Devshree Goyal

Others

5.0  

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पाप

पाप

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" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"


उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।


जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?


" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।


" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।


" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।


" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"


" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।


" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।


जानकी ने उसे कनखियों से देखा संदली का चेहरा थोड़ा सा उतर गया था...!""कुछ तो हुआ है संदली के साथ!पर क्या""??जानकी ने मन ही मन सोचा।""यकायक पूछना भी तो ठीक नहीं है।जानकी ने धीरे से उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा "अच्छा बताओ तो तुम्हारा हाथ देखूं??"संदली ने अचानक मुस्कुराते हुए देखा और जानकी से पूछा ""आप हाथ भी देखना जानती हैं??इन सब में मुझे तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं है। फिर भी बताइये क्या है मेरे भाग्य में!"इतना कहते हुए वह थोड़ा और पास खिसक गई।दरअसल अनुभवी जानकी को कोई हाथ देखने नहीं आता था वो तो कुछ और ही टटोल रही थी।जानकी एक कुशल दाई मां थी,जो नब्ज देख कर ही मरीज का बीमारी पकड़ लेती थी।और जो शंका उन्हें हो रही थी वो????

जानकी देवी को जो देखना परखना था,उनकी आंखों ने पहले ही परख लिया था बची खुची शंका भी नब्ज देख कर खत्म हो गई थी।संदली की देह में कोई और देह आकार ले रहा था...।जानकी देवी के कान झनझना उठे..हे ईश्वर!!संदली के साथ क्या हुआ होगा ??बच्चे के भविष्य के बारे में चिंतित है क्या??पता नहीं जानकी क्या क्या सोचने लगे गयी। "ओ आंटी कुछ बोलोगी भी या यूं ही मेरा हाथ लिए बैठे रहोगी!" संदली ने उन्हें टोका तो वे चौक कर सम्भल गयी।"क..कुछ नही बेटा बस यूं ही नया नया सीख रही हूं इसलिए ठीक- ठीक बता नही पा रही हूं।पर एक बात बताओ तुम्हारी शादी- वादी की कोई बात चल रही है क्या?" "आँ शादी?संदली एकदम से हाथ झटक कर खड़ी हो गई।" "क्या हुआ?"

जानकी ने पूछा तो लगभग भागती हुई बोली "आंटी मैं चलती हूं ...फिर मिलते हैं ...!"और इससे पहले कि जानकी कुछ समझती वो ये जा वो जा...!! संदली आंखों से ओझल हो चुकी थी। 

उस दिन के बाद संदली फिर नजर नहीं आई कई... महीनों तक..जानकी उसे रोज उसी जगह देखने जाती थी कि कहीं वो दिख जाए..पर नहीं वो दोबारा नहीं दिखी...!!

आज सुबह सुबह एक फोन ने जानकी देवी की नींद खराब कर दी..फोन पर एक औरत अपनी बेटी के प्रसव के लिए उसको बुला रही थी, लेकिन जानकी ने मना कर दिया और कहा "देखिए आजकल घर में प्रसव सेफ नही है, आप लड़की को अस्पताल ले जाइए।"

पर उधर से चीखती आवाज ने जानकी का मन बदल दिया।और वो पता पूछ कर जल्द ही निकल गयी..!

पते में पहुंचते ही उसने देखा एक अधेड़ उम्र की महिला बरामदे में टहल रही थी...!!जानकी ने जल्दी से कमरे में प्रवेश किया...!जच्चे का चेहरा देखते ही वो हड़बड़ा गयी ..अरे ये तो वही लड़की है! "बेटा तुम?" हर्ष मिश्रित हैरानी से वो जल्दी ही आगे बढ़ी..! संदली का सन्दल जैसा देह अब बहुत ही कृशकाय हो चुका था।प्रसव पीड़ा से तड़पती संदली को जल्द ही जानकी ने सम्भाला...! 

कुछ देर बाद..

जानकी ने संदली की मां से सारा हाल पूछा,एक गरीब परिवार की संदली को उसके ही मामा ने एक दिन गन्दला कर दिया था..! मां अपने भाई पर बेहद भरोसा करती थी.. संदली ने कई बार अपनी मां को बताया पर नतीजा आज सामने था।

मां को जब सच पता चला तो सिवाय पछतावे के कुछ नहीं था अब ।

जानकी ने पल में ही कुछ फैसला लिया, और जल्द से जल्द उस मासूम को एक महफूज हाथों में देने का फैसला कर निकल जाती है... सन्दली की मां से ये कह कर कि "बच्चे को मैं बचा नहीं पाई?" "अच्छा ही हुआ बहनजी ये पाप लेकर संदली कैसे रहती इस समाज में...!"

आज जानकी ने दो- दो मासूमों को बचा लिया था..! नारी जो है...!!

     


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