू ही बता उसके साथ मेरा गुजारा कैसे होगा। पोते -पोती किसे अच्छे नहीं लगते ! रहना तो मैं भी चाहती हूँ , पर इस उम्र में झगड़ा मुझसे सहन नहीं होता। इससे तो मेरा अलग रहना ही सही है। (अब रोशनी करे भी तो क्या करे, न तो भाई ही समझने को राजी है और न ही माँ )। रह-रह कर माँ के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। " मुझे तो मौत भी नहीं आती, एक बार स्कूटर से टकराई तो बच गई, दूसरी बार बस खाई में गिर गई तो भी मुझे कुछ नहीं हुआ और अबकी बार ये मुआ कैन्सर भी मुझे अपने साथ नहीं ले गया। बहू तो यहाँ तक कहती है, ये तो सबको मार कर ही मरेगी। अब मैं आत्महत्या तो कर नहीं सकती, अपनी आई पर ही जाऊँगी... भले ही कोई मेरा गला घोंट कर मार दे.... बेटे के हाथों ही मर जाऊँ तो भी ठीक "
पता नहीं ये मसला कभी सुलझ भी पाएगा या नहीं , रोशनी की समझ से परे होता जा रहा था .... अगर देखा जाए तो इसमें गलती किसी की भी नहीं है, अगर कुछ गलत है तो दूसरों के प्रति व्यवहार और आपसी समझ।
कई बार परिस्थिति वश या फिर समयाभाव के कारण हम अपने प्रियजनों को वक्त नहीं दे पाते, वक्त के चलते यही मनमुटाव का कारण बन जाता है। यदि वक्त रहते इस पर ध्यान न दिया जाए तो यही एक बड़ा अपराध बनकर सामने आता है।
