ईमानदार
ईमानदार
रधुनाथ जैसे ही अपना ऑटो बन्द करके चाबी इग्निशन से निकाल रहा था कि पीछे सीट पर रखी उसकी नजर एक बैग पर पड़ी। उसने हड़बड़ा कर बैग उठाया, और खोलकर देखा,वह नोटों से भरी एक बैग थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? तभी उसकी पत्नी की आवाज ने उसे चौंकाया "आज यहीं खड़े रहोगे क्या?" "आँ !!रघु पलटा !पत्नी ने फिर "पूछा क्या हुआ ?ऐसे क्यों खड़े हो? और इस बैग में क्या है जी?" रघु हकलाते हुए बोला"कक ..कुछ नहीं।" कहते हुए वह कमरे में चला गया थोड़ी देर बाद उसकी पत्नी सीमा कमरे में दाखिल हुई और धीरे से उसने पूछा "क्यों जी कोई इंतजाम हुआ क्या?" रघु ने अपनी पत्नी सीमा से कहा "कहां से इंतजाम होगा ?" "कौन मुझे शादी के लिए पैसे देगा ??"सवारियां भी आजकल कम हो गई हैं !सभी लोगों के पास आजकल अपनी गाड़ियां हो गई हैं ।ऑटो में दिन भर जो मिलता है वह सारी कमाई तो मैं तुम्हारे ही हाथ ला कर के दे देता हूं कोई भी ऐसा ग्राहक नहीं है जो रोज मेरी गाड़ी में बैठे ताकि कुछ एडवांस मांग सकूं।पिछले एक्सीडेंट के बाद से स्कूल भेजने वाले बच्चों के मां-बाप भी अब मुझे छोड़ चुके हैं राम ही मालिक है न जाने बिटिया की शादी कैसे होगी ,चलो छोड़ो भूख लगी है" कुछ बनाई हो क्या?" "हां !तुम हाथ पैर धो लो मैं खाना लगाती हूं!",ऐसा कहते हुये सीमा कमरे से बाहर चली गई। रघु ने जल्दी से कमरा बंद किया और उसने एक बार इस बैग को फिर से खोलकर देखा ।ढेरों रुपए थे कुछ नहीं तो 15 लाख तो होंगे ही।" किसके होंगे ?"" वह मन ही मन बुदबुदा या ।वह अपनी टूटी चारपाई में बैठकर पूरे दिन उसकी गाड़ी में बैठे हुए ग्राहकों को मन ही मन याद करने लगा ,कि अचानक उसे एक प्रौढ़ सा ,थका हुआ सा दिखने वाला व्यक्ति याद आया जो बैंक के सामने से पसीने से लथपथ ऑटो के इंतजार में खड़ा था। उसने मुझे हाथ दिखाया और कहा "भाई विजय नगर चलोगे क्या??" मैंने कहां " हां सर! चलिये बैठिए!" और उसके बैठने के बाद मैंने साइड मिरर में देखा था कि वह मुड़कर कुछ रख रहा था गाड़ी में और भी सवारियां थी, शायद उसको उसके बैग को रखने की जगह नहीं बन रही थी "चले सर? मेरे पूछने पर" हा! "!उसने कहा और विजय नगर के नजदीक ही एक गली में उतर भी गया ।बाकी सवारियों को छोड़ते हुए मैं सारा दिन यहां वहां भटक कर अभी -अभी घर पहुंचा हूं ।पर मुझे याद है कि वह किसी से फोन में बात कर रहा था कि "हां ! तुम लोग तैयार रहो मैं आ रहा हूं मेरे आते ही तुम लोग शॉपिंग के लिए निकल जाना! "समय बिल्कुल नहीं है !"पता नहीं उसने क्या क्या बातें की ?इतना निश्चित है कि वह अपने परिवार में किसी से बात कर रहा था। उसने पुनः एक बार बैग को खोला तो रघु को एक चिट मिली। उस चिट में गृहस्थी के सारे सामानों के नाम थे ।जैसे सोफा, पलंग, डाइनिंग ,ड्रेसिंग टेबल ,वाशिंग मशीन, सिलाई मशीन वगैरा और भी बहुत सी चीजें बर्तन गहने कपड़े आदि। वह समझ गया यह शादी में देने वाले दहेज की लिस्ट है ।इसका मतलब उसके घर किसी की शादी थी ।बेटी की ,बहन की या और किसी कीे। तो उसने यह रुपया बैंक से शादी के लिए निकाला होगा। रघु मन ही मन बड़बड़ा रहा था।उसकी हालत देखकर के यह तो पता लगाना मुश्किल नहीं था कि वह कोई बहुत धनाढ्य व्यक्ति नहीं था ।दरवाजे की खटखटाहट ने उसे फिर से चौंकाया। पत्नी चिल्ला रही थी "कर क्या रहे हो ,खाना नहीं खाओगे ?" "हां आ रहा हूं!!" ऐसा कहते हुए बैग को उसने किसी माकूल जगह छुपा दिया ।और बाहर निकलकर खाना खाने चला गया ।थोड़ी देर बाद वापस अपने कमरे में आकर सो गया । उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि इस बैग को वह उसके मालिक तक पहुंचा देगा।
