पहले प्यार का वो रंग
पहले प्यार का वो रंग
जब पहला प्यार किसी से होता है तो सच में दीवानगी की कोई हद ही नहीं होती।
हां, मेरा रोम रोम भी पहले प्यार के अद्भुत अहसास से परिपूर्ण हो चुका है।
दरअसल हुआ यूं कि ग्रेजुएशन के लिए मैं कॉलेज में दाखिला लेने वाली थी। कि एक दिन अचानक रेडियो पर मुझे शास्त्रीय गायन के स्वर सुनाई दिए। उस गायन का वो उतार चढ़ाव मेरे मन को ऐसा मंत्रमुग्ध कर गया कि मैं स्वयं को भी विस्मृत कर बैठी। उसके सम्मोहन में ऐसी डूबी कि मेरे दिल के सभी तार झंकृत हो उठे। उन स्वर लहरियों ने मेरे तन मन में अपने दिव्य प्रेम की लौ प्रज्वलित कर दी थी।
मुझे अहसास हो चुका था कि कोई ऐसा मेरे जीवन में प्रवेश कर गया है जो मुझे अपने सच्चे प्यार के आगोश में लेना चाहता है। अपने इस प्यार को जल्द से जल्द पाने के लिए अब मैं मचल उठी थी। मेरा पहला प्यार संगीत के स्वरों का वह संसार ही तो बन चुका था। पर मेरे प्रेम तक पहुंचने का मार्ग तो असंख्य कंटकों भरा था। मैं तो शास्त्रीय गायन की सरगम तक से ही अनजान थी। हां, तबला वादन में अवश्य ही निपुणता प्राप्त थी मुझे। पर शास्त्रीय गायन के प्रति मेरी ऐसी दीवानगी देख मेरे पापा मेरे साथ हो लिए। उन्हीं के अथक प्रयासों से गायन मुझे एक विषय के रूप में मिल गया।
कक्षा के प्रथम दिवस जब सुरों की पावन गंगा बही तो मैं ठगी सी वहां बैठी रही। यहां मौजूद छात्राओं के कंठ में तो काफी उच्च स्तरीय संगीत बसता था जो कि उनके कई वर्षों के कठिन रियाज का परिणाम था। पर मुझे तो किसी राग का नाम तक ज्ञात न था।
मेरी संगीत शिक्षिका ने मुझे काफी समझाया कि इसकी प्रैक्टिकल व लिखित परीक्षा को मैं मजाक समझने की भूल कदापि ना करूं। मेरा पूरा वर्ष भी बर्बाद हो सकता था। पर मैंने अपनी जिद व जुनून के आगे उनकी एक न सुनी। ततपश्चात मेरे पापा ने मेरे लिए एक अत्यंत महंगे संगीत ट्यूटर को नियुक्त कर दिया। जो कि बेहद काबिल भी थे।
अपने मां पापा के साथ के चलते मेरा हौसला अब बुलंदियों पर था। मेरे गुरुजी मेरी लगन व जज्बे से काफी प्रभावित थे। वे धैर्य पूर्वक मुझे गायन सिखा रहे थे। अत्यंत प्रसन्न हो वो मुझसे कहते बेटा, मां शारदे का साक्षात वास है तुम्हारे कंठ में।
उन्हीं दिनों एक इंटर कॉलेज कंपटीशन में मुझे प्रथम पुरस्कार स्वरूप मां सरस्वती जी की बेहद खूबसूरत प्रतिमा मिली। उसे पाकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मां साक्षात मेरी संगीत आराधना को अपना आशीर्वाद प्रदान करने आईं हैं।
अब जल्द ही मैंने हारमोनियम पर आरोह अवरोह से लेकर संपूर्ण राग निकालना भी सीख लिया था। ध्रुपद , धमार , तराना मेरी आत्मा में बसने लगे थे।विभिन्न तान, आलाप मेरे जीवन के अभिन्न अंग बन चुके थे। दिन रात मेरा रियाज चलता रहता था। अब काफी हद तक मैं गायन में पारंगत हो चुकी थी। मेरे पहले प्यार ने मुझे अपने रंग में पूरी तरह से रंग लिया था। अंततः जब मेरा परीक्षा परिणाम आया तो मैं ग्रेजुएशन में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी।
मेरे इस प्यार में भी वो मुश्किलें आई जिन्होंने मेरी राह को कतई आसान न होने दिया। ग्रेजुएशन के द्वितीय वर्ष में मेरे पापा का तबादला नए शहर में हो गया। यहां पर बदली हुई संगीत शिक्षिका ने मेरे इस प्रेम की राह में काफी रोड़े अटका दिये। वो मुझसे वर्ष भर बुरी तरह चिढ़ी रहीं।
एक बार फिर साथ दिया मेरे पापा ने। उन्होंने मेरे पुराने गुरु जी को मेरे लिए यहां तक बुलाया। जो कि हफ्ते में तीन से चार बार आकर मुझे गायन सिखाते रहे।
फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर न देखा और अपनी संपूर्ण शिक्षा उच्च श्रेणियों में प्राप्त की। और यह सब संभव हुआ मेरे इसी पहले प्यार की बदौलत ही। क्योंकि इसी ने तो मुझे कठिन से कठिन डगर पर चलकर मंजिल हासिल करने का मंत्र जो दे दिया था।