Kameshwari Karri

Romance

4.5  

Kameshwari Karri

Romance

दिल तो आख़िर दिल है न

दिल तो आख़िर दिल है न

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मानिनी जैसे ही यूनिवर्सिटी के गेट के अंदर आई तभी पीछे से किसी ने पुकारा मानिनी... उसने पलट कर देखा तो सूर्या था । उसकी आँखें किसी को ढूँढ रही थी ।उसने कहा — चंद्रिका नहीं आई । मानिनी और चंद्रिका एक साथ कॉलेज आते थे । वे दोनों एक ही कॉलोनी में रहते थे । इसीलिए सूर्या ने मानिनी से चंद्रिका के बारे में पूछा था । मानिनी ने कहा आज उसका फ़र्स्ट ऑवर है इसलिए मुझसे पहले ही आ गई है । 

चंद्रिका और सूर्या दोनों एक ही क्लास में एक ही विषय में एम . एस .सी पढ रहे थे । दोनों ही टॉपर थे । कभी चंद्रिका प्रथम तो कभी सूर्या । इस तरह दोनों अच्छे मित्र बन गए । 

पढ़ाई के बारे में ही चर्चा करते थे । आख़िरी सेमेस्टर ख़त्म हो गया । अब सब यूनिवर्सिटी को छोड़ कर इस विशाल दुनिया में खो जाना चाहते थे । सूर्या और चंद्रिका भी समुद्र किनारे टहल रहे थे । चंद्रिका ने सूर्या से पूछा अब आगे क्या ? सूर्या ने कहा कुछ नहीं बस एक अच्छी से नौकरी ढूँढ कर चंद्रिका से शादी ......

"क्या तुम मुझसे शादी करोगी" उसने पूछा । "सूर्या मुझे कोई आपत्ति नहीं है ।माँ को भी मैंने हिंट दिया है । बस तुम नौकरी पर लग जाओ और मेरे घर आना मुझे लेने ।" दोनों को बहुत अच्छा लग रहा था कि सब उनके अनुसार ही हो रहा है । कॉलेज में किसी को भी नहीं मालूम है कि ये दोनों एक दूसरे को चाहते हैं ।सब यही सोचते थे कि दोनों अच्छे दोस्त हैं । दूसरे दिन सबने एक दूसरे से जुदा होते हुए ..,रीयूनियन पर मिलने का वादा करते हुए अपने अपनों के पास चले जाते हैं ।

एक ही साल में सूर्या को एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गया । उसने चंद्रिका के घर जाकर बात करने के लिए अपने माता-पिता को तैयार कर लिया । उन्होंने उनके घर जाने के लिए पूरी तैयारियाँ भी कर लिया । सूर्या बहुत ख़ुश था .. तभी उसे चंद्रिका का ख़त मिला उसने लिखा था कि


सूर्या.... सूर्य और चंद्रमा कभी नहीं मिलते हैं , यह मुझे अभी पता चला है । मुझे तुम भूल जाओ क्योंकि पापा की जान को बचाने की ख़ातिर मुझे उनके दोस्त के बेटे से विवाह करना पड़ रहा है । मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी मजबूरी को समझोगे । तुम भी विवाह करके अपनी ज़िंदगी जी लो सूर्या और मुझे भूल जाओ । प्लीज़ । कभी भी तुम्हारी न हो सकने वाली 

 चंद्रिका ।

सूर्या की जैसे दुनिया ही उजड़ गई । उसके कितने ही अरमान थे । खामोश रहकर उसने सब कुछ सह लिया । उसने सोचा चंद्रिका जहाँ कहीं भी रहे ख़ुश रहे । उसने बात करना कम कर दिया । अपने आप में ही सिमट गया ।माँ ने कई बार रिश्तों के लिए कहा था ,पर उसने कहा -माँ प्लीज़ आप किसी भी रिश्ते के बारे में मुझसे बात मत कीजिए मैं शादी नहीं करूँगा । उस दिन से माँ ने भी कुछ नहीं कहा और सूर्या ने अपने कैरियर पर ध्यान केंद्रित किया धीरे-धीरे बहुत बडे ओहदे पर पहुँच गया । यह सब सालों पहले की बातें थीं । 

अब !!!’

