धर्म
धर्म
"वह लड़की उसी धर्म की लगती है, कपड़े ज़रूर अलग पहने हैं, लेकिन शक्ल और चाल-ढाल तो..." सड़क के कोने में छिपकर बैठे एक मनचले ने शराब का घूँट भरते हुए दूसरे मनचले से कहा।
"इसको उठा लेते हैं... आजकल पूरा देश भी इनके विरुद्ध है" दूसरे की लाल आँखों में मक्कारी स्पष्ट झलक रही थी।
दोनों दौड़ कर उस लड़की के सामने खड़े हो गये, और तेज़ स्वर में दुश्मन देश के मुर्दाबाद का नारा लगाया।
लड़की भौचक्की रह गयी, उसको डरता देखकर उन दोनों के हौसले और भी बुलंद हो गये और उस लड़की का हाथ पकड़ कर उसे खींचने लगे।
लड़की ने जैसे-तैसे खुद को छुड़ाया और तेज़ी से भागी, वो दोनों भी उसके पीछे भागे, भागते हुए वे एक धार्मिक और राजनीतिक संगठन के पक्ष में नारे लगाते रहे। तभी एक बूढ़ा व्यक्ति उन दोनों के सामने आ गया और चिल्ला कर बोला, "छोड़ दो इसे..."
"इसके धर्म के लोग क्या करते हैं, हम भी इसे नहीं छोड़ेंगे..." एक ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा।
"दिमाग ठिकाने है, यह मेरी भतीजी है..." उस व्यक्ति ने दृढ़ शब्दों में कहा, तब तक कुछ और लोग भी आ गये, और दोनों मनचले भाग उठे।
लड़की बहुत घबरा गयी थी, उसने उस बूढ़े व्यक्ति के हाथ जोड़े और कहा, "शुक्रिया बाबा! आपने बचा लिया... आप कौन हैं?"
बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मैं उसी संगठन का शहर प्रमुख हूँ, जिसके नारे ये लगा रहे थे।"
लड़की फिर से भयभीत हो गयी, उसने घबराते हुए पूछा, "आपने मुझे अपने ही लोगों से...?"
"ये लोग मेरे संगठन के नहीं हैं।”
कहकर वह चल दिया, कुछ कदमों बाद ठिठका और बिना मुड़े ही कहा,
“सालों पहले किसी ने तुम लोगों से कहा था कि यहीं रुक जाओ... उसकी याद आ ही जाती है।"