धूप के वो टूटते हिस्से
धूप के वो टूटते हिस्से
जाने क्यों आटा गुंधते समय चूडियों की ख़नखनाहट मन में आज उमंग नहीं जगा रही थी निमिषा के, बल्कि दिल के किसी एक कोने में डर बैठा रही थी।आँखों की नमी जाने इस डर की देन थी या अभी काटे हुए प्याज की। खिलखिलाते घर में अजीब सी मायूसी छायी हुई थी, लबों पे हर पहर सिर्फ ईश्वर का नाम और सब कुछ कुशल रखने की प्रार्थना।
एक तरफ महामारी का कहर, सरकार की इस विपदा से निपटने की कोशिशें और कुछ लोगों को इस कोशिश को सफल न होने देने की साज़िशें। दिन रात न्यूज चैनल पर इस महामारी के बताते हुए आंकडे।उफ्फ, इन खबरों से बचने के लिए फेसबुक लॉगिन किया तो चैलेंजस
की बाढ़ जो कभी निमिषा को बहुत खुशी दिया करती थी पर आजकल तो मन का सुकून छीन गया है।
दोस्तों के घर पर बने हुए पकवान की फोटोज़, इस विपदा से निकलने के लिए सब कोई न कोई सकरात्मक तरीका अपनाए हुए कि कोई डर हावी न हो जाए, फिर अचानक मेरे मन की सकारात्मकता क्यों खोती जा रही है, आईने के सामने बाल तक सुलझाना क्यों भारी लगने लगा है मुझे? इतनी भावुक तो मैं कभी नहीं थी फिर आज इन समोसे और पानीपुरी की तस्वीरें देखकर आँखों से ये बूंदे कैसे छलक पड़ी।कुछ याद जो आ गया..
"अरे श्रीमती जी ये गोलगप्पे, समोसे, रसगुल्ले आज सब एक साथ क्या इरादा है! अभी 5-6 मरीज़ों को सख्त हिदायत देकर आया हूँ की जिंदगी बढ़ानी है तो तली हुई चीजों का सेवन बंद करें।और यहाँ....
उफ्फ आप भी न आज आपका जन्मदिन है भूल गए और ये सेहत - वेहत की डॉक्टरी अपनी क्लिनिक में झाडीयेगा यहाँ तो मेरी होम मिनिस्ट्री ही चलेगी समझे।"
कहते हुए उनके मुँह में रसगुल्ले भर दिए थे मैंने,
सुनो इस मिठाई में रस ज्यादा नहीं है एक हफ्ते की छुट्टी ली है अब रस भरी हुई मिठाइयाँ खिलाने को तैयार रहो मेरी जान, बाहों में जकड़ कर छेड़ा था उन्होंने मुझे।कितना खूबसूरत समय था जाने किसकी नजर लग गयी छुट्टियां कैंसिल हो गईं और निकल पड़े अपनी जान हथेली पर रखकर सबकी सुरक्षा के लिए अपने देश की सुरक्षा के लिए बस आज इस काम के लिए खाकी वर्दी के साथ साथ सफेद वर्दी पर भी जिम्मेदारी थी जो।
मोबाइल की रिंगटोन बजी और निमिषा भी वर्तमान में लौटी
जी मम्मी जी सब ठीक है यहाँ आप चिंता मत कीजिए हाँ ये भी ठीक होंगे अभी तो दो दिन से बात नहीं हुई है मेरी, जी मम्मी ज़ी जब बात होगी कह दूंगी उनसे की सबके साथ अपना भी ध्यान रखें।जी मम्मी ठीक है।
फोन रखा तो 5 बजाती हुई घड़ी पर नजर जा पडी आज फिर यूँ ही लंच स्किप हो गया था भूख थी भी किसे, पर पेट में पल रही नन्ही जान का भी तो ध्यान रखना है।
बालकनी में एक प्लेट में कुछ सूखे मेवे और चाय लेकर बैठी तो नजरें सूर्यास्त पर टिक गई।मोबाइल की रिंगटोन फिर बजी|
"हाँ जान तुम ठीक हो न, सुनो न्यूज देखकर परेशान मत होना हाँ थोड़ी अफरा - तफरी की है कुछ उपद्रवियों ने पर तुम घबराना मत मुझे लेकर कोई डर मत रखना मन में अच्छा अब रखता हूँ ड्यूटी पे जा रहा और सुनो अपना और मेरी आने वाली नन्ही जान का भी ध्यान रखना।"
और निमिषा बेबस सूर्यास्त होते हुए सूरज की बिखरती धूप को देख रही थी जो टूट टूट कर बिखरते हुए अभी भी रोशनी फैलाने में लगे हुए थे।