Sapna (Beena) Khandelwal

Inspirational

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Sapna (Beena) Khandelwal

Inspirational

पिंजरे मे कैद पंछी

पिंजरे मे कैद पंछी

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शरद ऋतु की गुनगुनी धूप में मैं बाहर पार्क में बैठकर समाचार-पत्र पढ़ने में व्यस्त थी तभी अनायास ही मेरी नज़र पार्क में रखे एक पिंजरे पर पडी जिसमें दो तोते कैद थे। पिंज़रे के नज़दीक एक नौकर बैठा उन पंछियों की रखवाली कर रहा था। अखबार परे रखकर मैं उन प्यारे-प्यारे तोतों को निहारने लगी। वो मासूम शुक बाहर निकलने के प्रयत्न में पिंजरे के अन्दर थोड़ा ऊपर को उड़ते फिर पिंजरे की छत से लटक-लटक जाते।


अपने कैदखाने के तारों को अपनी नन्ही-नन्ही चोंच से तोड़ने का बराबर प्रयास करते। पर हर बार उनको नाकामयाबी ही हासिल हो रही थी। तत्पश्चात दोनों समीप आकर आपस मे कुछ बतियाते से फिर वो पिंज़रे से बाहर झांककर देखते कि शायद कोई रहमदिल उनका मददगार बन जाये। पिंज़रे मे रखे खाने का कोई ओचित्य न था उनके लिए।वो तो अपना छोटा सा नीड़ बनाकर उसमें अपने बच्चों को सुरक्षित रखकर अपने व उनके लिए खोज-खोजकर भोज़न लाना चाहते थे। खुली हवा में चहकना चाहते थे वो। बाहर आने के प्रयत्न मै अपनी चोंच को अविराम पिंजरे के तारों पर मारे जा रहे थे। सख्त तारों ने उनकी चोंच को कितना जख्मी कर दिया होगा। सच में ये निरीह पंछी अपनी व्यथा का बखान करें भी तो किससे। इन्सान को परम प्रभु ने खुला गगन, धरा, सागर, वन, पर्वत, नदियां दी पर कहीं भी कैद नहीं दी उसको।


खुद तो मानव अन्तरिक्ष के भी पार जाना चाहता है पर इन पंछियों के भाग्य की डोर अपने हाथ मै रखना चाहता है। जब ये पंछी फुदक-फुदक कर शाखा से शाखा पर जाकर फलों में चोंच मारते है। जब ये नीलाम्बर में पंक्ति बनाकर उड़ान भरते है। जब ये हमारी छत की मुंडेर पर आकर बैठते हैं। जब ये पेड़ों के हरे-हरे पल्लवों मै छुप-छुपकर लुका-छिपी का खेल खेलते है तब ऐसा लगता है कि तरुवर भी हर्षित होकर इनकी बातें सुन रहे होते है।

जब इनके कलरव की मधुरता से संगीत के स्वरों का आभास सा होता है तब क्यों नहीं हम उस सुखद मनोरम पल के साक्षी बन जाते है। अब तो हद ही हो गई है सब कुछ मेरी बर्दाश्त के बाहर हो रहा है। कुछ शैतान बालक लकड़ी की पतली डंडी को पिंजरे में डालकर मूक पंछियों को सताने लगे हैं। बेचारे पंछी इधर-उधर हो खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चे उनकी मनोदशा से बिल्कुल अपरिचित है उनको तो मानो एक खेल मिल गया है।


तभी मेरे जोर से डांटने पर वे बच्चे वापस खेलने चले गए। केवल मूक दर्शक बने रहकर इन परिंदों को छटपटाते देखते रहना मेरे लिए बिल्कुल असंभव हो रहा था। येन केन प्रकारेण में इन पंछियों को आजाद कर देना चाहती थी तभी अचानक से वो नौकर वहां से उठा और उन बालको के संग खेलने लगा।

बस एक पल भी बेकार गंवाए बगैर मैंने चुपके से जाकर पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। पंछी चहकते हुए दूर गगन मै उड़ गये। उसके बाद बहुत हंगामा हुआ जिसका मुझे पूरा अंदेशा था। मालिक तक तोतों के उड़ने की खबर पहुंच चुकी थी। नौकर को खूब डांटा-फटकारा जा रहा था। पिंजरा खोलने वाले की तलाश की जा रही थी। पूरी तरह से झगड़े का माहौल बन चुका था, पर मैं अत्यधिक खुश थी, मेरे दिल को उस दिन इतना सुकून मिला था कि जिसका बयान शब्दों में किया ही नहीं जा सकता। दूसरो को प्रसन्न देखने का अनुभव खुद किया जाये, तभी उस ख़ुशी का एहसास होता है |


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