दीए वाली
दीए वाली
दीवाली के अवसर पर वो नवयुवती बड़े ही जतन से दिए सहेज कर सजा रही थी। साथ ही आते - जाते राहगीरों की ओर बड़ी आस भरी नजरों से तक रही थी। पर उस दिए वाली युवती को कुछ लोग अनदेखा कर निकल रहे थे, कुछ खाली मोलभाव ही कर रहे थे। क्यों कि वास्तव में वे अपने घरों को बिजली की लड़ियों से ही जगमग करने वाले थे। युवती का पांच - छह बरस का बालक उचक कर यह सब देखता फिर मायूस हो बैठ जाता। उसकी मां ने वादा जो किया था उससे कि अच्छी बिक्री हो जाने पर इस दीवाली वह उसे नये कपड़े दिलाएगी। सुबह से सांझ होने को आयी पर पूजा के नाम पर बिके दीपों के अलावा कोई और बिक्री न हुई थी उसकी।
कितनी अजीब बात है ना अपने दीपों से सबके घरों में उजाला करने की चाहत वाले इनके घरों में अंधेरा है
अत्यंत खूबसूरत कलाकृतियां तैयार करने के अद्भुत
हुनर से मालामाल होते हुए भी अपने कद्रदानों के न होने के चलते कितने निर्धन हैं ना ये।
दीपावली का मतलब ही है दीपों की अवली अर्थात दीपों की पंक्तियां। रोशनी से दमकते मिट्टी की सोंधी सुगन्धि से महकते ये नन्हे- नन्हे दीप हमारे सदनों को तो घी - तेल की सुगन्धि से सुवासित करते ही हैं साथ ही इन कलाकारों के घरों को भी उनकी मेहनत के बदले मिले धन से रोशन कर देते हैं। खुशियां भरकर डाल देते हैं उनकी झोली में भी।
पर हमने इन बिजली की लड़ियों का अधिकाधिक प्रयोग कर अपने ही बान्धवों को क्या उनकी खुशियों से महरूम नहीं कर दिया है।