Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Fantasy

दिव्य शक्ति (3) ..

दिव्य शक्ति (3) ..

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..4 दिन बाद, आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश परीक्षा, मैंने आशा अनुसार अच्छी तरह दी थी। अब मेरे पास बारहवीं तथा इस प्रवेश परीक्षा के परिणामों के बाद, आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश हेतु 3 महीने का समय था। 

उस रात देखे सपने से, मेरे ध्यान में, मेरा नया जीवन लक्ष्य था। अतः इस अवधि का प्रयोग मैंने, उसकी ओर पग बढ़ाने में करना तय किया। फिर पापा से अनुमति मिल जा जाने पर मैंने, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ प्राइवेट इन्वेस्टीगेशन, नई दिल्ली में, 3 महीने का इन्वेस्टिगेटर कोर्स ज्वाइन कर लिया। 

कोर्स के अंतर्गत सर्टिफिकेशन पूर्ण करने के पहले, तीसरे महीने में, मुझे इंस्टीट्यूट की ओर से 2 प्रकरण, इन्वेस्टिगेशन के लिए दिए गए। 

पहले प्रकरण में, मेरी क्लाइंट एक पत्नी थी। वह, अपने पति के, विवाहेत्तर संबंध होने के संदेह की, जाँच चाहती थी। मैंने, उनसे, उनके पति के फोटो एवं अन्य जानकारी ली थी। 

अपनी क्लाइंट से भेंट के बाद उस रात, डिनर के लिए मैं, एक रेस्टोरेंट में गया। तब मेरे केस की दृष्टि से, सुखद संयोग हुआ। मुझे वहीं, वह रसिक मिजाज पति, एक सुंदर युवती के साथ, पास की टेबल पर आकर बैठता दिखाई दिया।

यह देखते ही, मेरा डिटेक्टिव दिमाग तुरंत सक्रिय हो गया। मैंने, डिनर का विचार टाल दिया। फिर तुरंत ही वहाँ के एक वेटर को, 500 रूपये के बदले अपनी योजना अनुसार काम के लिए राजी कर लिया। तब उस वेटर द्वारा दी गई, कैप और जैकेट मैंने पहन ली। 

योजना अंतर्गत, रेस्टोरेंट किचन से, सामग्री तो वेटर को ही लाना थी। मगर उस टेबल पर आर्डर लेने एवं सर्व करने के लिए, बार बार जाने के अवसर मुझे मिल गए थे। इस काम के बीच, मैंने उन की टेबल के पास दीवार पर, गुप्त रूप से मेरे बेग में रखी, रिकॉर्डिंग मशीन एवं कैमरा, फिट कर दिये। 

इस तरह मैंने, दोनों के बीच की बातें एवं दोनों के फोटो कैप्चर किए। उनकी डिनर के अंत में, बिल की राशि लेते हुए, उन (पति) महोदय से, मेरी आँखे मिलीं थीं। तब मुझे क्षणांश में, एक इंद्रधनुषी किरण, मेरी आँखों से निकल कर उसकी आँखों में जाती दिखाई दी थी। 

इस इंद्रधनुषी किरण ने मुझे, स्वयं आश्चर्य चकित किया था। तब मैंने, इसे अपना भ्रम समझ कर दिमाग से झटक दिया था। अगले दिन मैंने, वहाँ रिकार्ड किये वार्तालाप एवं फोटो, अपने क्लाइंट को सौंपे थे। उनसे, पत्नी के संदेह की पुष्टि होती थी। 

दूसरे प्रकरण में क्लाइंट एक प्रेमिका थी। उसे शक था कि उसका मंगेतर, अन्य लड़कियों से भी, फ़्लर्ट कर रहा है। अपनी क्लाइंट से विवरण लेकर जब मैं लौट रहा था तब, मुझे वहाँ हुए संयोग ने पुनः चकित किया। 

मेरे विशेष यत्न बिना, एक ट्रैफिक लाइट पर मुझे, वह मंगेतर युवक, बाइक पर एक मॉडर्न लड़की के साथ, ग्रीन लाइट की प्रतीक्षा में खड़े मिल गया। 

तब, मैंने वहीं से उनका पीछा करना शुरू कर दिया। उस युवक ने एक पार्किंग में बाइक खड़ी की थी। उसके बाद वे दोनों, एक मॉल में गए थे। मैं किसी कुशल डिटेक्टिव की तरह, उनका पीछा कर रहा था। मॉल गलियारों के साथ ही, जिन जिन शॉप पर वे जा रहे थे मैं, उनके काफी निकट रहते हुए पीछा कर रहा था। साथ ही, उनके बीच हो रही बातों को रिकॉर्ड करते हुए उनका वीडियो शूट करते जा रहा था। 

यह सब करते हुए, मैंने सतर्कता भी रखी हुई थी। मैंने, अपनी डिटेक्टिव वाली हरकतें, मॉल में जगह जगह लगे हुए, सर्विल्लेंस कैमरों से बचाई थीं। मॉल में करीब 2 घंटे तक, यह सिलसिला चला था। 