सूर्या एयरपोर्ट पहुँच गया। चेकिंग करकर बैठा था ,एनाउन्समेंट के लिए । जैसे ही कॉल किया गया उसने अपना लेपटॉप बैग उठाया और एयरप्लेन में चढ़ गया । लास्ट मेसेज ऑफिस वालों को कर दिया कि एयरपोर्ट कार भेज दें ...फ़्लाइट सही समय पर है और आँखें बंद कर बैठ गया । उसने बंद आँखों से ही महसूस किया कि उसके बग़ल वाली सीट पर कोई महिला बैठी हैं । उसने आँखें खोलकर देखी तभी उस महिला ने भी पलट कर देखा दोनों एक दूसरे को देख हैरान हो गए क्योंकि वह महिला कोई और नहीं मानिनी थी दोनों के मुँह से एक बार ही निकला तुम !!!!मानिनी बहुत ही ख़ुश हुई चलो अच्छा हुआ तुम मिल गए समय आसानी से कट जाएगा । 

 मानिनी ने बताया बेटा बैंगलोर में रहता है उसी से मिलने गई थी । अब वापस चेन्नई जा रही हूँ । सूर्या ने बताया वह भी ऑफिस के काम से चेन्नई ही जा रहा है रहता बैंगलोर में ही है ।पूछने पर बताया कि शादी नहीं हुई है ।माता-पिता भी कुछ साल पहले ही गुजर गए हैं !अब अकेले ही रहता हूँ । वैसे काम से फ़ुरसत ही नहीं मिलता ,आधा समय एयरपोर्ट के चक्कर काटने में ही हो जाता है और ज़ोर से ठहाका मारकर हँसता है । मानिनी ने भी बताया वह कॉलेज में लेक्चरर है ।बेटा बैंगलोर में रहता है । बेटी चेन्नई में ही रहती है । बातों-बातों में मानिनी ने पूछा अरे हाँ ! सूर्या तुम्हारी दोस्त चंद्रिका कैसी है ।तुम दोनों रीयूनियन में भी कभी नहीं दिखे ।सुना था ,उसकी शादी भी हो गई है । सूर्या ने कहा -हाँ अब वह मेरे संपर्क में भी नहीं है ।मैं भी अपनी व्यस्तता के कारण उसकी कोई खबर भी नहीं ले सका । तुम्हें उसका फ़ोन नंबर या पता या कहाँ रहती है ? कुछ मालूम है ? 

मानिनी ने कहा - हमारे साथ विजय था न वह शायद चंद्रिका के संपर्क में है । उससे फ़ोन नंबर माँग लेना । कभी एक बार कह रहा था , वह चेन्नई में ही कपालेश्वर मंदिर के पास मायलापुर में रहती है । आदित्य अपार्टमेंट में ऐसा किसी से कह रहा था तो मैंने सुना था । सॉरी ....सूर्या मैं नहीं आ सकती हाँ क्योंकि मुझे बहुत सारे काम हैं । तुझे उसकी ख़बर मिलते ही मुझे भी बताना मैं भी मिलूँगी । जैसे ही फ़्लाइट लेंड हुई हम दोनों बाहर आए । उसे लेने उसका दामाद आया था और सूर्या के लिए ऑफिस की कार ...दोनों एक दूसरे से बिदा लेकर फिर से मिलने का वादा कर चले गए । 

सूर्या दो तीन दिन तक बहुत व्यस्त था । फिर उसने बैंगलोर ऑफिस में फ़ोन करके बता दिया दो तीन दिन बाद आएगा । अब वह मानिनी के बताए पते को ढूँढते हुए चंद्रिका के घर पहुँच गया । वह घर में ही थी । जैसे ही बेल बजाया .उसने ही दरवाज़ा खोला था । मैं तो उसे पहचान भी नहीं पाया ।वह बहुत दुबली पतली हो गई थी । अपने आयु से बड़ी दिख रही थी । चश्मा भी लग गया था ।" कौन है ?" कहते हुए उसने मुझे देखा और देखते ही रह गई । शायद उसने मुझे पहचान लिया था मुँह में ही मेरा नाम बुदबुदा रही थी । मैंने हँसते हुए कहा - "सूर्या को अपने घर में नहीं बुलाओगी ।" वह जैसे अभी ही होश में आई !!! उसने कहा "सूर्या !!!!आओ न कैसे हो ? कहाँ रहते हो ? कब आए ? मेरा पता किसने दिया ?"

