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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

4  

Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

दिव्य शक्ति (4) ..

दिव्य शक्ति (4) ..

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आगमन पश्चात, आंटी एवं डॉ देसाई, मेरे मम्मी-पापा के साथ तथा अनन्या एवं उसका छोटा भाई, मेरी बहन के साथ का आनंद लेते रहे थे। मेरी बहन आयुषी एवं अनन्या दोनों की उम्र समान होने से उस दिन उनमें, अच्छी मित्रता हो गई थी। 

इस बीच, आयुषी ने मेरे पास आकर, अनन्या के साथ अपनी, फोटो क्लिक करने कहा था। मैंने, अपने मोबाइल से, विभिन्न कोणों से उनके 4 फोटो क्लिक कर दिए थे। फिर अनन्या के कहने पर उन्हें, आंटी को व्हाट्सएप कर दिए थे। डॉ देसाई सपरिवार, लगभग एक घंटे हमारे अतिथि रहे थे। फिर वे चले गए थे। दो दिन बाद दीपावली के अवकाश खत्म होने पर, मैं, वापिस हॉस्टल आ गया था। 

दीपावली के बाद से यहाँ, पढ़ाई के साथ ही मैं, गोपनीय रूप से डिटेक्टिव के काम करने लगा था। मेरे क्लाइंट कोई नहीं होते हुए भी यहाँ मैं, जिन भी लड़की-लड़कों में अतिरिक्त मेलजोल देखता उन्हें इन्वेस्टीगेट करने लगता था।मेरे इन्वेस्टीगेशन का विषय यहाँ यही होता कि प्रेमी जोड़ों में, बढ़ती प्यार की पींगों के बीच, प्यार को लेकर लड़के के मनसूबे, मात्र फ्लिर्टिंग के तो नहीं?मेरा संदेह लड़के पर ही होता था। मैं, जब भी प्रेमी जोड़े में लड़के को, प्रेम में गंभीर हुआ नहीं देखता तब मैं, किसी बहाने से लड़के से आँखे चार किया करता। और मैं, निरपवाद रूप से, अपनी आँखों से निकल कर लड़के की आँखों में जाती इंद्रधनुषी किरण देख प्रसन्न हुआ करता। 

फिर लड़के में मेरे द्वारा वाँछित परिवर्तन देखने मिलता अर्थात लड़के के आचरण, हमारी भव्य संस्कृति अनुकूल हो जाते थे। तब उनमें, डिटेक्टिव वाले मेरे काम का स्कोप खत्म हो जाता था।इंद्रधनुषी किरण का ऐसा अनुकूल प्रभाव देख मैं, अदृश्य दिव्य शक्ति का मन ही मन धन्यवाद करता था। 

यह क्रम अपने देखे सपने के बाद 8-9 महीने से बना हुआ था। अब मुझे विश्वास हो गया था कि यदि मैं, स्वयं अपना चरित्र आदर्श रख सकूँ तो यह दिव्य शक्ति मुझमें, आजीवन बनी रहने वाली है। 

मुझे ज्यादा अनुभव नहीं था। मुझे एक भ्रम सा था कि अपवाद को छोड़ें तो चरित्र बिगाड़ का बुरा कार्य, पुरुष के द्वारा ही किया जाता है। वह (पुरुष) ही होता है जो किसी लड़की या महिला के चरित्र को अपनी वासना पूर्ति की पहल में, बिगाड़ने का निमित्त होता है। मगर आगे जो हुआ वह, मेरा ऐसा भ्रम दूर कर देने वाला था। हुआ यह कि एक प्रेमी जोड़े में, प्रेम की ज्यादा पींगे बढ़ते देखी तो मैंने, लड़के को पहचानते हुए, एक दिन मेस में भोजन के लिए लड़के की बाजू की सीट ग्रहण की। 

फिर भोजन करने के दौरान, चपाती की प्लेट उसे पास करने के बहाने उससे, आँखे मिलाई। यह देख मुझे, आश्चर्य हुआ कि मेरी आँखों से इस बार इंद्रधनुषी किरण नहीं निकली थी। मुझे संदेह हुआ कि उससे आंखे मिलाते हुए हममें, दूरी कुछ ज्यादा रह गई है। पुनः प्रयास में इस बार मैंने, अपना पहलू यूँ बदला कि मेरा हाथ उसके हाथ से टकरा गया। फलस्वरूप, उसके हाथ के कौर से दाल छलक कर, उसके कपड़े पर गिर गई। तब नाराजी से उसने मुझे, यूँ देखा जैसे कहना चाहता हो कि कैसे विचित्र प्राणी हो, तुम? 