अंत में जब वे मॉल से निर्गम के रास्ते में थे, मैं अचानक लड़खड़ा जाने के बहाने, उस युवक से टकराया था। फिर सॉरी कहते हुए, उसे गिरने से बचाने का प्रयास दिखाते हुए मैंने, एक क्षण को उससे, करीब से आँखें मिलाई थी। यहां भी, उस क्षण में मुझे, अपनी आँखों से निकल कर, उसकी आँखों में जाती हुई, एक इंद्रधनुषी किरण अनुभव हुई थी। 

दूसरी बार ऐसा होने से मुझे लगने लगा था कि इंद्रधनुषी किरण, मेरा भ्रम नहीं था। 

अगले दिन मैंने मॉल में की गई, रिकॉर्डिंग एवं वीडियो जिनसे, क्लाइंट (प्रेमिका) का शक, सही साबित होता था, उसे सौंप दिए थे। 

ऐसे इन्वेस्टीगेशन पूर्ण करके मैंने, अपने कोर्स की अंतिम रिपोर्ट में, इंद्रधनुषी किरण का जिक्र छोड़ कर, बाकी पूरी घटनायें एवं अपनी की गई जाँच विवरण लिख कर, जमा कर दिए थे। 

फिर मेरा, इन्वेस्टिगेटर (डिटेक्टिव) सर्टिफिकेशन पूर्ण हुआ था। आत्म में, नई दिल्ली छोड़ने के पूर्व, सौजन्य वश मैंने, बारी बारी अपने दोनों क्लाइंट्स से भेंट की थी। उनसे मिला फीडबैक क्रमशः ऐसे था -

पत्नी क्लाइंट् ने बताया - 

“जिस दिन, मैं उनके पति से रेस्टोरेंट में मिला था, उस दिन के बाद से उनके, पति महोदय घर समय पर पहुँचने लगे थे। देर रात तक, उनके बाहर रहने का सिलसिला खत्म हो गया था। पत्नी ने यह भी बताया कि तभी से, पति महोदय, उनसे, 10 वर्ष पूर्व हुये, उनके विवाह के समय वाले प्यार और समर्पण से पेश आने लगे थे। 

अंत में क्लाइंट (पत्नी) ने, मुझसे कहा - मैं, आपका अत्यंत आभार मानती हूँ कि आपने अविश्वसनीय चमत्कार कर दिया है। मैं, अपने पति के साथ अब, पूर्व की भांति बहुत खुश हूँ।”

फिर दूसरी क्लाइंट से मैं मिला था। प्रेमिका क्लाइंट् ने बताया कि - 

“आपसे मॉल में टकराने के अगले दिन ही, मेरे मंगेतर ने, मुझसे क्षमा माँगी है। मंगेतर ने मुझे, यह भी बताया है कि उसकी काम भावना, उसे भटका रही थी। वह नई नई लड़की में सुख ढूँढ रहा था। कल से, उसका कई लड़कियों में सुख मिलने का, भ्रम मिट गया है। उसने (मंगेतर ने), मुझे, यह भी बताया है कि अब वह मुझे छोड़कर, अन्य सभी लड़की की ओर जब देखता है तो उसकी दृष्टि में उनमें, उसे, अपनी छोटी बहन की छवि दिखने लगती है। 

उसने, मुझे विश्वास दिलाया है कि वह शीघ्र ही मुझसे विवाह करना चाहता है। आगे आजीवन वह, मेरे प्रति निष्ठा एवं विश्वास सहित मेरा साथ निभाएगा। 

इस क्लाइंट (प्रेमिका) ने भी अंत में यही कहा - आपके माध्यम से, मेरे जीवन में एक चमत्कार सा हुआ है। जिसके लिए मैं, आपकी अत्यंत आभारी हूँ।” 

दोनों ही फीडबैक से मुझे स्पष्ट संकेत मिल रहा था कि निश्चित ही, मेरे भले लक्ष्य पर काम करते हुए, मुझमें कोई दिव्य शक्ति आ जाती है। 

निःसंदेह, दिव्य शक्ति के साथ हुए बिना यह संभव नहीं है कि मेरे किसी प्रयास के बिना, मेरे टारगेट, संयोग से ही मुझे, रेस्टोरेंट एवं ट्रैफिक लाइट पर मिल जाते हैं। 

निश्चित ही यह कोई दिव्य शक्ति है जो, मेरी आँखों से इंद्रधनुषी किरण उत्सर्जित करती है। 

संभवतः क्षणिक रूप से उत्सर्जित यह इंद्रधनुषी किरण, बुरे चरित्र के व्यक्ति की आँखों में प्रवेश करके, उनकी आँखों में पड़े अनैतिक वासना का जाला, नष्ट कर देती है। 

किसी भी मनुष्य की आँखों में पड़े, इस अति वासना के जाले के साफ़ होते ही, व्यक्ति को अपने परिवार एवं समाज दायित्व स्पष्ट दिखने लगते हैं। ज्यों ही ऐसा दायित्व बोध उन्हें होता है। उनकी दृष्टि एवं ह्रदय में हर नारी के लिए माँ, बहन एवं बेटी सा आदर, श्रद्धा एवं स्नेह उमड़ आता है। 