"थोडी -सी साँस ले लो चंदा ।मैं सब बता दूँगा । और हाँ पानी पिला दो न ।" चंद्रिका का ने कहा "अरे !!!सॉरी मैं अभी पानी लाती हूँ । चाय पियोगे क्या ?" मेरे हाँ कहते ही ,चंद्रिका चाय नाश्ता लाती है । दोनों बैठकर चाय पीते हुए एक दूसरे को एकटक देखते ही रहते हैं ,जैसे नज़र हटी तो सपना टूट जाएगा । चाय ख़त्म होते ही चंद्रिका ने कहा -सूर्या आज यहीं रुक जाओ न ...बहुत सारी बातें करनी है । सूर्या ने कहा ठीक है -पर खाना मत बनाना बाहर से ऑर्डर करेंगे और सिर्फ़ बातें ही करेंगे । चंद्रिका ने कहा ठीक है । चलो !! तुम फ़्रेश हो जाओ । 

सूर्या फ़्रेश होकर आया ।दोनों बालकनी में बैठ गए । सूर्या ने कहा "चंद्रिका अकेले ही रहती हो क्या हुआ ? तुम्हारी तो शादी भी हुई थी न । बच्चे नहीं दिख रहे हैं ?"

चंद्रिका ने कहा — "सूर्या तुम्हें मालूम है न साल ख़त्म होते ही हम सब अपने - अपने घर चले गए थे । मैं भी जैसे ही घर गई तो पापा ने कहा - उनके बिज़नेस पार्टनर के बेटे के साथ मैंने तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया है तो तुम्हें यह शादी करनी ही पड़ेगी क्योंकि बहुत समय पहले हम दोनों बिज़नेस के सिलसिले में बाहर जा रहे थे .रास्ते में हमारी गाड़ी ख़राब हो गई थी । हमने शराब पी रखी थी ।जब तक ड्राइवर गाड़ी ठीक करता !हम पास के ही किसी छोटे से मकान में रुक गए थे वहीं एक हादसा हुआ जिसमें मैं फँस गया था ।अपने पास से पैसे देकर मेरे दोस्त रामदेव ने मुझे बचाया था ।जब मैंने उससे कहा - तुम्हारा यह उपकार मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूँगा तब उसने कहा था -कि तेरी बेटी को मेरे घर की बहू बना दे ।बस मैंने भी आव देखा न ताव जोश में कह दिया !!!पक्का चाहे कुछ भी हो जाए ।मैं अपनी बेटी का विवाह तेरे बेटे से करा दूँगा यह मेरा वादा है । इसलिए उस वादे को निभाने का समय आ गया है तो तुम मेरी बात मानलो । अब मैं क्या कहती ..,,मुझे ज़बरदस्ती उनकी बात माननी पड़ी । शादी के बाद मुझे पता चला कि अभय आवारा पियक्कड़ पैसे वाले बाप का बिगड़ैल बेटा था । अंकल ने अपने बेटे को जबरदस्ती मेरे मत्थे मड दिया था । मरता क्या न करता ।मैं भी चुप चाप इस अनचाहे रिश्ते को निभाती रही ।माँ पापा को भी मैंने उनके दामाद की असलियत नहीं बताई थी । अंकल ने कहा बेटा मुझे मालूम है आप पढ़ी लिखी हो तो उसको किसी तरह सुधार कर रास्ते पर ला लोगी ।यही सोचकर आपके पिता से मैंने तुम्हें माँग लिया था । मैं क्या कहती ?उस बिगडे बेटे को कैसे सुधारूँ ?सुधारने के लिए वह घर पर रहे मेरी तरफ़ देखे या मुझसे बात करे तब न । दस - दस दिन तक ग़ायब रहता है फिर घर आकर पिता से लड झगड़कर पैसे लेकर भाग जाता है । मैं क्या कर सकती थी ,तभी एकदिन सुबह पुलिस आई यह बताने लिए कि अभय एक्सिडेंट में गुजर गया है । मेरे माता-पिता रोते बिलखते आए और तब लोगों की बातों से उन्हें पता चला अभय के बारे में पापा अपने आप को दोषी समझने लगे ,लाख समझाने पर भी चिंता में घुलते गए ।अंत में दो साल पहले उनकी मृत्यु हो गई । उनकी याद में एक ही महीने में माँ भी पापा को खोजते हुए उनके पास चली गई । अंकल मेरी इस हालत के ज़िम्मेदार अपने आपको समझ ने लगे और उन्होंने अपनी पूरी जायदाद मेरे नाम करके आँटी के साथ बनारस चले गए । अपने पापों का प्रायश्चित करने । अब मैं अकेली ही अपनी ज़िंदगी जी रही हूँ । कहते हुए उसकी आँखों में आँसू आ गए फिर अपने आपको सँभालते हुए उसने कहा - मेरी राम कहानी तो हो गई अब अपने बारे में बताओ न बीबी कैसी है कितने बच्चे हैं ? क्या कर रहे हैं ? रुको भाई प्रश्नों की बौछार तो रोको । तुम्हारी आदत अभी तक गई नहीं न कॉलेज में भी ऐसे ही प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगती थी ? ख़ैर "

