दिल के करीब
दिल के करीब
अचानक सड़क पर भीड़ इकट्ठा हो गयी।।एक ब्यक्ति सड़क पर खून से लटपट पड़ा है और एक गाडी जो उनको ठोकर मारी है लोग उसको घेर रहे है। कुछ लोग उस इंसान को पहचान लिए जो रास्ते में पड़ा हुआ है.वो और कोई नहीं सहर की नमी लेखक अबिनाश बर्मा है। तुरंत एम्बुलेंस आकर अबिनाश को हॉस्पिटल ले गया। अबिनाश के करीबी बोलने से कोई नहीं है पर लोग उनका इज्जत करते है और प्यार भी करते है। उनकी द्वारा लिखागया बहुत किताब अब सिनेमा भी बनचुका है। हॉस्पिटल में उनकी घर की पुराना नौकर रामु जो की अब ७५ साल का है और अबिनाश के एक मित्र रमेश पहंच चुके है। कुछ देर बाद अबिनाश को होश आया। तब तक डाक्टरों ने उनकी कुछ मरहम पति करचुके थे। इस हादसे में अबिनाश के दोनों हाट और दोनों पैर की मूल नाश काट चूका है और इसके बजहे से हाट और पैर निस्तेज होगया है। ाभो डाक्टरों ने कुछ और बड़े डाक्टरों को बुलाया है एकबार पहिए अबिनाश का हाट और पैर को देखने के लिए। इधर हॉस्पिटल के बाहर उनके चाहनेवालों के भीड़ जमा हुआ है। रमेश को डाक्टरों ने सब खुल के बोल्दिए। अबिनाश को अभी सुलाके रखा गया है। सारे डाक्टर लगे हुए है कैसे अबिनाश का हालत को ठीक किया जाये. ऐसे वहां महजूद रामु बैठ के रोरहा है। उसने अपने गॉड में बचपन से अबिनाश को खिलाया है।
उसको अबिनाश रामु काका बोलते है। दो दिनों के बाद सब कुछ कोशिश करने के बाद डाक्टरों ने रमेश और रामु को बोले की अब रमेश के हाट और पैर कभी काम नहीं करेगा। ये बात सुनकर दोनों ने माथे पर हाट देकर बैठ गए। रमेश ने रामु को बोलने लगा ,'' अब अबिनाश का देख भल कौन करेगा जिंदगी भर के लिए। उसने तो शादी भी नहीं किया। इस्वर ने उससे उसके पिता माता को भी पहले चीन लिया है। उसने बचपन से सिर्फ सबको देते रहा और जब उसका ये हालत हुआ तो वो कैसे जियेगा ? लिखना उसका जिंदगी था और अब वो लिख नहीं पायेगा तो जीते जीते मर जायेगा। मुझे तो कुछ रास्ता दिख नहीं रहा है.'' तब नर्स ने आकर बताई की अब अबिनाश को होश आगया है और उसे मिल सकते है। तब आँखों का आंसू को पोछते हुए दोनों रमेश और रामु ने अबिनाश के पास गए। अबिनाश थोड़ा मुस्कुराते हुए उनको बोलै ,''यार रमेश ये लोग क्या मुझे ज्यादा निशा के गोलियां दिए ? देखो तो मेरा हात पाओं कुछ में हिला नहीं पा रहा हूँ। अब थोड़ा थोड़ा दर्द हो रहा है। तुम लोग फिकर मत करो में जल्द ठीक हो जाऊंगा। '' ये बात सुनके रामु रट हुए बाहर चला गया। रमेश थोड़ा हिम्मत जुटाके बोलै ,''हाँ तुम ठीक हो जाओगे। अब तुम थोड़ा आराम करो। में यहाँ हूँ.'' अबिनाश ने बोलै ,'' तुम यहां बैठो। अच्छा किशोर को कुछ नहीं बोलना। वो बहुत ब्यस्त है अपने काम में। अब वो पुरे सहर को संभालता है। और उसका भी शरीर अभी ठीक नहीं