दिल का दाग (भाग 6)
दिल का दाग (भाग 6)
शाहिद अपनी बीवी का दीवाना होकर रह गया था। उसे हर पल ,हर वक्त सिर्फ अपनी बीवी का ही ख्याल रहता। उसके लिए वह जो भी कर सकता था, कर रहा था। उसने उसे अपने बचपन से लेकर अब तक की सारी कहानी सुनाई । उसने बताया कि उसकी अम्मी का इंतकाल तभी हो गया था जब वह मात्र 7 साल का था । उसके पापा उसी साल उसके लिए सौतेली मां ले आए। उसकी सौतेली मा को वह कभी फूटी आंख भी नहीं सुहाता था।उसकी सौतेली अम्मी ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी थी और उसे गैरेज में मजदूरी का काम करने के लिए भेज दिया था ।घर आने पर उसके साथ बहुत मारपीट होती रहती थी ।उसके सौतेले भाइयों की छोटी सी भी शिकायत पर उसके साथ बहुत क्रूरता का व्यवहार होता था । सौतेली अम्मी के आने से अब्बू जो से पहले बहुत प्यार करते थे ,पहले ही सौतेले हो गए थे । वे दिन भर मजदूरी के लिए बाहर काम करते थे और रात को घर लौटते थे। 15 साल तक किसी तरीके से वह इतने अत्याचारों को सहन करता रहा। एक दिन जब उसकी मम्मी ने उसके अब्बू से उसके गंदे चरित्र की झूठी बात कहीं तो उसका घर से और दुनिया से दिल फट गया। वह तो मरने के लिए घर से भागा था ।
पर दिल्ली के एक बुजुर्ग बार ने उसके जज्बातों को समझ लिया था और मसीहा बनकर, उसे अपनी दुख भरी उसी की तरह की कहानी को सुना कर, अपने साथ ले आए थे ।वह इसी झुग्गी में रहते थे और उन्होंने ही उसे अपने गैरेज में काम करने को दिया था ।उनके इंतकाल के बाद 3 साल से यह गैरेज और झुग्गी अब उसके पास है।
उसने यह भी बताया की जब गमों की मारी जमाने की सताई हुई जमीला को चारों तरफ से जिस्म के खरीदार गिद्ध नाचने के लिए तैयार थे तब उसने ही आगे बढ़कर निरीह जमीला का हाथ थाम लिया था और उसे वेश्यावृत्ति के घिनौने दलदल से मुक्त कर दिया था।जमीला वह लड़की थी जिसने जिंदगी में उसे पहली बार प्यार दिया था ।
उसके सच्चे प्यार से प्यार को तरसती हुई शाहिद की आत्मा आनंद से भर उठी थी। शाहिद के जीवन की प्यार की सारी कमी जमीला का पूरी तरह समर्पित प्यार पाकर तृप्त हो गई थी। पर शायद खुदा को यह मंजूर ही नहीं था की शाहिद की जिंदगी में खुशी रहे। इसलिए रोड एक्सीडेंट में जमीला उसका साथ छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चली गई थी। यह रोड एक्सीडेंट निश्चित तौर पर जमीला के जिस्मफरोशी के दलालों के द्वारा किया गया था शाहिद ने उस व्यक्ति का चेहरा भी देख रखा था पर वह गरीब कुछ भी नहीं कर पाया।
इतना सब सुनाते हुए शाहिद की आंखें भर आई।
उसने जायदा को अपनी बाहों में लेते हुए कहा!
" मेरा नसीब था कि मुझे तुम जैसी नेक सुंदर और अच्छे विचार व्यवहार वाली पढ़ी लिखी अप्सरा जैसी बीवी मिली। पर मैं जानता हूं कि मेरे नसीब में आपका साथ कोई चंद दिनों का ही है ।फिर आप भी अपने रास्ते चली जायेंगी । अब दोबारा जिंदगी में मैं कभी किसी भी लड़की को प्यार नहीं कर पाऊंगा ।क्योंकि मिलने में जितना सुख है ,जुदाई में तो बस जान ही निकल जाती है।"
गहरी सांस लेकर जायदा की आंखों में देखता हुआ वह बोला।
" जमीला के जाने पर मैं तो मर ही गया था !किसी तरीके से अपने दिन काट रहा था ,कि आप मेरी जिंदगी में आ गई !और दो पल को मैं भूल ही गया कि आप तो किसी और की अमानत है !मेरे पास मौला की मेहर से चंद दिनों के लिए ही है !!आपके जाने के बाद मैं कैसे जी पाऊंगा? मैं नहीं जानता लेकिन जब तक आप मेरे साथ हैं, आपकी हर खुशी के लिए मुझसे जो भी बन सकेगा मैं सब करूंगा। बस बेगम आप मुझे बताते जाइए कि आपके यह गरीब अनपढ़ और गंवार शौहर को आपके लिए क्या क्या करना चाहिए, ताकि मेरे मन में यह हसरत न रह जाए कि मैं अपनी बेगम के लिए कुछ कर नहीं पाया।"
अपने ही ख्यालों में गुम जायदा शाहिद की बातों को ध्यान से सुन रही थी !उसके गमों को और दुखों को अनुभव करके उसकी आंख भर आई और उसने अपने शौहर का हाथ अपने हाथ में थाम लिया। पर वह बोल कुछ ना सकी।
शाहिद ने जायदा से कहा।