"चंद्रिका तुम्हारी चिट्ठी पढ़ने के बाद मैं अपसट हो गया था । मैंने सबसे बात करना ही छोड़ दिया । अपने कैरियर पर ज़्यादा ध्यान देने लगा । मेरी माँ मेरे लिए रिश्ते लाना चाह रही थी पर मैंने कह दिया कि मेरी ज़िंदगी में चंद्रिका नहीं तो और कोई नहीं बस । माँ ने फिर कभी मेरे लिए रिश्ते लाने की कोशिश नहीं की पर मेरी चिंता उन्हें सताती थी । मेरे ख़याल से इसी चिंता में माँ पिता भी कुछ साल पहले गुजर गए और अकेला तुम्हारी यादों के सहारे जी रहा हूँ । बस !!!"

दूसरे दिन नहा धोकर चाय नाश्ते के समय सूर्या ने हँसते हुए कहा - "चंद्रिका अब सूर्य चंद्र के मिलने का समय आ गया है । तुम भी अकेली मैं भी अकेला तो क्यों न हम अपनी ज़िंदगी साथ बिताए ।" चंद्रिका ने कहा - "मुझे दो दिन का समय दो मुझे भी तुम्हारे सहारे की ज़रूरत है । मैं अंकल आँटी को बता कर सीधे बैंगलोर तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगी ।" सूर्या ने कहा - "ठीक है" और दूसरे ही दिन वह वापस बैंगलोर चला गया । चंद्रिका अपने सास - ससुर से मिलने बनारस जाती है और उनसे मिलकर सारी बातें बताती है । रामदेव कहते हैं "बेटा हमने तो स्वार्थ वश तुम्हारी ज़िंदगी ही ख़राब कर दी थी । अब हमें अपनी ग़लतियों का प्रायश्चित करने का मौक़ा मिल रहा है तो तुम्हें रोक कर हम और पाप मोल नहीं ले सकते हैं जा बेटा अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जी ले । कभी-कभी हमें भी अपने बारे में बताते रहना ।" उन्होंने दिल से उसे सूर्या के साथ रहने की इजाज़त दे दिया । 

दो दिन बाद चंद्रिका सूर्या के पास बैंगलोर चली गई । दोनों बहुत ही खुश थे कि जो ख्वाहिश उनकी अधूरी रह गई थी अब पूरी हो रही है । किसी ने सच ही कहा है कि दिल तो आख़िर दिल है न !!!!!



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