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Devshree Goyal

Drama

3  

Devshree Goyal

Drama

उजला मन

उजला मन

5 mins
375

सियालदाह रेलवे स्टेशन में अपनी पत्नी चारु के साथ मनिमय बाबू उस सीमेंट की बनी चेयर में बैठे चुपचाप सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहे थे। कुछ साल पूर्व एक रात वो ऐसे ही अपनी पत्नी चारु का हाथ कस कर पकड़े बैठे थे। उस रात उनके मन में थी आशंका, ग्लानि, और एक अनजाना सामाजिक अपमान का भय। जबकि आज वे एक असीम मानसिक शांति से पूर्ण परिपक्व पारिवारिक कर्ता धर्ता एवं एक सफल दम्पति के रूप में प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। और ये सब सम्भव हुआ था चारु की निष्ठा, समर्पण और त्याग के कारण...!

बरसों पहले की पूरी कहानी उनकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति चलने लगे...!

मनिमय बाबू कलकत्ता के जमींदार घराने के सबसे छोटे बेटे थे। यूँ तो उनके सभी भाई बहन बहुत सुंदर थे। किन्तु मनिमय बाबू की सुंदरता के चर्चे पूरे कलकत्ता में थी। गौर रंग घूंघराले काले बल बड़ी बड़ी आंखे किसी राजपुत्र जैसे उनका व्यक्तित्व। उनकी माँ अन्नपूर्णा देवी तो उन्हें देख2 जैसे फूली न समाती थी। जब वे वयस्क हो रहे थे तो अक्सर भाभियां मजाक में

कहती थी कि मनिमय की दुल्हन मणि के समान चमकती हुई आनी चाहिए वरना बेचारी ...और बाकि कीबात मन में रख कर वे हंसते हुए चली जाती थीं...!मां अन्नपूर्णा देवी भी अपने पुत्र के लिए एक अत्यन्त सुंदर कन्या की तलाश में थीं। उनका परिवार बेहद सभ्रांत धनी और पढ़ा लिखा परिवार था। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। जमींदारी के किसी काम में एक दिन अपने पिता साथके एक गांव गए वहां उनका सामना चारुलता से हुआ। चारु के चेहरे में एक अजीब सी कशिश थी। पर उसका रंग बेहद काला था। पर पहली ही नजर में वे उसे अपना दिल दे बैठे। चारु एक बेहद गुणवती कन्या थी। उसकी सरलता चातुर्य, सेवा भाव ने उनके मन को छू लिया । और कुछ दिनों बाद बिना किसी को बताए उससे विवाह का वादा कर दिया। लेकिन घर आने के बाद मनिमय को चिंता सताने लगी कि वो उसे घर कैसे ले जायेगे।

उसके काले रंग के आगे उसकी विशेषता किसी को कैसे नजर आएगी???उस दिन पूरी रात उन्होंने टहलते हुए काट दी। क्या करें किससे कहें ?

फिर कुछ सोच कर दूसरे दिन सीधे चारु से विवाह कर लिया। और वापस अपने घर की ओर निकल पड़े। और इसी सियालदाह स्टेशन में बैठे थे। चारु ने उनकी चुप्पी देख कर पूछा था। ""क्या आप मेरे काले रंग को लेकर परेशान हैं ?

"मणि बाबू चुप रह गए बोल कुछ नहीं पाए। चारु ने धीरे से उनसे कहा""सुनिए मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इतने बड़े घर की बहू बनूंगी। फिर ये जो हमारे बीच रंग का विभेद है न इसे लेकर भी आप ज्यादा न सोचिये। "आप एक बार मा बाबा के सामने मुझे खड़ा कर दो बाकि मैं सम्भाल लूंगी। ""पता नहीं चारु की बात में क्या जादू था। वे थोड़े आश्वत हुए। । नव नवेली वधू को लेकर जब वे घर पहुंचे।

एकाएक घर में कोहराम मच गया। अन्नपूर्णा अपनी काली कलूटी बहु को देख कर गश खाकर गिर पड़ी। और इस बीच एक और कांड हुआ मनिमय के पिता को पक्षघात हो गया। एक ही रात में तो सारी दुनिया ही बदल गई।

दूसरी सुबह मनिमय ने देखा चारु अपनी सास के पैरों में पड़कर कुछ कह रही थी। बिस्तर में पड़ी उसकी मां ने मुंह फेरते हुए पता नहीं क्या कहा??लेकिन एक माह तक बिना आराम किये चारु अपनी सास और ससुर की ऐसी सेवा की कि जितनी सुंदर बड़े घर की बहुएं थी,वे मन ही मन कुढ़ सी गयी। मनिमय के पिता की बीमारी दवाई से कम देखभाल से ज्यादा ठीक हुई। डॉ साहब ने कहा इनकी सेवा इतनी अच्छी हुई कि कोई ट्रेंड नर्स भी नही कर सकती। किन्तु अभी तक मां ने उसे बहु के रूप में स्वीकारा ही नहीं था। । मां को एक असाध्य रोग हो गया था। उनका बिस्तर से उठना बैठना मुश्किल हो गया था। वे बिस्तर में ही शौच कर देती थी। बिना किसी प्रकार के हिचक के चारु अपनी सास की सारी सेवा करती। उन्हें नहलाती धुलाती, कपड़े बदलती। दिन बीत रहे थे...साल भर होने जा रहा था।

मनिमय शादी के बाद झेंप शर्म और डर के कारण मां के सामने नहीं पड़ते थे। न ही सबके सामने चारु से बात करते थे। चारु बड़े घर की बहू जरूर बन गयी थी । पर मान सम्मान उसे मिलना बाकि था। अन्नपूर्णा देवी का मन अब अपनी सुंदर बहुओं और इस काली चारु स के बीच अंतर स्पष्ट देखने लगी थी। उनका मन बदलने लगा था। चारु के लावण्य को देखने लगी थी। और एक दिन उन्होंने घर की पूरी जिम्मेदारी चारु को सौंप दी। बड़ी बहुओं ने बहुत हल्ला मचाया। बेटे भी अड़ गये ,अलग हो गए। पर चारु ने मनिमय का हाथ और सास ससुर का साथ नही छोड़ा..!.

पिछले13 दिन पूर्व ही मां का देहावसान हुआ था। मरने से पहले मां ने अपने बेटे मणि को बुलाकर एक अजीब सी बात कही ""बेटा मेरे मरने के बाद मेरा सारा क्रिया कर्म चारु के हाथों करवाना। इसी में मेरी सद्गति होगी तुलसी दल गंगाजल इसके ही हाथों से पिलाना।

आज मां की सारी इच्छा पूर्ण करके उसी प्लेटफार्म पर बैठ कर चारु अपने पति मनिमय के साथ घर में आये मेहमानों को विदा करने आये थे। सन्तुष्ट मणि बाबू के काँधे में टिकी चारु का उजला मन उसके तन से कहीं ज्यादा दप दप कर दमक रहा था।


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