तब आँखों से साफ हो गए, वासना के जाले के फलस्वरूप, किसी भी व्यक्ति की दृष्टि, अपने साथी के प्रति निर्मल एवं समर्पित हो जाती है। फिर इनके आचरण एवं कर्म, इनकी पत्नी /मंगेतर के प्रति आदर्शों से परिपूर्ण हो जाते हैं। 

तत्पश्चात मैं, अपने शहर/घर, लौट आया था। इस बीच मेरे, बारहवीं तथा आयुर्विज्ञान प्रवेश परीक्षाओं के परिणाम, आशा अनुरूप अच्छे आ चुके थे। घर लौटने के चौथे दिन ही तब मैंने, आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश संबंधी औपचारिकताएं पूरी कर दीं। 

क्लासेज एवं प्रैक्टिकल की सुविधा की दृष्टि से फिर मैं, महाविद्यालीन छात्रावास में ही रहने लगा। जल्दी ही नये कोर्स एवं नए वातावरण में अढ़ाई महीने बीत गए थे। कल ही दीपावली अवकाश में, मैं घर लौटा था। 

मेरे घर आने से, दादा-दादी, मम्मी-पापा एवं मेरी छोटी बहन, बहुत प्रसन्न हुए थे। 

अब आज दीपावली है। अप्रत्याशित रूप से, अभी मेरे मोबाइल पर डॉ. देसाई का कॉल आया है। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार के लिए, दीपावली की शुभकामनाएं देने की भावना से वे, हमारे घर आना चाहते हैं। 

उनके पूछे जाने पर मैंने, उन्हें अपने घर का पता बता दिया। तदुपरांत अपने पापा को बताया कि डॉ. देसाई दोपहर, हमारे घर आने वाले हैं। इस पर पापा अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा - इतने प्रतिष्ठित तथा योग्य चिकित्सक का, हमारे घर आना बड़े भाग्य की बात है। 

डॉ. देसाई ने मोबाइल पर नहीं बताया था कि वे सपरिवार आएंगे। इसलिए दोपहर उनका सपरिवार आना, हमारी आशा के विपरीत सुखद आश्चर्य का सबब हुआ। 

घर के द्वार पर ही उनके स्वागत में, हाथ जोड़ कर, मेरे दादा-दादी एवं मम्मी-पापा आ खड़े हुए।

डॉ. देसाई, आंटी एवं उनके बच्चों ने पहले, मेरे दादा-दादी के चरण छूकर उनका आर्शीवाद लिया। फिर डॉ., पापा से एवं आंटी, मेरी मम्मी से गले मिले। अनन्या एवं उसके छोटे भाई ने, मेरी मम्मी, पापा के भी चरण स्पर्श किये। 

मैंने, अनन्या को छह महीने पहले अचेत एवं घायल अवस्था में देखा था। आज, जीवन से भरपूर उसकी आँखे एवं उसका खिला मगर थोड़ा लजाया सा मुखड़ा मुझे, बहुत प्यारा लग रहा है। मुझे लग रहा है मैंने, बहुत लड़कियाँ देखीं हैं लेकिन अनन्या से सुंदर शायद कोई और नहीं है। 

इस अनुभूति से मुझे, प्रसन्नता हुई कि उस दिन, जब उसके प्राणों पर आ गई थी तब, दिव्य शक्ति ने, मुझे उसकी सहायता के लिए, पहले ही वहाँ पहुँचा दिया था। 

मैं, इसी विचार में खोया हुआ था कि मैंने, अपने कंधे पर हाथों का स्पर्श अनुभव किया। मैंने चौंक कर देखा, ये हाथ डॉ. देसाई के थे। वे, मुझसे कह रहे थे - 

हम बहुत दिनों से, यहाँ आने के बारे में सोचा करते थे। मेरी अति व्यस्तता के चलते, आज ही अनन्या की जिद पर हम समय निकाल सके हैं। अनन्या, तुम्हें, उसका, पुनर्जीवन प्रदान करने वाला मानती है। वह तुम्हारे दर्शन के लिए, तब से ही अत्यंत उत्सुक रही है। 

यह सुनकर मेरी दृष्टि, अनायास अनन्या पर गई थी। अपने पापा की ओर से ऐसा बता दिया जाना, शायद उसके लिए अप्रत्याशित था। 

यह सुनकर वह लजा गई थी। अनन्या के किशोरवया मुखड़े पर लालिमा आ गई थी। ऐसे में उसका मुख, नए खिले गुलाब पुष्प की तरह अत्यंत ही मन लुभावना दिखाई पड़ रहा था। 

उसकी पलकें झुक गईं थीं मगर साथ ही, उसके ओंठों पर चित्ताकर्षक एक अत्यंत मोहक सी मुस्कान थी। 

तब आंटी ने, अपनी बेटी पर केंद्रित हो गई चर्चा से, अनन्या की लजा जाने की मनः स्थिति को समझते हुए, चर्चा की दिशा बदलने के अभिप्राय से, हाथ जोड़कर सभी से कहा -

सभी को शुभ, अति शुभ दीपावली .. 

(क्रमशः)



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