सिंदूर वरण
सिंदूर वरण
अपराजिता अपने नाम की ही तरह अत्यंत खूबसूरत युवती थी...! मध्यम वर्ग की अपने घर की सबसे बड़ी सन्तान थी। उसके घर में एक छोटी बहन सौंदर्या थी। सौंदर्या ने 2 साल पूर्व अपनी मर्जी से प्रेमविवाह कर लिया था। परंतु एक दुखद हादसे में उसकी पति की मृत्यु हो गयी थी, इस कारण सौंदर्या के ससुराल वाले उसे अपने घर से निकाल दिया था थे। देखा जाये तो अपराजिता के घर में दो -दो विधवा स्त्री थे। अपराजिता की माता भी विधवा थी। तीनों का भरण पोषण उसी अकेली जान को करना पड़ता था। इसी बीच एक दिन अपराजिता को उसकी माँ ने बताया कि कुछ लोग उसे देखने आएँगे। वो एकदम से चिंतित हो उठी और बोली""माँ मैं कैसे विवाह कर सकती हूं?? तुमको और सौंदर्या को कौन देखेगा??? माँ भी इस विराट प्रश्न को जानती थी। फिर प्रकट में बोली "ऊपर वाला कुछ न कुछ ठीक करेगा। पेट दिया है तो अन्न भी देगा। तू चिंता मत कर बेटा।" वो अनमनी सी काम में लग गयी। जल्द ही उसको देखने वाले घर आये। उसे कौन नापसन्द करता भला?? रूप, गुण, व्यवहार सब में वो बेहद अच्छी थी। बात पक्की हो गयी। अपरा ने धीरे से अपनी माँ को कहा "मैं अकेले में अपने होने वाले पति से कुछ बात करना चाहती हूँ।" माँ ने उसकी बात उन लोगों तक पहुँचाई। एकांत होते ही अपराजिता के होने वाले पति अभय ने पूछा "जी बताइये क्या बात है??" अपराजिता ने कहा "मैं समझ नहीं पा रही हूं कि ये बात आपसे कैसे कहूँ?? दरअसल मेरे घर में मेरी माँ और मेरी छोटी बहन दोनों विधवा हैं" "जी वो तो मैं भी जानता हूँ" अभय ने कहा "तो ?"
"तो अगर आप मेरा सिंदूर वरण करना चाहते हैं तो आपको दो सिंदूर की व्यवस्था और करने का वचन देना पड़ेगा। मेरी छोटी बहन का विवाह और थोड़ा रुक कर उसने अपनी नज़रें झुकाते हुए कहा मेरी माँ के लिए भी कोई साथ ढूंढ कर देना होगा। अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो मैं विवाह करूँगी अन्यथा नहीं कर पाऊंगी।" एक सांस में उसने अपनी बात पूरी की। धड़कते दिल से अब वो अपने होने वाले पति को देखने लगी कि "पता नहीं क्या प्रतिक्रिया होगी??"
अभय कुछ देर बाद कमरे से बिना कुछ कहे चले गए।
अपराजिता समझ गयी कि उसकी बात कोई नहीं समझेगा, न ही मानेगा। उसकी छोटी बहन के लिए दूसरा पति ढूंढने की बात तो समझ में भी आएगा। अपनी होने वाली सास के लिए कौन सा दामाद ससुर ढूंढ कर लाएगा भला?? एक विचित्र सी हँसी अपरा के होठों पर तैर गयी।
एक माह तक उधर से कोई खबर नहीं आई। और अपराजिता तो लगभग भूल ही चुकी थी।
अचानक एक दिन सुबह अभय कुछ लोगो के साथ घर आये। अपराजिता सबको देख थोड़ा अचंभित हुई। आने का प्रयोजन पूछने से पहले ही अभय ने अपनी होने वाली सास का पैर छूते हुए कहा "उस दिन इन्होंने मुझे इनका पति बनने से पहले ही बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है। अब अपना विवाह मैं बाद में करूँगा। पहले किसी और को यहां से विदा करना होगा।" किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन अपराजिता के मुख में उसके माथे में लगने वाले सिंदूर के रंग की लालिमा स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