मैंने उसे सॉरी तो कहा मगर इसे अवसर बना कर, बहुत करीब से उसकी आँखों में देखा। उसकी आँखे पूरी खुली हुई थीं। हम निकट भी थे, तब भी मेरी आँखों से फिर इंद्रधनुषी किरण नहीं निकली थी। इससे हुई मायूसी में मेरा मन भोजन ग्रहण करने से उचट गया। मैं विचार में पड़ गया कि क्या गलती मुझसे हुई, जिससे दिव्य शक्ति मुझसे रूठ गई है? मेरा दिव्य शक्ति के साथ को खो देना, मेरे समाज सुधार के कार्य को कमजोर कर देगा, इस विचार से मैं, दुखी और निराश हो गया। मैंने, अपने इन्वेस्टीगेशन बंद कर दिए। 

इसके 10-12 दिन उपरांत एक रविवार, उदास सा मैं, कैंपस पार्क में एक कोने की बेंच पर बैठा था। तब एक लड़की मेरे पास आई। यह वही सीनियर लड़की थी, जिसे मैं, मेस वाले लड़के के साथ प्रेम पींगों में लिप्त देखा करता था। उसने मेरा नाम पूछा था। मेरे बता दिए जाने पर उसने, अपना नाम एवं सेमेस्टर मुझे बताया था। फिर वह, मेरे साथ ही बेंच पर बैठ गई थी। वह मेरी, सीनियर होने से कुछ अधिक ही अधिकार बोध प्रदर्शित कर रही थी। इसके पूर्व मैं, एकांत में कभी किसी लड़की के इतने निकट नहीं बैठा था। मेरी पलकें स्वतः ही झुक गईं थीं। मेरे शर्मीले व्यवहार को भाँप लेने से, लड़की को बात कैसे शुरू करे सूझ गया वह, मुझसे बोली -

"वाह यार, है तो तू लड़का मगर, गाँव की लड़की की तरह, ये तेरा लजाना, और ये कटीली आँखों की झुकी घनी पलकें! आज तो मैं, मर मिटी तेरी कातिल अदा पर यार। तू ये तो बता कि तन्हाई में क्यों तू, इतना मायूस हुआ बैठा है। कोई लड़की, दिल तो नहीं तोड़ गई, तेरा?"

उसकी अति-स्वछंदता और पहली मुलाकात में ही ऐसी बातों ने, मुझे चकित किया। मैं दृष्टि उठा नहीं सका, मुहँ पर यूँ ही खोखली हँसी लाते हुए तथा सीनियर के प्रति आदर भाव सहित मैंने उत्तर दिया -" नहीं डॉ. , ऐसी कोई बात नहीं।"

तब लड़की ने कहा - "जॉनी, अगर ऐसी बात भी हो तो चिंता ना कर, हम डॉ. बनने जा रहे हैं। तेरे घायल दिल का इलाज भी कर देंगे। जोड़, दूँगी तेरा दिल। बता ऑपरेशन करवाना, यहीं पसंद करेगा या ले चलूँ तुझे लॉन्ग ड्राइव पर कार में? किसी सुरम्य, वीराने में घने झाड़ की छाया में, मुझे ऑपरेशन करते हुए ज्यादा मजा आएगा। "

लड़की के इस प्रस्ताव ने मुझे, उस रात के, मेरे सपने में लिया मेरा संकल्प शब्दशः स्मरण करा दिया कि - 

"जीवन में, मैं, कभी भी किसी नारी के साथ छल नहीं करूँगा। यह भी कि कभी कोई भटकी (जो मेरी पत्नी नहीं) नारी, मुझमें रूचि ले या किसी लाचारी में अपना सर्वस्व मुझे सौंपने को तैयार भी हो, तब भी मैं, उसकी देह को भोगने की जगह उसे, उसके शील बनाये रखने की प्रेरणा दूँगा। "                 