सुबह बहुत जल्दी बाकी दिनों की अपेक्षा बहुत पहले ऑटो लेकर चला गया। जहां पर रघु ने उस व्यक्ति को उतारा था ।क्योंकि रघु के पास कोई पहचान नहीं थी। नहीं कुछ और नंबर था बस उसने घर से निकलने से पहले एक बार अपनी बेटी का चेहरा देखा था । जो अपनी उम्र से बहुत बड़ी लग रही थी। उदासी भरा चेहरा जो पिता से यह नही कह सकती थीं कि पिताजी मेरी शादी करवा दो ।और अगले ही पल उस आदमी का चेहरा उसकी आंखों के सामने झूल गया कि "पता नहीं आज वह क्या कर रहा होगा ??कैसे छटपटा रहा होगा ?जब उसे पता चला होगा कि उसने एक ऑटो में अपनी रुपयों से भरी बैग उसकी बेटी की या बहन की शादी का था कहीं छोड़ दिया है ।उसे लगा उस आदमी के चेहरे में रघु है और वह उस गली तक पहुंच गया ।सुबह-सुबह अभी दुकाने खुली नहीं थी। पर वह गली को पहचान गया कुछ दूर, कुछ लोग भीड़ में आपस में बातें कर रहे थे।रघु उनकी बातें सुनने लगा । "दीनदयाल जी बड़े भले आदमी थे ,पर किस्मत ने उनके साथ बड़ा ही खेल खेला। उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए घर बेच दिया था।और कल बैंक से निकल कर पता नहीं किस ऑटो में बैठ कर आए।अपना रुपयों से भरा बैग वहीं छोड़ दिया।घर में जैसे ही याद आया तो मारे घबराहट के उनको दिल का दौरा ही पड़ गया। रघु समझ गया कि वह सही जगह पहुंच गया है ।उसकी आंख से झर -झर आंसू बहने लगे।वह तत्काल आगे बढ़ कर उस आदमी के घर को ढूंढने प्रयत्न करने लगा। किसी अज्ञात आशंका से रघु का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। अचानक एक घर से समवेत स्वर में रोने की आवाज सुनकर वह रघु उस घर में प्रवेश कर गया।और सामने का जो दृश्य था उसने देख कर उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी।सामने एक शव रखा था और देखते ही वह पहचान गया कि जो व्यक्ति कल उसकी गाड़ी में बैठ कर आया था यह वही व्यक्ति था। "हे भगवान"! कहकर रघु वहीं धम्म से बैठ गया।एक महिला जोर जोर से रो रही थी।सम्भवतः वह उनकी पत्नी होगी। रघु साहस जुटाते हुए खड़ा हुआ, और बैग को हाथों में लेकर उस महिला के सामने जा खड़ा हुआ।"बहनजी!!सुनिए जरा कुछ देर के लिए कृपया रोना बन्द करके मेरी बात सुन ले।"क्या सुनु? मेरा तो"""आगे की बात पूरा करने से पहले उसने वह बैग रघु के हाथों में देखा,तो वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई।"ये बैग?" "जी बहनजी कल मेरे ओटो में छोड़ कर आ गए थे।इसमें बहुत पैसा था इसलिए रात को ढूंढने नही निकला।आज सुबह सुबह ही इस बैग के मालिक को ढूढने निकला पर" बैग मालिक की पत्नी चीख कर अपने पति के शव से लिपट कर रोने लगी।"देखो मिल गया बैग । आप कह रहे थे न। कि अगर हमारी क़िस्मत की चीज होगी तो मिल जाएगी। उठिए ...उठिए।"रघु अधिक देर रुक न सका इधर जैसे ही लोगों को रघु के बारे में पता चला सब रघु की तारीफ़ करने लगे।रघु वहाँ से थोड़ी देर रुक कर घर चला गया।आज उसने ग्राहकी शुरू नहीं की थी। घर पहुंचते ही पत्नी ने पूछा "अरे आप सुबह से कहां चले गए थे।?" रघु ने गहरी सांस लेते हुए कहा कि "थोड़ा खुद को परखने चला गया था।"और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया।।
