Devshree Goyal

Tragedy

5.0  

Devshree Goyal

Tragedy

धर्मान्तरण

धर्मान्तरण

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आज सुबह नींद खुलते ही एक बुरे समाचार सुनने में आया। हमारे परिचित शंभु नाथ जी का देहांत हो गया। 75 /76साल के वयोवृद्ध शम्भु नाथ जी बड़े ही शान्त सरल स्वभाव के थे। उनकी पत्नी का देहांत कुछ साल पूर्व ही हुआ था। उनके बेटे कुशल ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया था। इसलिए उन्होंने अपने बेटे से रिश्ता ही तोड़ लिया था। और लगभग एकाकी जीवन बिता रहे थे। मैंने जल्दी से अपने पति को जगाया, और सुबह2 यह खबर देते हुए बोली ""आपको तो काठी में जाना पड़ेगा। शम्भू नाथ जी अंकल पापा के इतने पुराने परिचित है। "पति ने भी हामी भरते हुए कहा उनके बेटे को तो खबर दे दिए होंगे वो भी अपनी पत्नी बच्चों के साथ आ गया होगा। तुम थोड़ा बच्चों के लिए नाश्ता वगैरह बना देना। "जी !कहते हुए मैं भी जाने की तैयारी करने लगी। सोचा थोड़ा देर से जाती हूँ,अभी तो काठी बनने में, रिश्तेदारों के आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही। हम महिलाएं अपने काम का समय भी सुख दुःख के आधार पर बाँट कर कार्य कर ही लेती हैं।

मैं जल्द ही अपना काम निपटा कर शम्भू अंकल के घर की ओर निकल पड़ी।

उनके घर के आगे लोगों की भीड़ तो बहुत थी। पर अब तक उनकी अंतिम यात्रा की कोई तैयारी नही हुई थी। मुझे बड़ा अजीब लगा। इतनी देर हो गयी कैसे किसी प्रकार की कोई तैयारी नही हुई है ? सब आपस में फुसफुसा कर बातें कर रहे थे।

मैं जल्दी से अन्दर पहुंची। आमतौर पर जैसे मृतक के घर का माहौल होता है उससे अलग लग रहा था उनके घर का माहौल । मैं किसी से कुछ पूछती इससे पूर्व ही कुछ गणमान्य नागरिक एक पंडित जी के साथ अन्दर आये और उनके बेटे कुशल से कहने लगे। "देखो भई तुमने अब अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है, अपना नाम सरनेम सब बदल लिया है। अब तुम ईसाई धर्म को मानने लगें हो इस लिए हिन्दू धर्म के अनुसार तुम्हारे पिता का अंतिम संस्कार नही हो सकता। तुम इनका ईसाई धर्म के अनुसार क्रिया कर्म करो। "तभी भीड़ को चीरते हुए एक पादरी अंदर आये और जोर से बोल्रे"

"ऐसा नहीं हो सकता। जेम्स( कुशल का नाम अब जेम्स था) का फ़ादर हिन्दू है। उन्होंने हमारा धर्म नही अपनाया है। अगर हम इनका अंतिम संस्कार करेंगे तो इनको दफ़नाएँगे, जलाएंगे नहीं। "और उनके ऐसा कहते ही सब तरफ से विरोधी स्वर एक दूसरे के लिए जोर 2 से उठने लगाउनके बेटे कुशल की हालत बहुत बुरी हो गयी थी। वे किसी को कुछ नहीं कह पा रहे थे। । बाकियों का तो पता नहीं मैं भी बहुत ही असमंजस में पड़ी सोच रही थी कि "हे भगवान जो व्यक्ति मिट्टी हो चुका है, उसकी कैसी मिट्टी पलीद हो रही है। ""मेरे पति वही भीड़ में खड़े होकर भीड़ का ही हिस्सा बने चुप थे। ऐसी जगह कोई आगे आकर बोलता भी तो नहीं। दुखद स्थिति ये थी कि सुबह से दोपहर ढलने को होने के बाद भी उनका दाह संस्कार नही हो सका था। लोग एक- एक कर जाने लगे थे। मैं भी अपने पति को इशारो में बता कर निकल गयी।

नहा कर चाय पीने बैठी मैं बस एक ही बात सोच रही थी कि जब इंसान जीवित रहता है तो उसकी जाति के लिए बवाल सवाल समझ में आता है किंतु मृत देह की जाति को लेकर ऐसे विवाद करना किसी समझ दारी है। धाम के सात बजे गए थे। मेरे पति अब तक नही आये थे । मैं बरामदे में निकल कर उनको फोन लगाने ही वाली थी कि वो आ गए।

मैंने उनको चाय देते2 पूछा क्या हुआ। उन्होंने बताया "उनके बेटे को उधर वाले अपने पिता को दाह करने ही नहीं दिए,और हिन्दू पण्डित चले गए। इस लिए हम मोहल्ले के2 /4 लोग उनका अंतिम संस्कार कर दिए। श्मशान में कोई नही गए। शंभू नाथ जी पहले भी अकेले थे, मरने के बाद भी अकेले गए। मैंने एक गहरी सांस भरी और ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए अंदर चली गई मन में ढेरों सवाल लिए।  


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