दोहरी मानसिकता
दोहरी मानसिकता
घर में मातम मचा था। शिवचरणजी के छोटे बेटे का ऐक्सिडेंट में देहांत हो गया था । परिचित अपरिचित सब उसकी आकस्मिक मौत से दुखी थे ।आसपड़ोस की औरतें व रिश्तेदार संजय की मां व पत्नी सुधा को ढांढस बंधा रहे थे। संजय का बड़ा भाई पिता को संभालने का प्रयत्न कर रहा था ।जवान बेटे की मौत ने तो जैसे उनका एक कंधा ही तोड़ दिया था ।
आज तेहरवीं का दिन था। हवन व पूजा के बाद दोपहर तक ज्यादातर रिश्तेदार, पड़ोसी चले गए थे ।घर में सुधा के माता पिता , सास ससुर व कुछ पड़ोसी बचे थे ।
तभी एक पड़ोसन सुधा की ओर इशारा करते हुए बोली "बेचारी बहू का भगवान ने सब कुछ छीन लिया ।अरे शादी को अभी हुए ही कितने साल थे ।" दूसरी पड़ोसन ने भी हां मै हां मिलाई ओर बोली " सही कह रही हो बहन ३०-३२ भी कोई उम्र है । शहरों में तो इस उम्र में लड़कियां शादी करे हैं । इतनी लंबी जिन्दगी अब किसके सहारे कटेगी ।" ये सब सुन सुधा की रुलाई छूट गई । पास बैठी उसकी मां उसे तसल्ली देने लगी । सुधा की सास जो इतनी देर से ये सब सुन रही थी, एकदम से चिल्लाकर बोली " चुप करो तुम सब इतनी देर से के बकवास लगा रखी है । कोई बच्ची नहीं है ये । एक बच्चे कि मां है ।१०-१२ साल में लड़का जवान हो जाएगा और कमाने लगेगा । मेरा बेटा भी कोई कमी छोड़ के नहीं गया ।पैसे की कमी नहीं है । और सब कुछ साज सिंगार ही नहीं होता।,समझी तुम सब"। उनकी बातें सुन सभी औरतें कानाफूसी करते हुए वहां से निकल गई । सुधा के मां बाप ने भी तस्सल्ली की सांस ली की चलो दामाद का दुख तो रहेगा पर बेटी को ससुराल में सिर छुपाने की छत मिल गई ,ये भी बहुत बड़ी बात है । बेटी को दिलासा दे व सास ससुर के लिए आंखों में कृतार्थ भाव ले उन्होंने विदा ली।
सुधा इस सब को अपनी नियति समझ ,फिर से गृहस्ती के कामों में जुट गई । वो सास ससुर की अब पहले से ज्यादा सेवा करती । उनकी हर जरूरत का पूरा ध्यान रखती ।जिससे कि उन्हें अपने बेटे की कमी महसूस ना हो । लेकिन उसकी सास तो अपने बेटे की मौत का कसूरवार उसे ही मान कर उठते बैठते उसे ताने मारने में कोई कसर ना छोड़ती ।अब तो वो सुधा पर पूरी निगरानी भी रखने लगी थी ।अगर वो किसी से हंस कर बात करे या थोड़े भी अच्छे कपड़े पहने तो उसके चरित्र पर लांछन लगाने से ना चूकती ।सुधा के ससुर ने कई बार सास को समझने की कोशिश की पर सास पर उनका कोई असर न होता । पड़ोसियों से तो वो हमेशा लड़ने को तैयार रहती थी । इसलिए सब ने अब इन बातों पर चुप्पी साध ली थी।
एक दिन पड़ोस में रहने वाले रामलाल की पत्नी गुजर गई । मातमपुर्सी के लिए सुधा की सास उसे भी साथ लेकर गई । रामलाल को देखते ही वह बोली " हाय रामलाल ये कैसी विपदा आ गई भाई ! वो तो तुझे बीच में ही छोड़ गई ।अब सारी जिंदगी कैसे कटेगा ।" रामलाल उनकी बात सुन बोला " हां चाची, उसकी कमी तो अब कोई पूरी नहीं कर सकता । सुख दुख की साथी थी वो मेरी ।पर होनी पर किसका जोर चला है। मैने तो अपनी जिंदगी जी ली ।बेटे जवान हो गए हैं । अब इनकी शादी कर दूंगा ।बाकी जिंदगी पोते पोतियों को खिलाने में कट जाएगी ।" उसकी बाते सुन सुधा की सास आंखे फैला कर बोली " के कह रहा है रामलाल ! बेटे शादी होते तुझे ना पूछने वाले ।सब अपने परिवार मै रम जाएंगे । बुढ़ापे में कोई रोटी देने वाली भी तो चाहिए ।पचास की उम्र कोई जायदा ना होवे ।पहले अपने बारे में सोच बेटे के बारे में बाद में सोचियो ।"
उसकी ऐसी बाते सुन रामलाल तो उठ कर चला गया । सब पड़ोसी और रिश्तेदारों को अपनी ओर घूरते देख वह ढिठाई से बोली " ऐसे क्यों देख रही हो ? मैने के गलत कह दिया ।" ये सुन एक पड़ोसन गुस्से से बोली " हम कब कह रहे है कि अपने गलत कह दिया । गलत तो हमने भी उस समय तुम्हारी बहू के लिए कुछ ना बोला था ।तो उस समय आप इतना क्यों भड़की ? ये दोहरी मानसिकता क्यों चाची ? रामलाल चाचा को तो आप इस उम्र में दूसरी शादी की सलाह दे रही हो । और अपनी जवान बहू को तो आप पहनने - ओढ़ने, हसने - बोलने तक पर पाबंदी लगा रही हो । कुछ तो न्याय करो चाची । ये आदमी औरत में कब तक भेद करते रहोगे ।औरतों का भी मन होता है! क्यों पति के मरने के बाद उससे सारी खुशियों के अधिकार छीन लेता है समाज ! क्या दोष है उनका? शुरुआत अपने घर से करो चाची ।"
सुधा के ससुर जो इतनी देर से ये सब सुन रहे थे बोले "तुम्हारी बातें बिल्कुल सही है। तुम ने आज हमारी आंखे खोल दी बेटी । आज से सुधा हमारी बहू नहीं बेटी है । और उसे अपना जीवन अपनी तरह से जीने का पूरा हक है । मै आप लोगो से वादा करता हूं कि अब मेरी बेटी को कोई दुख नहीं होगा । और उन्होंने सुधा के सिर पर पिता रूपी हाथ रख दिया ।" सुधा की आंखो से खुशियों के आंसू निकल गए ,सास ने भी आगे बढ़ अपनी गलती की माफी मांग, सुधा को गले से लगा लिया ।