अब मेरी परीक्षा की घड़ी आई थी। मैंने कहा - "सॉरी डॉ. , मैं प्रेम-व्रेम में पड़ कर अपना ध्यान अपनी पढाई पर से हटाने का खतरा नहीं लेना चाहता।" 

लड़की ने कहा - "कैसी बात करता है, मैं कौनसा प्रेम करने कह रही हूँ। तू, डॉ बनने जा रहा है। अंतरंग संबंध नहीं करके देखेगा तो कैसे तुझे, उसके अनुभव होंगे? अपने मरीज की इसमें आने वाली समस्या के उपचार कैसे कर सकेगा, तू?"

फिर मैं, कुछ बोल पाता उसके पहले ही एकाएक वह मेरे पास आई और बोली - 

"करके देख तो, कि अनुभव क्या होता है? देख मैं, तुझसे यह अनुभव करके देखते हूँ कि बिलकुल कोरे लड़के को चूमने में कैसा सुख होता है? 

यह कहने के साथ उसने, मेरे सिर को, अपने हाथ में थामा फिर झटके से, मेरे चेहरे को, अपने होंठो के समीप खींच लिया था।" 

मैंने हड़बड़ा कर उसकी ओर देखा था। जिससे, उसकी और मेरी आँखे मिल गई थीं। और तुरंत ही इंद्रधनुषी किरण मुझे, अपनी आँखों से उत्सर्जित होकर, उसकी आँखों में प्रविष्ट होते दिखाई दी थी। ऐसा होते ही, उसने अपने हाथों से थाम रखे मेरे चेहरे को छोड़ दिया था। फिर कहा - "नहीं नहीं, मुझे, तुझ जैसे मासूम लड़के के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। यह कहते हुए वह चली गई थी।"

मेरा संकल्प, टूटने से बचा था। दिव्य शक्ति मेरे साथ अभी भी है मुझे, ज्ञात हुआ था। मेरी निराशा एवं उदासी मिट गई थी। इंद्रधनुषी किरण ने अपना काम कर दिया था। तथाकथित टूटे मेरे दिल के ऑपरेशन करने की इक्छुक, उस लड़की की आँखों का ऑपरेशन हो गया था। उसकी आँखों पर छाया अनैतिक वासना का जाला, साफ हो गया था। 

ऐसा होते ही उसकी आँखों ने कामवासना रहित दृष्टि से मुझे देखा था। मैं, उसको, मासूम एवं कदाचित उसके भाई जैसा दिखाई दिया था जिससे उसे ग्लानि हुई और वह मेरे सामने से चली गई थी। मुझे यह भी साफ़ हो गया था कि मेस वाले लड़के एवं इस लड़की में जो चलता मैंने देखा था। उसका सत्य यह था कि वह लड़का, इस लड़की से सच्चा प्यार करता था। जबकि यह लड़की, उससे अपनी वासना पूर्ति के लिए, संबंध रखे हुए थी। 

यह होने से मुझे यह समझ आ गया था कि मेस में उस दिन, लड़के एवं मेरी आँखें मिलने पर भी, इंद्रधनुषी किरण नहीं निकलने का कारण, उस लड़के की आँखों में अनैतिक प्रेम का जाला नहीं होना था। मुझे पुष्टि हो गई थी कि दिव्य शक्ति, इंद्रधनुषी किरण का उत्सर्जन तभी करती थी जब, सामने वाले की आँखों में मेरी दृष्टि के माध्यम से, कामुक वासना का अनैतिक जाला देखती थी। 

आगे यह अनुभव मेरे समाज सुधार के कार्य के लिए अत्यंत उपयोगी होने वाला था। मैं, एकांत कोने से चलकर अपने कमरे में आ गया था। इलेक्ट्रिक कैटल में, मैंने कॉफी बनाई थी। उसके सिप लेते हुए मैं, स्टडी टेबल पर पढ़ने बैठ गया था। 

फिर समय बीता था। एक दिन वही सीनियर लड़की मुझे, कॉलेज कैंटीन में अकेली कॉफी पीते दिख गई। इस बार मैं, उसके पास गया। वह विचारों में खोई हुई थी। मैंने उसकी तंद्रा भंग करते हुए कहा - "गुड आफ्टरनून, डॉ.। " 