है। में सुना था उसका दिलका कोई बड़ा बीमारी हुआ है। आरती भी बिचारि बहुत परेशां होती होगी उसके लिए। मेरा दोस्त किशोर सदा खुस रहे और आरती भी ,ये में चाहता हूँ। अगर मेरा बस में होता तो मेरा ये दिल में किशोर को दे देता। कमसे कम un दोनों की जिंदगी तो बहुत खुसी से कटेगा। '' ये सब सुनके रमेश को बहुत घुसा आरहा था और बड़ा दुःख भी हो रहा था। रमेश सोचने लगा अभी भी अबिनाश किशोर और आरती को कितना चाहता है। आज उसका अकेलापन का कारन तो वो दोनों है। तब रमेश ने देखा की अबिनाश सो गया है। वो भी थोड़ा बैठ के अतीत को सोचने लगा।
अबिनाश के पिता एक बड़ा वकील थे। उनका नाम था अशोक बर्मा और उसके माता नीलिमा देबि एक गृहिणी थे। अबिनाश उनके एकमात्र औलाद था। बचपन में अबिनाश,किशोर और रमेश एक स्कुल में पढ़ते थे। किशोर के पिता माता बहुत गरीब थे। बचपन से ही अबिनाश किशोर को अपना सब कुछ देता था। ये बात अशोक जी और नीलिमा देबि को भी मालूम था। उन्होंने भी किशोर को बहुत प्यार करते थे। स्कुल के बाद कालेज में पढ़ने के लिए किशोर का सारे ब्यबस्था अबिनाश के पिता किये थे अबिनाश का बोलने पर। उसी कालेज में आरती से अबिनाश का मुलाकात हुआ था जब अबिनाश का लिखा हुआ नाटक बार्षिक उस्चब में परिबेसित हुआ। आरती उनसे दो साल छोटी थी। उनकी ग्रेजुएशन का सेष बर्स में आरती की ग्रेजुएशन का पहेली बर्स थी। आरती और अबिनाश एक दूसरे को धीरे धीरे पसंद करने लगे और दोनोको प्यार होगया। ये बात रमेश को मालूम था। ग्रेजुएशन के बाद फिर पि जी में तीनो उसी कालेज में पढ़े। तब भी अबिनाश ने किशोर का पढ़ने का सारे जिम उठाया था। पि जी ख़तम होने के बाद अबिनाश उसके पहला किताब को लोकार्पण किया था। तब से वो लिखने में अपने आप को पूरा समर्पित करदिया था। उधर किशोर ने आई ए एस की तैयारी की और उसको पूरा सहयोग अबिनाश को मिल रहा था। अबिनाश सदा छठा था की किशोर अपनी मंजिल तक पहुंचे और उसके लिए वो सब कुछ उसको खुसी खुसी दे रहा था। आरती भी अबिनाश को बहुत छाती थी। अबिनाश भी छठा था की आरती को खुस रखे। उधर किशोर ने आई ए एस में कामियाबी हासिल किया और उस वक़्त अबिनाश के पिता माता का एक सड़क हादसे में निधन हो गया। अबिनाश पूरा टूट गया था। वो ६ महीने तक किसीसे नहीं मिला। सिर्फ एक बार आरती ने आयी थी और बोली थी ,''अबिनाश मेरे पिता माता मेरा शादी करवाने के लिए अभी चाहते है। वोलोग एक अच्छा नौकरी करनेवाला दामाद ढूंढ रहे है। तुम कुछ एक नौकरी कर लो नहीं तो हम लोग यहाँ से दूर चलेजाएंए और शादी करलेंगे। में तुम्हारी बिना जी नहीं पाउंगी। '' तब अबिनाश ने बोलै था ,'' देखो आरती में भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
