दोहरी मार
दोहरी मार


"शर्मा जी। क्या बताऊँ साहब, कल आटा 320 था आज 340 हो गया । सब्जियों के दाम आसमान छू रहें हैं । हर चीज़ की कीमत बढ़ गयी है। उनको लग रहा है आज ही कमालों, दूसरों को लूटों और अपना घर भरों,लाचारी का फायदा उठा रहें हैं सब, साहब हम तो दोनों ही तरफ़ से पिट रहे हैं।
काम -धंधे वैसे ही बंद हो गए, और ऊपर से यह महंगाई । खाये बगैर भी नहीं रह सकते, पेट तो माँगेगा ही ना । समझ नहीं आता क्या करें और क्या न करें ?एक तो कोरोना का डर, दूसरा काम -धंधे का डर, तीसरा महंगाई ने कमर तोड़ दी है । पता नहीं यह और कितने दिन चलेगा । सबकी अखबार में कीमत बहुत कम है । पर ये तो आपे के तापे माँग रहे हैं । हमें भी लगता है की ज़्यादा कीमत देकर ही ख़रीद लें, मानवता नाम की चीज़ ही कहीं खो गयी है । ऐसे समय में भी इनका दीन - ईमान नहीं जाग रहा है, इंसान मरने की कग़ार पर खड़ा है, न जाने कब क्या होगा यह भी नहीं पता है, फ़िर भी चालबाज़ियों से बाज़ नहीं आ रहा है ।भगवान् ही जाने इस दुनिया का क्या होगा ।"