लड़की ने चौंकते हुए उत्तर दिया - "वैरी गुड आफ्टरनून। "

और तब उसने, मुझे देखा, पहचानने पर मुझे बैठने कहा। फिर स्वयं ही, सर्विस काउंटर से मेरे लिए भी कॉफी ले आई। हम दोनों, साथ कॉफी पीने लगे। तब उसने स्वयं बताना आरंभ किया -"डॉ. (उस दिन के विपरीत आज उसने, मुझे शिष्टता से संबोधित किया) - मैं, स्वयं तुमसे मिलना चाहती थी। अच्छा हुआ तुम खुद ही आ गए। मैं, तुम्हें बताना चाहती हूँ कि अढ़ाई वर्ष पहले जब मैं, यहाँ पढ़ने आई थी तो मेरा भी उद्देश्य, तुम्हारे तरह ही पढ़ने का ही था। 

मगर यहाँ के ड्रग्स एवं पब जाने के चलन में मैं, तुम्हारी तरह अप्रभावित नहीं रह पाई थी। एक दिन, एक सीनियर लड़के ने मुझे, ड्रग्स का नशा कराकर, मेरे साथ वह कर लिया जो मेरे पारिवारिक संस्कार में मुझे, विवाह पूर्व वर्जित सिखाया गया था। 

शुरुआत में मुझे, उसकी ग्लानि हुई। मगर उस लड़के ने, बार बार मेरे साथ यह किया। फिर पता नहीं कब मुझे, ये (ड्रग्स एवं संबंध) अपनी जरूरत लगने लगे। उस दिन मैं, जब तुम्हारे पास आई मैं, ड्रग्स के प्रभाव में थी। फिर अचानक ना जाने, क्या हुआ, मेरी संबंध की इच्छा ना रही थी। उस दिन से लड़कों को मैं, पूर्व की भांति वासना रहित दृष्टि से देखने लगी हूँ। 

ऐसा भी नहीं है कि भविष्य में मैं, संबंध नहीं करूंगी। लेकिन अब यह पक्का है कि मेरे ऐसे संबंध, मेरे हस्बैंड से ही हुआ करेंगे। इसके लिए भी, मैंने एक फ्रेंड तय कर लिया है। मैं जानती हूँ कि वह, मुझसे सच्चा प्यार करता है। (फिर उसने दीर्घ श्वास भरते हुए कहा) डॉ., उस दिन के लिए मुझे क्षमा करना। मुझे, तुम्हारे साथ अपनी कुचेष्टा की ग्लानि है।"

लड़की के यह कहे जाने से, मुझे, मेस वाले लड़के का स्मरण आ गया था। जिसकी आँखों में वासना का जाला नहीं था। जो इस लड़की के साथ मेरे द्वारा देखा गया था। कॉफी खत्म हो गई थी। मैंने कहा - डॉ., बात बिगड़ने से बच गई थी अतः क्षमा का प्रश्न ही नहीं रहा है। फिर हम कैंटीन से बाहर आकर, अपनी अपनी क्लासेज की ओर चले गए। 

स्पष्ट हुआ था कि दोषी, लड़की नहीं थी। दोष लड़के का था जिसने इसमें बिगाड़ लाया था। जिसके कारण मेरे सामने, इसकी बुरी छवि बन गई थी।  

लड़की के द्वारा अपने रहस्योद्घाटन करने से मेरी, पूर्व धारणा पुष्ट हुई थी कि - "हमारे समाज में, “वह (पुरुष) ही होता है जो किसी लड़की या महिला के चरित्र को अपनी वासना पूर्ति की पहल में, बिगाड़ने का निमित्त होता है।”

जब मैंने, अपने विचारपूर्वक, पुरुष के प्रति पक्षपात करते हुये, चारित्रिक पतन के लिए एकतरफा दोषी ठहरा दिया, तब मेरा तार्किक दिमाग मुझसे प्रश्न करने लगा कि - "यदि, नारी के बिगाड़ के लिए पुरुष दोषी है तो, पुरुष के बिगाड़ का दोषी कौन है?"(क्रमशः)


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