पर भागकर शादी करने में मेरे स्वर्गीय पिता माता और तुम्हारी पिता माता की बड़ा अपमान होगा। और इस वक़्त में कोई नौकरी करने के बारे में सोच नहीं रहा हूँ। तुम तुम्हारी पिता माता के बात मानकर जहाँ वो चाहे वहां शादी कर लो। मान लेना की हम दोनों अछे दोस्त थे और रहेंगे भी। '' इतना बोलकर अबिनाश उसके कमरे के अंदर चला गया था और आरती रो रो के वापस चली गयी। उसके कुछ महीने बाद मालूम हुआ की आरती के शादी किशोर के साथ हो गया। किशोर ने बुलाया था पर अबिनाश नहीं गया था। उसके बाद पहिए अबिनाश और किशोर एक दूसरे को कभी नहीं मिले। अबिनाश भी शादी नहीं किया। अबिनाश अपने दोस्त किशोर और आरती के सब खबर रखता है। आज भी वो उनके बारे में सोच रहा है। ये सब रमेश सोच रहा था देखा की आरती रोटी हुयी हॉस्पिटल के एक कोने में खड़ी है और सारे हॉस्पिटल के लोग बहुत ब्यस्त हो रहे है। किशोर एक नर्स को पूछने से मालूम पड़ा की किशोर बहुत गंभीर हालत में भर्ती हुआ है। इतने में अबिनाश आँख खोलके पूछा ,''रमेश किशोर को क्या हुआ ? अभीतक मेरे हात पाओं कियूं काम नहीं कर रहा है ?मुझे सच बताओ। '' उस वक़्त एक डाक्टर ने आकर अबिनाश को देखा और बोलै ,'' में बहुत दुखी हूँ अबिनाश जी की आज के बाद आपकी कोई किताब हम पढ़ नहीं सकेंगे। '' ये सुने अबिनाश फिर पूछा ,'' डाक्टर साहब मेरा क्या हुआ है ?मेरा हात और पाऊँ कियूं काम नहीं कर रहा है ?'' डाक्टर ने बोले ,'' आपके हात पाओं और कभी काम नहीं करेगा। '' ये बोलकर डाक्टर वहां से चले गए। अबिनाश के आँखों से आंसू बहने लगे वो रमेश को बुलाया और बोला,''डाक्टर साहब को बुलाओ। मुझे कुछ अजीबसा लग रहा है। '' रमेश ने डाक्टर को बुलाया। तब अबिनाश बोला ,''साहेब मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ठीक से. मेरे शर पे बहुत दर्द हो रहा है। अगर मुझे कुछ हो जाये तो मेरा दिल को आप हमारे सहर के कलेक्टर साहब को दे दीजियेगा। कम से कम मेरा दिल सदा उनके पास में रहेगा। में तो ऐसे भी जीकर कुछ नहीं कर पाऊंगा। मेरे मरने के बाद मेरा दिल उनको सदा साथ तो देगा। और रमेश तुम उनको कभी मेरे बारे में बताओगे नहीं। '' इतना कहकर अबिनाश चुप होगया। डाक्टर ने देखे और बोले तुरंत उनको आई सी यु में ले चलो। अभी ये कोमा में चले गए। पता नहीं कब वापस आएंगे। तब रट हुए रमेश ने बोलपाड़ा ,'' वा आखिर शास् तक अपने प्यारे दोस्त के किये अपने आप को भी कुर्बान करदिआ। तब डाक्टर ने बहुत आश्चर्य हो गए और बोले ,''ये किशोर जी के दोस्त है !'' रमेश ने हाँ कहा और बोला ,'' इसके आखिर इच्छा को आप पूरा कर दीजिये। कमसे कम उसके दोस्त उसकी दिल के करीब सदा रहेंगे। ..''डाक्टर ने भी रो पड़े और बोले ,'' ऐसे दोस्त खास हमारे भी होते। हम वही करेंगे और इनका दिल का प्रत्यारोपण कलेक्टर साहब के दिल को निकल के करेंगे। ''