" बेगम मैंने आपकी बेकरारी आपकी आंखों में पढ़ ली है। यही सब देखकर मैंने आमिर साहब को बता दिया है कि हलाला की रस्म पूरी हो चुकी है और जायदा बेगम मेरी हमबिस्तर हो चुकी हैं तीन चार बार इस रस्म को निभाया जा चुका है। अब आप आकर एक बार जायदा बेगम से मिल लीजिए। और उनके मर्जी के मुताबिक मुझे बता दीजिए कि मुझे कब उन्हें तलाक दे देना है उसके बाद आप अपनी इस अमानत को अपने घर ले जा सकते हैं ।"
जायदा अपने बेबस शौहर की आंखों में झांकती हुई मन में ना जाने कितने झंझावात लिए हुए आंखें बंद करके सोच विचारों में डूबी हुई नींद के आगोश में चली गई।
सुबह-सुबह ही आमिर शाहिद के घर आ पहुंचे और शाहिद अपनी बीवी को अंदर छोड़कर आमिर के पास बाहर चले आए और बोले।
"आमिर साहब हलाला की सारी रस्में नियम के हिसाब से पूरी हो गई है । अब मैंने जायदा बेगम की आंखों में आपके लिए बेकरारी पढ़ ली है और आपकी बेकरारी तो मैं काफी पहले से देख ही रहा हूं। अब आप मुझे बता दीजिए की किस दिन मुझे ज्यादा बेगम को तीन बार तलाक बोलना है।"
भारी मन से शाहिद ने आमिर के कंधे पर हाथ रखते हुए धीमी आवाज में कहा।
"मैंने उनके सारे गहने जेवरात और मेरे मेहर के देने के पैसों के रूप में मेरे पास जो भी अब तक की सारी कमाई जमा थी, मैंने पोटली में बांधकर अलग ही रख रखी है ।जिसे मैं जायदा बेगम को बिना बताए उनके सामान में रख दूंगा नहीं तो वह मेहर का पैसा लेगी नहीं ।पर भले ही कुछ दिन का ही सही, पर उसका शौहर होने के नाते यह मेरा भी तो हक बनता है कि मैं अपनी बेगम के लिए कुछ तो करूं।,,
"अरे पैसे देने की कोई बात नहीं है ।जायदा का काफी पैसा अभी हमारे घर में है और मेरे पास भी काफी पैसा है। यदि आपको कुछ और पैसे की जरूरत हो या आप अपना गेराज खरीदने चाहें, तो 40 पचास लाख तक की मदद कर देना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। और क्योंकि आप मेरी खुशी के लिए ही जायदा बेगम को तलाक दे रहे हैं तो इतना तो कुछ करना मेरा भी फर्ज बनता है।"
शाहिद की आंखों में आंसू आ गए और बोला" आमिर भाई जायदा बेगम वह कोहिनूर हीरा है जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती। मैं तो पैसे की बात तो क्या अपनी जान भी जायदा बेगम के लिए सदका कर सकता हूं। ये पैसे आप अपने पास रखिए। हां जिन चन्द दिनों के लिए बेगम मेरे पास रहीं हैं।मैं तो उन्हीं यादों के सहारे अपनी बंकी जिंदगी बसर कर लूंगा । पर बेगम की हर खुशी में ही मेरी खुशी है। "
आकाश की ओर देखते हुए शाहिद ने आगे कहा।
बस आपसे इ एक ही इल्तिजा है, कि अब अल्लाह के वास्ते दोबारा फूल सी कोमल जायदा के ऊपर कोई जुल्म ना कीजिए। और भूलकर भी कभी इस जीवन में उन्हें तलाक देकर हलाला की दोजख में मत डालिएगा।"
" क्योंकि मैंने देखा है कि कैसे वह इस एहसास मात्र से की उन्हें मेरा हमबिस्तर होना पड़ेगा, पहले चार दिनों तक मानसिक रूप से एकदम पागल ही हो गई थी। और उसे इतना सा एहसास कि मैं उसे छू लूंगा, उसके नाजुक शरीर में कपकपी भर देता था, और वह चीखने लगती थी।वह तो डॉक्टर साहब का भला हो जिन्होंने उसे काउंसलिंग करके जीवन की हकीकत के बारे में बताया और आंख बंद करके बेबसी में उसने मुझे अपना शरीर सौप दिया।"
रुंधे गले से शाहिद आगे बोला।
"अब भी वह आपकी ही है इसलिए भारी मन से उससे सहमति ले कर आप जिस दिन कहेंगे मैं उसी दिन उसे तलाक दे दूंगा"
जाहिदा आमिर के आने के बाद से उत्सुकता से भर का दिवा दरवाजे के पीछे खड़ी होकर कान लगाकर उन दोनों की बात सुन रही थी। उसने दरवाजा खटखटा कर शाहिद मियां को आवाज दी दी मियां जरा अंदर तो आइए पहले मुझसे बात कीजिए और उसके बाद दूसरे लोगों से।
शाहिद ने कहा आमिर मियां से कैसा पर्दा वह तो आपके शौहर रहे हैं।
लेकिन अभी मैं आपकी बीवी हूं सिर्फ आपकी ।आप मुझे दूसरों के सामने कैसे बेपर्दा कर सकते हैं।? कहते हुए उसने शाहिद का हाथ पकड़कर झुग्गी के अंदर खींच कर दरवाजा बंद कर दिया।
और आमिर उससे बाद में बात करने का कहकर अपने घर वापस चले गए।
